बिना दवा के ही स्वस्थ रहने का मंत्र

सबसे पहले महात्मा गांधी ने देश में प्राकृतिक चिकित्सा को आमजन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया था। देश के अलग-अलग भागों में स्थापित प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र आज भी मानवता के कल्याण की अलख जगा रहे हैं। देश में अन्य प्राकृतिक चिकित्सालय के साथ ही उन्होंने हरियाणा में भी इस अभियान की शुरुआत की, जिसमें गांधी आश्रम पट्टी कल्याणा समालखा भी शामिल है। दरअसल, पंचतत्व से बने इंसान के उपचार के लिये प्रकृति के पांचों तत्वों से चिकित्सा करना ही प्राकृतिक चिकित्सा के मूल सिद्धांत हैं। यह सर्वविदित सत्य है कि हमारा शरीर भी पंच तत्वों से बना है, ऐसे में यदि हम प्रकृति के विपरीत चलेंगे तो प्रकृति हमें व्याधि के रूप में सजा देती है। इसलिए हर किसी को प्रकृति के अनुरूप ही चलना चाहिए। प्रकृति को अपनाना चाहिए। मिट्टी, पानी धूप, हवा एवं आकाश तत्व की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति को गांधी जी ने गांव-गांव में प्रचार- प्रसार करके पहुंचाया।
प्राकृतिक चिकित्सा ने लोगों को बिना दवा के स्वस्थ रहने का मंत्र दिया परंतु वह मंत्र आधुनिक युग में दूर होता नजर आ रहा है। गांधी जी की सोच यह थी कि भारत के अधिकतर लोग गांव में बसते हैं तथा भारत एक कृषि प्रधान देश है। गांव में लोगों के पास पैसों का अभाव होने की वजह से लोग अपनी चिकित्सा नहीं करवा सकते। लेकिन वर्तमान में स्थिति यह है कि अधिकतर मेट्रोपॉलिटन सिटी या बड़े शहरों के बड़े लोगों की जरूरत प्राकृतिक चिकित्सा बनती जा रही है। उनका मुख्य कारण यह भी है कि गांव के लोग परिश्रमी होते हैं। वहीं उनका भोजन भी शुद्ध सात्विक होता है। शहरों में पानी-दूध, साग-सब्जी शुद्ध नहीं रहते। कंप्यूटर के इस युग में लोग मानसिक कसरत अधिक कर रहे हैं। शारीरिक कसरत बिल्कुल भी नहीं हो रही है। इसलिए रोगों का प्रभाव देश और दुनिया में बढ़ता जा रहा है, जो चिंतनीय है। दरअसल, लोगों के पास वैकल्पिक चिकित्सा का विकल्प नहीं है। हर समझदार व्यक्ति दवा लेने से बचता है क्योंकि पढ़े-लिखे समझदार व्यक्ति को मालूम है कि दवाओं से शरीर पर दुष्प्रभाव आएगा।
पिछले दिनों भारत में प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय ने विदेशों से आने वाले लोगों के लिये स्पेशल वीजा का प्रावधान किया है। यदि वे अपना उपचार करवाने के लिए भारत देश में किसी प्रकार की कोई बेहतर चिकित्सा लेने के लिए आएंगे तो पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है, वहीं पृथ्वी पर भी 70 प्रतिशत जल है तो प्राकृतिक चिकित्सा का उपचार का केंद्र भी 70 प्रतिशत जल चिकित्सा का हिस्सा है। मिट्टी चिकित्सा की यदि हम बात करें तो लोगों में बढ़ रहे पाचन संबंधी रोग में अद्भुत लाभ मिल रहा है। वहीं चर्म रोग, मोटापा से ग्रस्त लोग, इसके अलावा डिटॉक्सिफिकेशन के लिए मिट्टी चिकित्सा बहुत ही महत्वपूर्ण है जो कि हर रोगों का खात्मा कर देती है।
प्राकृतिक चिकित्सा के भौतिक सिद्धांत में आहार-विहार एवं व्यवहार पर बल दिया गया है। जब व्यक्ति का मन बीमार होता है तब स्वयं को यातना सहनी पड़ती है। प्राकृतिक चिकित्सा शिविर में बात करें तो जैसे कि हम एक गाड़ी ठीक से चले तो सर्विस कराते हैं। वहीं मोबाइल को भी चार्ज करते हैं। तो फिर स्वयं को चार्ज क्यों नहीं करते? जब तन परेशान होता है तो उसके लिए भी सर्विस की आवश्यकता पड़ती है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को भी अपने तन-मन की साधना के लिए वर्ष में दो बार योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा से अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करना चाहिए। आहार चिकित्सा की यदि हम बात करें तो शास्त्रों में भी कहा गया है कि आहार ही औषधि है। सात्विक व संतुलित आहार लेने से व्यक्ति को रोग नहीं होता। शुद्ध आहार के अभाव में व्यक्ति आज फार्महाउस में शुद्धता व शांति प्राप्त करने के लिए जा रहा है तथा जैविकता पर बल देता नजर आ रहा है।
21वीं सदी का आधुनिक जीवन मशीनीकरण से युक्त होता जा रहा है। उसको सांसारिक रिश्तों का भी पता नहीं है। मानसिक रोगों का दिन-प्रतिदिन बढ़ना यह दर्शाता है कि व्यक्ति आध्यात्मिकता से दूर होता जा रहा है, वह ध्यान करना छोड़ चुका है। जाे जीवन सुधार के लिए तय है। यह बातें व्यक्ति जानकर भी अनजान है। आज हर किसी को आवश्यकता है उस पाठशाला की, जो सही मार्ग दिशा दे सकती है। ऐसी पाठशाला प्राकृतिक चिकित्सा ही है। दरअसल, इसी मकसद से राजग सरकार ने प्राकृतिक चिकित्सा को गंभीरता से लिया और वर्ष 2018 में प्रथम प्राकृतिक चिकित्सा दिवस का शुभारंभ किया है। सदियों से चली आ रही इस समृद्ध विरासत को हम पुन: प्रतिष्ठा दे पाये तो हमारा जीवन व स्वास्थ्य भी सार्थक हो जायेगा।
