कितनी कारगर हैं मीठी गोलियां? जानें कैसे काम करती है होम्योपैथी
दिसंबर के पहले ही दिन सपना के पांच साल के बेटे को तेज बुखार और सर्दी खासी हो गई. ये पंद्रह दिन के अंदर दूसरी बार था जब तेजस को भयानक खांसी और कफ ने जकड़ा. सपना एंटीबॉयटिक, नेबुलाइजर, स्टीम और दवाइयों के इस कुचक्र से अपने परिवार को दूर रखना चाहती हैं क्योकि हर सर्दी के सीजन घर में इतनी दवाइयां आती हैं कि उन्हें खुद ही इम्यून सिस्टम के लिए खतरा लगने लग रहा है. सपना ने पता करके पास के ही होम्योपैथी डॉक्टर को कंसल्ट किया है और उनका कहना है कि अब उनकी कोशिश बिना साइड इफैक्ट वाली होम्योपैथी अपनाने की ही रहेगी.
कैसे काम करती है होम्योपैथी
होम्योपैथी विशेषज्ञ डॉ मानव जैन कहते हैं, होम्योपैथी दो शब्दों से बनी हुई है, होम्यो और पैथी. जो पदार्थ जिस तरह के लक्षण पैदा करता है, वही उन लक्षणों वाले रोगों की दवा है. जैसे- मिर्च शरीर के अंदर जलन पैदा करती है, तो मिर्च ही जलन की दवा है बशर्ते सेम नहीं सिमिलर होनी चाहिए. जिस तरह से मधुमक्खी का डंक सूजन लाता है, तो मधुमक्खी का डंक ही सूजन की दवा है लेकिन मधुमक्खी से ही दवा बनाई जाती है. इसमें पदार्थ का जो नेचर होता है, वही रोगी का नेचर होना चाहिए. शरीर की प्रकृति दवा की प्रकृति से सेम नहीं बल्कि सिमिलर होनी चाहिए.
होमियोपैथी स्पेशलिस्ट डॉ अजय गुप्ता बताते हैं, होम्योपैथी हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को बूस्ट करता है, हमारा इम्यूनिटी सिस्टम ही हमको किसी भी बीमारी से ठीक करता है. होम्योपैथी का प्राइमरी इफेक्ट ह्यूमैनिटी सिस्टम पर ही पड़ता है इसलिए माना जाता है कि होम्योपैथी पूरी बीमारी को ही ठीक करता है. होम्योपैथी की दवा बीमारी पर डायरेक्ट इफेक्ट नहीं करती है, जिससे बीमारी सप्रेस नहीं होती है. जब दवा एक नॉर्मल बॉडी के अंदर दी जाती है तो एक लक्षण पैदा करती है. अगर वही लक्षण किसी मरीज में दिख रहे हो तो उन्ही लक्षणों की दवा मरीज को दे दी जाती है अगर वह ठीक हो जाता है. तो इसका मतलब है कि उसने वाइटल फोर्स को एन्हांस कर दिया गया है. वाइटल और फोर्स के एनहांस होते ही बीमारी के लक्षण हमारे शरीर से खत्म हो जाते हैं.
होम्योपैथी का इतिहास
जर्मन डॉक्टर सैमुअल हैनीमैन ने करीब 200 सौ साल पहले होम्योपैथी से लोगों का इलाज करना शुरू किया था. भारत में होम्योपैथी से लोगों का इलाज 1810 में शुरू हुआ, जब कुछ जर्मन मिशनरियों और डॉक्टरों ने यहां के लोगों होम्योपैथिक दवाइयां देनी शुरू की. डॉ मानव जैन कहते हैं, होम्योपैथी का मुख्य सिद्धांत है, अगर किसी दवा से किसी व्यक्ति की तबियत ख़राब हो सकती है तो उससे ही उसका इलाज भी किया जा सकता है. इसके लिए लैटिन भाषा में एक मुहावरा कहा गया है, जो सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेटर है. बताया जाता है कि करीब 200 साल पहले डॉ. सैमुअल हैनीमैन ने चिनकोना पेड़ की छाल से बना एक औषधि काढ़ा पिया था, जिससे उन्हें मलेरिया हो गया था. जिसके बाद उन्होंने कई तरह की रिसर्च की.
होम्योपैथी में किस तरह की दवाई होती है?
