कोटा डोरिया से लेकर लहरिया… राजस्थानी प्रिंट की ये साड़ियां आज भी हैं ऑल टाइम फेवरेट

कोटा डोरिया से लेकर लहरिया… राजस्थानी प्रिंट की ये साड़ियां आज भी हैं ऑल टाइम फेवरेट
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साड़ी सिर्फ पोशाक या कपड़ा नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर का प्रतीक है. भले ही आजकल महिलाएं जींस और टॉप ज्यादा पहनती हैं खासकर वर्किंग वूमेन. लेकिन तीज-त्योहार, शादी और हर खास अवसर पर महिलाएं साड़ी ही पहनना पसंद करती हैं. इससे महिलाओं की सुंदरता दोगुनी हो जाती है. साड़ी पहने का तरीका और इसके साथ पहने जाने वाले ब्लाउज डिजाइन समय के साथ मॉर्डनाइज हुए हैं.

साड़ी कई प्रकार की होती हैं, जो विभिन्न भारतीय राज्यों और संस्कृतियों की विविधता को दर्शाते हैं. जैसे कि बंगाल की बालू साड़ी, कांचीपुरम की सिल्क साड़ी, बनारसी और बांधनी साड़ी. हर एक साड़ी का अपना एक खास डिजाइन, रंग और कढ़ाई होती है, जो उसे एक दूसरे से अलग बनाती है. इसे पहनने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं. फैशन इंडस्ट्री में भी भी साड़ी को नई डिजाइन और आधुनिक शैली के साथ पेश किया जा रहा है.

देश के अलग-अलग राज्य किसी खास किस्म की साड़ी के लिए प्रसिद्ध हैं जैसे बनारस की बनारसी साड़ी, तमिलनाडु के कांचीपुरम गांव की प्रसिद्ध कांजीवरम सिल्क साड़ी. ऐसे ही राजस्थान अपने कई साड़ी प्रिंट को लेकर बहुत फेमस है. आज हम आपको इस आर्टिकल में राजस्थान की प्रसिद्ध साड़ी प्रिंट के बारे में बताने जा रहे हैं. ये साड़ी प्रिंट राजस्थान के साथ ही पूरे देश में प्रसिद्ध है.

बांधनी साड़ी

बांधनी साड़ी का इतिहास बहुत पुराना है और यह भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है. महिलाओं को इस प्रिंट की साड़ी पहनना बहुत पसंद होता है, खासकर की शादी-शुदा महिलाओं को. बांधनी शब्द संस्कृत के ‘बंध’ शब्द से लिया गया है जिसका मतलब बांधना है. बांधनी साड़ी को बनाने को बनाने के तरीका बहुत खास है और उसके लिए बहुत संयम चाहिए होता है.

बांधनी सरिस

इसे बनाने के लिए कपड़े को छोटी-छोटी गांठों में बांधा जाता है और फिर उसे रंगा जाता है. छोटे-छोटे बिंदुओं का उपयोग सीधी, चौकोर और गोल शेप दी जाती है. ये प्रिंट हाथों से किया जाता है. इसके लिए ब्राइट कलर का उपयोग किया जाता है. ज्यादातर इसके लिए लाल और पीले रंगों को उपयोग किया जाता है. लेकिन ये जरूर नहीं बल्कि और भी कई रंगों का इस्तेमाल इसके लिए किया जाता है. लहंगे, दुपट्टे, शर्ट, कुर्ते और स्कार्फ जैसे कपड़ों के अलावा, बैग, जूते और ज्वेलरी के लिए भी बांधनी प्रिंट का उपयोग किया जाता है. राजस्थान में जयपुर, सीकर, भीलवाड़ा, उदयपुर, बीकानेर, अजमेर और जामनगर जैसे शहर बांधी के लिए प्रसिद्ध हैं.

लहरिया प्रिंट

लहरिया प्रिंट का इतिहास राजस्थान से जुड़ा है. इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई थी. इस प्रिंट की शुरु राजपूत शासकों के समय पगड़ी से हुई थी. राजस्थान में पहले के समय पगड़ी को ट्विस्ट करके पहना जाता था, इसलिए इसका नाम बंधेज भी पड़ गया. बाद में पगड़ी में टाई एंड डाई के जरिए तिरछी रेखाएं बनाई जाने लगीं, जिससे लहरिया पैटर्न बन गया. लहरिया प्रिंट को बनाने के लिए कपड़े को बांधकर रंगा जाता है. जिसके लिए नेचुरल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. इसे बनाने के लिए टाई और डाई प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है. इसमें कपड़ों को खास तरीके से मोड़ा जाता है और फिर धागे से बांधा जाता है.

लेहरिया साड़ी

इस पैटर्न में लहरों की बनावट नजर आती है. इसमें ऊपर-नीचे उठती हुई आड़ी-तिरछी लकीरों की छाप होती है. इसके लिए कई रंगों का इस्तेमाल किया जाता है और बिना मशीन के इसे बनाया जाता है. पहले इस प्रिंट को सिर्फ राजस्थान के राजघरानों की महिलाओं के लिए तैयार किया जाता था, लेकिन आजकल इसका ट्रेंड देश के कई हिस्सों में बढ़ रहा है. देश के कई बड़े डिजाइन इसे आज साड़ी और सूट बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं.

कोटा डोरिया

राजस्थान के कोटा में बनने वाली कोटा डोरिया साड़ियां बहुत प्रसिद्ध हैं. इसे पहले कोटा मसूरिया कहा जाता था. रेशम और कपास का मिश्रण से कोटा डोरिया साड़ी तैयार की जाती है. रेशम कपड़े को चमक और कपास मजबूती देता है. साड़ी पर चेक पैटर्न बनाया जाता है जिसे ‘खत’ कहते हैं. इसे बनाने के लिए गड्ढे वाले करघे का उपयोग किया जाता है.

कोटा डोरिअ साड़ी

इसका वजन कम होता है. इसे बनाने के लिए कई बार सोना और चांदी के जरी का काम भी किया जाता है. इसका इतिहास बहुत पुराना है. कोटा डोरिया साड़ियां उनके डिजाइन के साथ ही हल्के होने के कारण आरामदायक होने के कारण बहुत लोकप्रिय है.

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