भोर हुई 

भोर हुई 

 

 

कोयल कूक रही 

पपीहा पिहक रहा

चिड़ियों की चह-चह से गुंजित हैं उपवन

अधसोए अधजगे भ्रमित हैं जन

जोड़ जोड़ तोड़ती अंगड़ाई है

भोर हुई !

 

दरबे से बांग मुर्गे लगा रहे 

मुंडेरों पर कबूतर गुटर गूं गा रहे

छत पर संदेशा कागा ले आया है

उतर गौरइयों की टोली 

आंगन में आई है

भोर हुई !

 

सूरज की बग्घी पूरब से आ रही

गगन के गालों की लाली बतला रही

सपनों की चादर खींच खिड़की से गई हवा

रोशनदानों में किरणों की अभी-अभी

चुनरी लहराई है

भोर हुई !

 

दामोदर के लोटे झब्बू की दातुन में

डब्बू के ना-नुकुर पिंकी के खिन-खुन में

काकी की भिन्न-भिन्न काका की जम्हाई में

बछड़ों की उछल-कूद गायों की रम्हाई में

भरपूर तरुणाई है

भोर हुई !

 

डॉ एम डी सिंह

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