होम्योपैथी के इलाज का सिद्धांत Like cures like है यानी इस चिकित्सा पद्धति में बीमारी के लक्षण को ही उपचार का आधार बनाया जाता हैं. ये नॉन कम्यूनिकेबल क्रानिक डिज़ीज़ में अच्छी तरह से काम करती है. डॉ मानव जैन बताते हैं, मिनरल में जितने भी मिनरल होते हैं, वो सब दवा होती है. इस तरह से जितने भी औषधीय पौधे हैं, उन सभी दवाइयां हैं. एनिमल किंगडम में भी इसी तरह से दवाइयां होती हैं. मधुमक्खी के जहर और सांप के जहर से भी दवाइयां बनाई जाती हैं.
क्यों दी जाती हैं मीठी गोलियां?
होम्योपैथी की दवाओं का पोटेंटाइजेशन किया जाता है, वो अल्कोहल के अंदर तैयार की जाती है. अल्कोहल में रखने का कारण है कि होम्योपैथी की दवा का पावर खत्म नहीं होता है, अल्कोहल उसे मेंटेन रखता है. अल्कोहल को अगर ऐसे ही डाल दिया जाए तो मरीज के जीभ का टेस्ट खराब हो सकता है इसलिए उन्हें मीठी गोलियां में दिया जाता है. वो मीठी गोलियां शुगर बॉल्स होती हैं. होम्योपैथी की ज्यादातर दवाओं में एल्कोहल और डिस्टिल वाटर का इस्तेमाल किया जाता है. होम्योपैथी विशेषज्ञों का कहना है, मीठी गोलियां तो केवल व्हीकल होती हैं, जैसे आप किसी गाड़ी में बैठकर जा रहे हैं लेकिन आप तो आप हैं. दवा को शरीर तक पहुंचाने के लिए केवल मीठी गोलियां का इस्तेमाल किया जाता है.
होम्योपैथी में किन बीमारियों का इलाज
डॉ मानव जैन कहते हैं, होम्योपैथिक में सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज संभव है लेकिन इसमें सर्जरी नहीं होती है. हालांकि सर्जरी से पहले और बाद में किसी भी तरह की परेशानी को होम्योपैथी के जरिए कंट्रोल किया जा सकता है. डॉ अजय गुप्ता बताते हैं, होम्योपैथी दवा हर कोई ले सकता है, ये सब पर काम करती है. बच्चों से लेकर बूढ़े तक इससे अपना इलाज करा सकते हैं. माइंड और बॉडी से जुड़ी समस्याएं जैसे एलर्जी, मेंटल प्रॉबल्म, स्किन संबधी समस्या डर्माटाइटिस, माइग्रेन, अस्थमा और अर्थराइटिस में कारगर है.
कितनी जल्दी असर करती है होम्योपैथी
डॉ अजय गुप्ता कहते हैं, अगर आप किसी वायरल बीमारी के लिए होम्योपैथी की दवा ले रहे हैं तो वो जल्दी ठीक होगा क्योंकि वो एक्यूट डिजीज है. अगर आप किसी ऐसी बीमारी का इलाज करा रहे हैं, जिससे आप पिछले 20 सालों से ग्रस्त है तो वो क्रॉनिक डिसऑर्डर है, उसका इलाज करने में थोड़ा समय लगता है क्योंकि इम्यून सिस्टम सही होने में बहुत समय लेता है. एक्यूट बीमारी के अंदर सर्दी-खांसी, जुकाम आते हैं. इन बीमारियों में अगर आप होम्योपैथी की दवा लेते हैं तो इसका असर आपको 1 से 2 दिन के अंदर दिखने लगेगा. क्रोनिक बीमारी यानि लिवर, किडनी, आंत, गठिया जैसी ऐसी बीमारी जो सालों से आपको परेशान कर रही है. ऐसी बीमारी पर होम्योपैथिक का असर दिखने में 8-10 महीने का समय लग सकता है.
डॉ मानव जैन भी कहते हैं, होम्योपैथी किसी बीमारी को ठीक करने में बहुत वक़्त लेती है, ये बात पूरी तरह से गलत है. होम्योपैथी में बीमारियों को दो भागों में बांटा गया है. पहला एक्यूट और दूसरा क्रोनिक. होम्योपैथी में माना जाता है कि एक्यूट बीमारियों में इलाज न होने पर बहुत जल्दी जान जा सकती है जबकि क्रॉनिक बीमारियों में तुरंत जान नहीं जाती है. बुखार जैसे ताप की बीमारी है और ताप की बीमारियां जानलेवा होती हैं. क्रॉनिक बीमारियों में होम्योपैथी का बहुत अच्छा रिजल्ट है. अगर मरीज अपनी हर समस्या डॉक्टर से बताता है तो उसकी पूरी केस स्टडी होती है. उसके बाद मरीज को दवा दी जाती है.
दूसरे इलाज से कैसे अलग है होम्योपैथी?
