100 रुपए मिले, घर लौटने का किराया नहीं था, अब कहानियों को पर्दे पर उतारते हैं कृष्ण कन्हैया पाराशर

कृष्ण कन्हैया पाराशर की कहानी एक ऐसी कहानी है जो हमें सिखाती है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करना कितना महत्वपूर्ण है। भीलवाड़ा के छोटे से गांव आगूचा से निकला यह सपना, जो कभी रंगमंच के कोनों में 100 रुपये की कमाई करता था, आज सिनेमा के पर्दे पर अपनी कहानियों से हज़ारों दिलों पर राज करता है।
संघर्षों की कहानी
कृष्ण कन्हैया पाराशर ने पहली बार एक मंच में अभिनय किया और 10 दिन मेहनत करने के बाद भी मेहनताना मिला सिर्फ 100 रुपये। उस दिन अभिनय के जुनून ने तो तालियाँ जीत ली थी, लेकिन जेब में पैसे की कमी थी घर लौटने के लिए। मुंबई के अनजाने रास्ते और बड़े सपनों के बीच, कृष्ण कन्हैया ने कभी हार नहीं मानी। न कोई पहचान, न कोई सहारा — बस भरोसा था अपने हुनर और हौसले पर।
सफलता की कहानी
संघर्षों ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि तराशा। छोटे-छोटे मंचों से शुरू हुआ यह सफर आज उन्हें एक सफल एक्टर, राइटर और डायरेक्टर बना चुका है। उनकी थिएटर, ओटीटी की फिल्में और सिरियल काफी प्रशंसा बटोर रहे हैं साथ ही आज स्वयं का प्रोडक्शन हाउस और एड एजेंसी भी हैं जिसके माध्यम से वह कई फिल्म और टीवी कमर्शियल भी बनाते हैं।
कृष्ण कन्हैया पाराशर का संदेश
आज, कृष्ण कन्हैया पराशर न केवल खुद अभिनय करते हैं, बल्कि अपनी लिखी कहानियों को पर्दे पर उतारते हैं। उन्होंने ये साबित कर दिया कि छोटे शहरों से बड़े सपने देखे भी जा सकते हैं और सच किए जा सकते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करना कितना महत्वपूर्ण है, और हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।