क्या है पियरे रॉबिन सिंड्रोम? बच्चों के जबड़े विकसित नहीं होते, कलावती सरन अस्पताल में इतनों की हुई सर्जरी

क्या है पियरे रॉबिन सिंड्रोम? बच्चों के जबड़े विकसित नहीं होते, कलावती सरन अस्पताल में इतनों की हुई सर्जरी
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दुनियाभर में कई तरह की बीमारियां हैं. इनमें एक बीमारी है पियरे रॉबिन सिंड्रोम ( पीआरएस) ये एक तरह का जन्म दोष है. इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को जबड़े विकसित नहीं हो पाते हैं. इस वजह से उनको सांस लेने में परेशानी होती है. इससे पीड़ित बच्चों की सर्जरी करनी पड़ती है. वैसे तो यह एक रेयर बीमारी है, लेकिन भारत में इसके मामले आते रहते हैं. दिल्ली में केंद्र सरकार के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से संबंधित कलावती सरन अस्पताल में पीआरएस से जूझ रहे 70 बच्चों की सर्जरी की गई है. कलावती अस्पताल बच्चों के इलाज के मामले में देश का सबसे बड़ा अस्पताल माना जाता है.

पियरे रॉबिन सिंड्रोम (पीआरएस) पेट में बच्चे के विकास के दौरान होता है. ये सिंड्रोम बच्चे के जबड़े और मुंह को प्रभावित करता है , इसलिए उसको सांस लेना, स्तनपान करना या बोतल से दूध पीना तक मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी के बारे में लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एंड एसोसिएट हॉस्पिट्लस में ओरल मैक्सिलोफ़ेशियल सर्जरी विभाग निदेशक डॉ प्रवेश मेहरा ने बताया है.

70 बच्चों की हुई सर्जरी

डॉ मेहरा बताते हैं कि बीते 5 साल में अस्पताल में पियरे रॉबिन सिंड्रोम से पीड़ित 70 बच्चों की सर्जरी की गई है. इसको मेडिसिन,रेस्पिरेटरी मेडिसिन, पीडियाट्रिक और डेंटल विभाग के डॉक्टरों ने मिलकर किया है. जिन बच्चों की सर्जरी हुई है उनमें 7 दिन से लेकर 15 साल तक की उम्र के बच्चे थे. डॉ मेहरा बताते हैं कि पियरे रॉबिन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को मुख्य रूप से तीन तरह की समस्याएं होती हैं. इसमें बच्चे का निचला जबड़ा और ठोड़ी छोटी होती है ( माइक्रोग्राथिया) कटा हुआ तालु और ग्लोसोप्टोसिस के कारण बच्चे की जीभ गले की तरफ वापिस गिरती है. इस वजह से बच्चों को सांस लेने में परेशानी होती है और वह ऑक्सजीन सपोर्ट पर रहता है.

अस्पताल में इस बीमारी से पीड़ित जो बच्चे भर्ती हुए थे उनमें से 95 फीसदी से अधिक बच्चों की सफल सर्जरी की गई है और वह बहुत अच्छी तरह से रिकवर कर रहे हैं.

Dr parvesh mehra

( डॉ. प्रवेश मेहरा)

क्यों होता है पीआरएस सिंड्रोम

डॉ मेहरा बताते हैं कि गर्भ में बच्चे के विकास के दौरान होने वाले कुछ जेनेटिक चेंज के कारण भ्रूण के चेहरे की संरचना के निर्माण के क्रम या क्रम को बदल सकते हैं. जब बच्चे का जबड़ा उस तरह से विकसित नहीं होता जैसे की होना चाहिए तो उसकी जीभ पीछे की ओर खिसक जाती है. इस बीमारी के कारण बच्चे को सांस लेने में परेशानी बनी रहती है और उसको फीडिंग कराना भी मुश्किल होता है. बीमारी की जांच के लिए कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन किया जाता है.

कैसे होता है इलाज

मैंडिबुलर डिस्ट्रैक्शन ऑस्टियोजेनेसिस से इस बीमारी को ठीक किया जाता है. इस सर्जरी से बच्चे के जबड़े का आकार बदल जाता है, जिससे वह ठीक हो जाता है. इसके अलावा ट्रैकियोस्टोमी का भी सहारा लिया जाता है.

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