क्या आपने सुना है 1.5 डायबिटीज के बारे में, कैसे ये टाइप-1 और 2 से है अलग

क्या आपने सुना है 1.5 डायबिटीज के बारे में, कैसे ये टाइप-1 और 2 से है अलग
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आज हमारे देश में सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज पाए जाते हैं. ये बीमारी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि जल्द ही हमारी आधी से ज्यादा आबादी इस बीमारी की गिरफ्त में होगी. हम सब जानते हैं कि डायबिटीज दो प्रकार की होती है. टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों के अलावा डायबिटीज का एक और भी प्रकार है जिसे टाइप 1.5 डायबिटीज के नाम से जाना जाता है. मेडिकल जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब ज्यादातर लोग इस टाइप का शिकार ज्यादा हो रहे हैं.

बेहद ही कम लोग डायबिटीज के इस तीसरे प्रकार के बारे में जानते हैं. इस डायबिटीज को लैटिन डायबिटीज या एडल्ट-ऑनसेट ऑटोइम्यून डायबिटीज (एएएडी) के नाम से भी जाना जाता है. ये डायबिटीज की वो स्थिति है जिसमें टाइप 1 और टाइप 2 दोनों ही तरह के लक्षण पाए जाते हैं. इसमें व्यक्ति की आयु 30 वर्ष से अधिक होती है लेकिन उसने लक्षण बचपन में होने वाली टाइप 1 डायबिटीज और बढ़ती उम्र में होने वाली टाइप 2 डायबिटीज दोनों के ही समान होते हैं.

टाइप 1.5 डायबिटीज क्या है

टाइप 1.5 डायबिटीज कुछ हद तक टाइप 1 जैसा और कुछ हद तक टाइप 2 जैसा होता है. ये वयस्कों में अव्यक्त ऑटोइम्यून डायबिटीज के रूप में भी जाना जाता है, टाइप 1.5 डायबिटीज में टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज दोनों की ही विशेषताएं पाई जाती हैं. दरअसल, डायबिटीज वो स्थिति है जब हमारे खून में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है और शरीर में ग्लूकोज की अधिकतता हो जाती है. वैसे तो डायबिटीज के 10 से अधिक प्रकार होते हैं लेकिन ज्यादातर लोग सबसे आम प्रकार 1 और 2 के बारे में ही जानते है.

टाइप 1 और टाइप 2 में अंतर

टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून स्थिति है जहां शरीर का इम्यून सिस्टम पैंक्रियाज में उन सेल्स को ही नष्ट कर देता है जो इंसुलिन हार्मोंस का उत्पादन करती है. इंसुलिन हमारे शरीर में ग्लूकोज के स्तर को कंट्रोल करता है. इंसुलिन न बनने की स्थिति में शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती चली जाती है जिससे शरीर के कई अंग क्षतिग्रस्त होते हैं. टाइप 1 स्थिति ज्यादातर बचपन में ही उत्पन्न हो जाती है और पूरी जिंदगी चलती है. वही टाइप 2 डायबिटीज को लाइफस्टाइल डिजीज भी कहा जा सकता है क्योंकि ये टाइप हमारे अनहेल्दी लाइफस्टाइल और गलत खान-पान की आदत के चलते होती है. टाइप 2 डायबिटीज ज्यादातर युवाओं और बुजुर्गों में देखी जाती है. दोनों ही स्थिति में मरीज को बाहरी तौर से इंसुलिन दिया जाता है.

टाइप 1.5 डायबिटीज कैसे है अलग

टाइप 1.5 में अन्य दोनों प्रकार की विशेषताएं शामिल है. इसमें टाइप 1 की ही तरह इम्यून सिस्टम पैंक्रियाज में इंसुलिन हार्मोन बनाने वाली सेल्स को नष्ट कर देता है लेकिन टाइप 1.5 वाले मरीजों को टाइप 1 की तरह तुरंत इंसुलिन की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उनकी ये स्थिति धीरे-धीरे विकसित होती है. ये टाइप ज्यादातर 30 से अधिक उम्र वाले लोगों में पाया जाता है, जबकि टाइप 1 काफी कम उम्र में ही विकसित हो जाती है. वही दूसरी तरफ टाइप 2 की ही तरह ये मोटापे और फिजिकल एक्टिविटी जैसे लाइफस्टाइल कारकों से भी विकसित हो सकता है.

टाइप 1.5 डायबिटीज के लक्षण

टाइप 1.5 डायबिटीज के लक्षणों में

– ज्यादा प्यास लगना

– बार-बार पेशाब आना

– अत्याधिक थकान महसूस करना

– धुंधला दिखना

– वजन कम होना शामिल है.

टाइप 1.5 डायबिटीज का इलाज

शुरुआत में इसके इलाज के लिए दवाओं का इस्तेमाल ही शामिल है. दवाओं से ग्लूकोज को कंट्रोल करने का काम किया जाता है. अगर जरूरत पड़ती है मरीज को इंसुलिन के इंजेक्शन्स दिए जाते हैं.

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