होम्योपैथी डॉक्टर्स का कहना है होम्योपैथी सिंगल मेडिसिन के तौर पर काम करती है. इसमें एक ही दवा से शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक लक्षणों से ग्रस्त व्यक्ति का इलाज हो सकता है. होम्योपैथी में किसी रोगी की केवल तुरंत ही कंडीशन देखकर इलाज नहीं किया जाता है, इसमें मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री देखने के बाद ही इलाज किया जाता है. इसके साथ मरीज की ऐसा इलाज किया जाता है कि उसकी वर्तमान में चल रही प्रॉब्लम तो खत्म ही हो जाये, उसे आगे भी कभी उस बीमारी से न जूझना पड़े.
डॉ मानव जैन कहते हैं, एलोपैथी और आयुर्वेद में सभी के लिए एक दवा दी जा सकती है, जैसे बुखार के लिए सभी को पैरासिटामोल दी जा सकती है. होम्योपैथी में ऐसा नहीं है, आप एक ही दवा से सबके बुखार ठीक नहीं कर सकते. हालांकि महामारी में सबको एक तरह की दवा दी जा रही थी क्योंकि सभी के लक्षण एक जैसे थे. होम्योपैथी में नोसोड्स (Nosodes) होती हैं, बैक्टीरिया और वायरस से बनाई जाने वाली दवाओं को नोसोड्स कहा जाता है.
होम्योपैथी का साइड इफेक्ट नहीं
डॉ मानव जैन का कहना है, होम्योपैथी का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है लेकिन इसमें जरूरी है कि दवाइयां होम्योपैथी डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही ली जा रही हों. होम्योपैथी दवाइयां वाइटल फोर्स पर काम करती हैं, अगर वाइटल फोर्स बैलेंस होता है तो सब कुछ कंट्रोल हो जाता है. भारत दुनिया की सेकंड लार्जेस्ट देश है, जहां सबसे ज्यादा होम्योपैथी दवाई बन रही है.
एक्सपर्ट्स कहते हैं, एलोपैथी में किसी एलर्जी को ठीक करने के लिए मरहम या दवा दे दी जाती है, इससे कुछ समय के लिए समस्या ठीक हो जाती है लेकिन जड़ से खत्म नहीं हो पाती है. होम्योपैथी में जड़ पर काम किया जाता है, इससे किसी भी परेशानी को दूर करने में मदद मिलती है.
कौन होते हैं होम्योपैथी एक्सपर्ट
होम्योपैथी डॉक्टरों के लिए BHMS यानि बेचलर ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी कोर्स होता है. बायोलॉजी से 12th पास आउट बच्चे ये कोर्स कर सकते हैं. पांच साल के इस कोर्स में नीट एग्जाम के जरिए एडमिशन मिलता है. BHMS करने के बाद आप होम्योपैथी में एमडी भी कर सकते है और पीएचडी भी. अगर आपको होम्योपैथी की क्लीनिक चलानी है तो कम से कम आपके पास BHMS की डिग्री होनी आवश्यक है और आपको किसी राज्य के होम्योपैथी बोर्ड मे रजिस्टर्ड होना होता है.
होम्योपैथी में इलाज की पद्धति
डॉ अजय गुप्ता बताते हैं, होम्योपैथी में एनिमल किंगडम से लेकर पेड़ पौधों तक से दवाई बनाई जाती है. इसमें महत्वपूर्ण है कि हमें पता होना चाहिए कि किस बीमारी के लिए क्या दवा देनी है. इसके साथ उसे दवा की ड्रग प्रोविंग पूरी होनी चाहिए. ड्रग प्रोविंग को होम्योपैथिक पैथोजेनेटिक ट्रायल (एचपीटी) भी कहा जाता है. कोई भी होम्योपैथी दवा बनती है तो उसकी रिसर्च होती है. एक स्वस्थ व्यक्ति को पहले दवा दी जाती है और फिर क्रॉनिकली ऑब्जर्व किया जाता है. लक्षणों को लिका जाता है उन लक्षणों की ग्रेडिंग होती है.अगर 100 मरीजों को कोई दवा दी गई, तो देखा जाता है कि कितने मरीज़ों के लक्षण एक जैसे हैं, कितने मरीजों के लक्षण कम मिल रहे हैं और कितनों के बिल्कुल नहीं मिल रहे हैं. जो सबसे कॉमन लक्षण होते हैं, उनकी ग्रेडिंग होती है. जो ग्रेडिंग होती है, वो उस बीमारी का महत्वपूर्ण लक्षण होता है. इस लक्षण के आधार पर मरीज को वही दवा दी जाती है. जिसकी ग्रेडिंग ज्यादा होती है. दवा का असर उतना ही अच्छा होता है.