अनावश्यक दवाएं और ज्यादा प्रोटीन किडनी के लिए खतरनाक: इंदौर कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों की चेतावनी

इंदौर। निजी अस्पतालों में जहां डॉक्टर मामूली बीमारियों में भी लंबे-लंबे टेस्ट और दवाइयां लिख देते हैं, वहीं शुक्रवार को इंदौर में हुई इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी, वेस्ट जोन चैप्टर (ISNWZ) की वार्षिक वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने साफ कहा कि “दवाएं तभी लें जब जरूरत हो, बेवजह दवाइयों का सेवन आपकी किडनी को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है।”
गुजरात से आए किडनी विशेषज्ञ डॉ. मोहन मनोहर राजापुरकर ने चेताया कि ज्यादा प्रोटीन वाले भोजन और सप्लीमेंट्स किडनी के लिए जहर साबित हो रहे हैं। शरीर को प्रति किलो वजन पर सिर्फ 0.8 ग्राम प्रोटीन चाहिए, लेकिन उससे ज्यादा लेने पर किडनी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
अनावश्यक दवाओं से बिगड़ रही किडनी
कॉन्फ्रेंस में शामिल कई डॉक्टरों ने बताया कि ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की दवाइयां बिना जरूरत के लंबे समय तक खाना, किडनी रोगों को बढ़ाने वाला बड़ा कारण है। पुणे के डॉ. नारायण आचार्य ने कहा कि दवाइयों के दुष्प्रभाव और खराब जीवनशैली के चलते किडनी की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं।
गंदा पानी भी जिम्मेदार
कई विशेषज्ञों ने बताया कि बोरवेल का हार्ड और दूषित पानी भी किडनी रोगों का कारण बन रहा है। वहीं पर्याप्त पानी न पीना, पथरी, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी इसका खतरा बढ़ाती हैं।
“एक मृत व्यक्ति छह को जीवन दे सकता है”
मुंबई से आए डॉ. एलन अल्मेडा ने कहा कि आज भी अधिकांश किडनी ट्रांसप्लांट जीवित दाताओं पर निर्भर हैं। जबकि अंगदान बढ़े तो हजारों मरीजों को नया जीवन मिल सकता है। “एक मृत व्यक्ति कम से कम छह लोगों को नई जिंदगी दे सकता है, समाज को इस दिशा में जागरूक होना होगा।”
जीवनशैली सुधार ही सबसे बड़ी दवा
वेस्ट जोन के सचिव डॉ. उमापति नरसिंहा हेगड़े ने कहा कि समय पर जांच, पर्याप्त पानी, संतुलित खानपान और स्वस्थ जीवनशैली ही बीमारियों से बचाव का सबसे आसान रास्ता है। यही सम्मेलन का मुख्य संदेश भी रहा कि “रोग के बाद दवा नहीं, बल्कि रोग से पहले सावधानी बेहतर है।”
भीलवाडा हो या देश कोई निजी अस्पताल में हर मरीज को जांच और दवा का बोझ थमा दिया जाता है, वहीं इंदौर का यह मंच एक अलग ही दिशा दिखा रहा है—“कम दवाएं, ज्यादा जागरूकता और संतुलित जीवनशैली ही असली इलाज है।”
