RGHS योजना: निजी अस्पतालों की हकीकत और सरकार की कार्रवाई

जयपुर, : राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) के तहत निजी अस्पतालों द्वारा कैशलेस इलाज के बहिष्कार ने मरीजों को परेशानी में डाल दिया है। इस बीच, चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने कड़ा रुख अपनाते हुए चेतावनी दी है कि सेवाएं रोकने वाले अस्पतालों के खिलाफ मेमोरेंडम ऑफ अग्रीमेंट (MoU) के नियमों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें उनकी संबद्धता निरस्त करना भी शामिल है। लेकिन इस विवाद की जड़ में निजी अस्पतालों की वास्तविक समस्याएं भी हैं, जो इस योजना को लेकर गहरा असंतोष दर्शा रही हैं।
मंत्री का दावा और चेतावनी
मंत्री खींवसर ने मंगलवार को बयान जारी कर कहा कि कुछ निजी अस्पताल RGHS को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। ये वही अस्पताल हैं, जिनके खिलाफ अनियमितताओं की जांच चल रही है, और वे अनुचित दबाव बनाकर बकाया भुगतान हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने दावा किया कि योजना के तहत प्रतिदिन औसतन 520 अस्पताल संचालित होते हैं, और हड़ताल के बावजूद 25-26 अगस्त को 350-400 निजी अस्पतालों ने सेवाएं दीं।
उन्होंने यह भी कहा कि 196 करोड़ रुपये के दावे (आईपीडी, ओपीडी, डे-केयर और फार्मेसी) भुगतान प्रक्रिया में हैं, और अब तक 850 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है। खींवसर ने जोर देकर कहा कि नियम तोड़ने वाले अस्पतालों पर कार्रवाई होगी, और हाल ही में 9 लोगों (5 डॉक्टर और 4 सरकारी कर्मचारी) को निलंबित किया गया है, साथ ही 26 लाख रुपये के फर्जीवाड़े में एक FIR दर्ज की गई है।
निजी अस्पतालों की हकीकत
राजस्थान एलायंस ऑफ ऑल हॉस्पिटल्स एसोसिएशन (RAHA) ने 25 अगस्त से RGHS के तहत कैशलेस इलाज का बहिष्कार शुरू किया, जो 27 अगस्त को भी जारी रहा। RAHA के संयोजकों का कहना है कि योजना में लगातार अनियमितताएं और भुगतान में महीनों की देरी ने निजी अस्पतालों को वित्तीय संकट में डाल दिया है। उनके अनुसार:
बजट की कमी: RGHS के लिए आवश्यक 4200 करोड़ रुपये के मुकाबले केवल 3000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है।
भुगतान में देरी: कई अस्पतालों को 6-12 महीने से भुगतान नहीं मिला, जिससे उनकी परिचालन लागत प्रभावित हुई है।
अनुचित दरें: RGHS की दरें CGHS (केंद्रीय योजना) से कम हैं, जो निजी अस्पतालों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही हैं।
प्रशासनिक समस्याएं: दावों की स्वीकृति और भुगतान प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और बार-बार दस्तावेजों की मांग ने अस्पतालों का भरोसा तोड़ा है।
RAHA का कहना है कि यह बहिष्कार मरीजों के लिए नहीं, बल्कि सरकार की "उदासीनता" के खिलाफ है। इस हड़ताल के कारण 13.52 लाख लाभार्थियों को निजी अस्पतालों में इलाज में परेशानी हो रही है। कई मरीजों को या तो नकद भुगतान करना पड़ रहा है या सरकारी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ रहा है, जहां सुविधाओं की कमी एक अलग चुनौती है।
सरकारी जवाब और कार्रवाई
विभाग की प्रमुख शासन सचिव गायत्री राठौड़ ने बताया कि सेवाएं रोकने वाले अस्पतालों की सूची तैयार की जा रही है, और उनके खिलाफ नियमों के तहत कार्रवाई होगी। वर्तमान में 350 से अधिक अस्पतालों के आवेदन RGHS में एम्पैनलमेंट के लिए विचाराधीन हैं, जो दर्शाता है कि कई अस्पताल अभी भी योजना का हिस्सा बनना चाहते हैं।
मंत्री खींवसर ने यह भी कहा कि सरकार RGHS को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रतिबद्ध है। हाल ही में अनियमितताओं में शामिल अस्पतालों पर कार्रवाई की गई है, और भविष्य में भी नियम तोड़ने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।
मरीजों की दुविधा
इस विवाद का सबसे बड़ा खामियाजा मरीज भुगत रहे हैं। सरकारी कर्मचारी, पेंशनर्स, विधायक और अन्य लाभार्थी, जिन्हें RGHS के तहत 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिलना चाहिए, अब निजी अस्पतालों में भटक रहे हैं। कई मरीजों ने शिकायत की कि उन्हें या तो इलाज से वंचित किया जा रहा है या नकद भुगतान के लिए मजबूर किया जा रहा है।
आगे की राह
निजी अस्पतालों और सरकार के बीच यह टकराव तब तक जारी रह सकता है, जब तक भुगतान प्रक्रिया में तेजी, पारदर्शिता और पर्याप्त बजट आवंटन पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते। RAHA ने मांग की है कि सरकार तत्काल बकाया भुगतान करे और CGHS की तर्ज पर दरें संशोधित करे। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि वह मरीजों के हित में काम कर रही है और अनियमितताओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएगी।
इस बीच, मरीजों को सलाह दी जा रही है कि वे सरकारी अस्पतालों या उन निजी अस्पतालों में इलाज कराएं, जो अभी भी RGHS के तहत सेवाएं दे रहे हैं। इस मुद्दे का हल जल्द निकलना जरूरी है, ताकि 13 लाख से अधिक लाभार्थियों को राहत मिल सके।
