किलर कफ सीरप:: मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौतें औषधि नियंत्रण की कमी करती हैं उजागर

मध्य प्रदेश और राजस्थान में जहरीले कफ सीरप से बच्चों की मौतों ने राज्यों की औषधि नियंत्रण प्रणाली की गंभीर कमियों को सामने ला दिया है। घटनाओं से पता चलता है कि औषधि निरीक्षकों की भारी कमी और प्रयोगशालाओं की अपर्याप्तता से दवाओं की समय पर जांच नहीं हो पा रही है।
मध्य प्रदेश में पिछले एक महीने में जहरीले कफ सीरप से 20 बच्चों की मौत हुई। राज्य में 96 औषधि निरीक्षक के पदों में से केवल 79 ही भरे हैं। शोभित कोष्टा के निलंबन के बाद उप-औषधि नियंत्रक का एक पद रिक्त हो गया। प्रदेश में वर्ष 2024 तक भोपाल में ही एकमात्र लैब थी, जबकि इंदौर और जबलपुर में नई लैबें इस वर्ष शुरू हुई हैं। हर साल लगभग 7,000 सैंपल आते हैं, लेकिन सीमित क्षमता के कारण कई सैंपल जांच से वंचित रह जाते हैं।
राजस्थान में भी हालात चिंताजनक हैं। औषधि निरीक्षकों की कमी और लैबों के अभाव में समय पर दवाओं की जांच नहीं हो पाती। बच्चों की मौतों ने यहां भी औषधि नियंत्रण की खामियों को उजागर किया।
उत्तर प्रदेश में 109 में से 32 औषधि निरीक्षक के पद खाली हैं, जबकि 13 जिलों में एक भी औषधि निरीक्षक नहीं है। इसी तरह हिमाचल, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में लैब और स्टाफ की कमी से दवा जांच में गंभीर देरी हो रही है।
दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में दवा परीक्षण के लिए लैब उपलब्ध हैं, लेकिन यहां भी जांच में देरी होती है। पंजाब में कफ सीरप को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की जान बचाने और नकली या जहरीली दवाओं को बाजार में आने से रोकने के लिए राज्यों को औषधि निरीक्षकों की नियुक्ति और प्रयोगशालाओं के विस्तार पर तुरंत ध्यान देना होगा।
