हरी सब्जियां बनीं सेहत नहीं, खतरा!: सब्जियां नहीं... प्लास्टिक खा रहे हैं? अध्ययन तो यही बता रहे हैं

**भीलवाड़ा हलचल।
अगर आप सोचते हैं कि हरी-भरी सब्जियां, अनाज और फल आपके शरीर को पोषण दे रहे हैं, तो ज़रा संभल जाइए! क्योंकि अब वैज्ञानिक अध्ययनों ने एक चौंकाने वाला सच सामने लाया है — हमारी थाली में रखी सब्जियों में भी **प्लास्टिक के सूक्ष्म कण** (Microplastics) पहुंच चुके हैं।
यानि हम अनजाने में रोजाना थोड़ा-थोड़ा **‘प्लास्टिक खा रहे हैं’**।
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### 🌱 खेतों से थाली तक... पहुंच चुका है माइक्रोप्लास्टिक
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक कचरे के लगातार बढ़ते उपयोग ने मिट्टी, पानी और हवा—तीनों को प्रदूषित कर दिया है।
जब प्लास्टिक कचरा धूप, बारिश और रासायनिक क्रियाओं से टूटता है तो उससे **नैनोप्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक कण** बनते हैं, जो बेहद छोटे (1 मिलीमीटर से भी कम) होते हैं। ये कण हवा और पानी के जरिए खेतों में पहुंच जाते हैं।
कई अध्ययनों में पाया गया है कि **पालक, टमाटर, आलू, प्याज, गाजर और गोभी जैसी फसलों** की जड़ों में ये कण समा जाते हैं। जड़ें इन सूक्ष्म कणों को पोषक तत्व समझकर सोख लेती हैं, जो बाद में पौधे के तनों और फलों तक पहुंच जाते हैं।
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### 📊 शोधों के हैरान करने वाले नतीजे
* **इटली और चीन** में किए गए शोधों में पाया गया कि खेतों में प्लास्टिक मल्चिंग (plastic sheets for moisture control) के कारण मिट्टी में प्लास्टिक कणों की मात्रा **तीन गुना तक** बढ़ गई है।
* **भारत में बेंगलुरु और हैदराबाद** के शोध संस्थानों ने पाया कि शहरों के नालों और ड्रेनेज से आने वाला पानी, जिसमें प्लास्टिक वेस्ट मिला होता है, खेतों में सिंचाई के रूप में उपयोग किया जा रहा है — और यहीं से यह खतरा शुरू होता है।
* **2024 के एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन** में अनुमान लगाया गया कि औसत व्यक्ति हर साल करीब **50,000 से 70,000 माइक्रोप्लास्टिक कण** निगल लेता है — जिनमें बड़ी हिस्सेदारी फलों-सब्जियों की होती है।
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### ⚠️ हमारे शरीर पर क्या असर डाल रहे हैं ये कण?
डॉक्टरों का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर में जाकर कई गंभीर प्रभाव छोड़ते हैं।
* ये **आंतों की दीवारों में फंसकर पाचन प्रक्रिया को धीमा** करते हैं।
* इनसे **हार्मोनल असंतुलन और इम्यून सिस्टम पर असर** पड़ता है।
* लंबे समय में ये **किडनी, लिवर और दिल** को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
* कुछ अध्ययनों में इन कणों को **कैंसरकारी पदार्थों के वाहक** के रूप में भी देखा गया है।
जयपुर के पर्यावरण वैज्ञानिक **डॉ. राजीव अग्रवाल** के अनुसार,
> “हमने अब तक हवा और पानी में प्रदूषण की बात की, पर असली खतरा तो हमारी थाली तक पहुंच चुका है। अगर हमने अभी प्लास्टिक कचरे को नियंत्रित नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियों की सेहत पर गहरा संकट मंडराएगा।”
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### 🧩 समस्या की जड़: हमारी ही लापरवाही
* **प्लास्टिक पैकेजिंग और पॉलीबैग्स** के बढ़ते इस्तेमाल से हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा बनता है।
* यही कचरा जब जल स्रोतों या खेतों में पहुंचता है, तो धीरे-धीरे मिट्टी में घुलकर पौधों तक पहुंच जाता है।
* शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला **अपरिष्कृत सीवेज पानी** भी माइक्रोप्लास्टिक का बड़ा स्रोत है, जो सीधे फसलों की जड़ों तक पहुंच रहा है।
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### 🛑 अब क्या करें? समाधान क्या है?
पर्यावरणविदों का कहना है कि यह समस्या तभी रुकेगी जब हम व्यक्तिगत और सरकारी स्तर पर कदम उठाएं।
**सरकारी स्तर पर:**
* खेतों में **नालों या अपशिष्ट जल से सिंचाई पर रोक** लगाई जाए।
* प्लास्टिक कचरे के **सही निस्तारण और रीसाइक्लिंग** को सख्ती से लागू किया जाए।
* किसानों को जैविक और टिकाऊ खेती के लिए **प्रोत्साहन योजनाएं** दी जाएं।
**व्यक्तिगत स्तर पर:**
* सब्जियां खाने से पहले **नमक के पानी में 10-15 मिनट तक भिगोकर धोएं।**
* **फिल्टर्ड पानी** का उपयोग करें।
* **एकल उपयोग प्लास्टिक (Single Use Plastic)** से दूरी बनाएं।
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### 🌍 निष्कर्ष
आज हम जिस सुविधा के लिए प्लास्टिक पर निर्भर हो गए हैं, वही हमारी सेहत के लिए जहर बन चुका है।
माइक्रोप्लास्टिक अब केवल पर्यावरण की समस्या नहीं रही — यह **“खाद्य सुरक्षा” और “मानव स्वास्थ्य”** की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है।
अब सवाल यह है —
**क्या हम अपनी थाली से प्लास्टिक हटाने की जिम्मेदारी लेंगे, या धीरे-धीरे इसे ही अपना भोजन बना लेंगे?**
