मोबाइल वॉच

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दुनिया के लगभग सभी मतों में उपवास का महत्वपूर्ण स्थान है. इसका एक वैज्ञानिक पहलू भी है. यह शरीर को स्वस्थ रखता है और अनेक शारीरिक व्याधियों से भी निजात दिलाता है. उपवास से तन और मन दोनों की शुद्धि होती है. आपने गौर किया होगा कि जब आप उपवास करते हैं, तो बेहतर महसूस करते हैं. सनातन परंपरा में तो उपवास जीवन पद्धति का एक अहम हिस्सा है.

हालांकि पुरुष प्रधान समाज में ज्यादातर कठिन उपवास महिलाओं के हिस्से में आये हैं, लेकिन हाल में मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से एक दिलचस्प खबर आयी कि वहां एक अलग तरह का उपवास रखा गया. वहां सैकड़ों लोगों ने एक दिन के लिए मोबाइल, लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाने का संकल्प लिया और अपने उपकरण एक दिन के लिए मंदिर में जमा कर दिये. इसे ई-उपवास या डिजिटल फास्टिंग का नाम दिया गया है. जैन समाज ने पर्यूषण के दौरान इसकी शुरुआत की. पर्यूषण पर्व जैन समुदाय द्वारा आत्म-शुद्धि के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है.

इस ई-उपवास में लगभग 600 लोगों ने एक दिन के लिए और 400 लोगों ने 10 दिन के लिए अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हाथ न लगाने का संकल्प लिया. आयोजकों का कहना है कि इसका मकसद लोगों से मोबाइल की लत को छुड़वाना है. जैन समाज की यह पहल सराहनीय है, क्योंकि मोबाइल एक लत व बीमारी बन चुका है. कुछ समय पहले खबर आयी कि राजस्थान के चूरू जिले में एक नवयुवक को मोबाइल की ऐसी लत लगी कि वह मानसिक रोगी बन गया है. जब तबीयत ज्यादा बिगड़ गयी, तो परिजन उसे अस्पताल ले गये. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में तो मोबाइल व इंटरनेट की बढ़ती लत से छुटकारा दिलाने के लिए मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में एक मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र स्थापित किया गया है.

देखा गया है कि मोबाइल के लती ज्यादातर चिड़चिड़ेपन और बेचैनी के शिकार हो जाते हैं. अब स्थिति यह है कि चार-पांच साल के बच्चे भी मोबाइल गेम के बिना नहीं रह पा रहे है. डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल की लत इतनी गंभीर है कि यदि किसी बालक के हाथ से मोबाइल छीन लिया जाता है, तो वह आक्रामक हो जाता है. कुछ मामलों में तो वे आत्महत्या करने तक की धमकी देने लगते हैं. कुछ अरसा पहले लखनऊ में एक बेटे ने मोबाइल फोन पर पब्जी खेलने से मना करने पर मां की गोली मार कर हत्या कर दी थी. मुंबई में मोबाइल गेम खेलने से मना करने पर एक 16 वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या कर ली.

मोबाइल की लत ने युवकों का सोना-जागना, पढ़ना-लिखना और खान-पान सब प्रभावित कर दिया है. टेक्नोलॉजी के प्रभाव में वे बेगाने से हो जा रहे हैं. इसके लिए कुछ हद तक माता-पिता भी दोषी हैं. उन्हें लगता है कि वे बच्चों को संभालने का सबसे आसान तरीका सीख गये हैं. दो-ढाई साल के बच्चे को कहानी सुनाने के बजाय मोबाइल पकड़ा दिया जाता है और जल्द ही उन्हें इसकी लत लग जाती है.

ऐसे परिदृश्य में जैन समाज ने ई- उपवास की सराहनीय पहल की है. मुझे लगता है कि अन्य पंथों को भी ऐसे कदम उठाने चाहिए. तकनीक ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है. स्थिति यह है कि मोबाइल फोन के बिना जैसे हमारा जीवन ही अधूरा है. शायद आपने अनुभव किया हो कि यदि आप कहीं मोबाइल भूल जाएं या फिर वह किसी कारण बंद हो जाए, तो आप कितनी बेचैनी महसूस करते हैं.

दरअसल, मोबाइल फोन की हम सभी को लत लग गयी है. व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर तो जीवन की जरूरतों में कब शामिल हो गये, हमें पता ही नहीं चला. मैंने पाया कि कुछ लोगों को रील और वीडियो की ऐसी लत है कि वे थोड़ी-थोड़ी देर में न देखें, तो परेशान हो उठते हैं. यह सही है कि टेक्नोलॉजी की ताकत इतनी है कि उसके प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है. युवकों को तो छोड़िए, हम-आप भी इससे मुक्त नहीं रह सकते हैं, लेकिन युवा पीढ़ी को इसने व्यापक रूप से प्रभावित किया है. वे घर के किसी अंधेरे कमरे में हर वक्त मोबाइल में उलझे रहते हैं. अब खेल के मैदानों में आपको गिने-चुने बच्चे ही नजर आयेंगे.

एक बात और, मैंने नोटिस की कि माता-पिता भी बच्चे से कुछ कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ कर न ले. अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाय सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क न हों, लेकिन मानसिक रूप से हो जाते हैं. उनकी बातचीत, आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है. एक गंभीर स्थिति निर्मित होती जा रही है. दिक्कत यह है कि हम सब चाहते हैं कि देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी

आए, लेकिन उसके साथ किस तरह तारतम्य बिठाना है, इस पर विचार नहीं करते.

नोकिया वार्षिक मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडेक्स रिपोर्ट, 2022 से पता चलता है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक डेटा उपयोग करने वाले देशों में है. भारत में लोग अन्य देशों की तुलना में स्मार्ट फोन पर औसतन ज्यादा समय बिताते हैं. रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्ट फोन पर वीडियो देखने का चलन खासा बढ़ा है और यह 2025 तक बढ़ कर चार गुना तक हो जायेगा. भारत में 2021 में डेटा ट्रैफिक में 31 फीसदी की वृद्धि हुई और औसत मोबाइल डेटा खपत प्रति उपयोगकर्ता प्रति माह 17 जीबी तक पहुंच गयी है.

कोराना से पहले मुझे लंदन में बीबीसी द्वारा आयोजित मीडिया लीडरशिप इवेंट में हिस्सा लेने का मौका मिला. इसमें बदलते तकनीकी परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा हुई. इस दौरान एक दिलचस्प तथ्य भी सामने आया कि यूरोप में मोबाइल इस्तेमाल करने वाले औसतन दिन में 2617 बार अपने फोन स्क्रीन को छूते हैं. निश्चित रूप से इस औसत में और वृद्ध हुई होगी. मुझे लगता है कि भारत भी इस मामले में बहुत पीछे नहीं होगा. डेलॉइट के 2022 ग्लोबल टीएमटी अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 2026 तक 100 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता होंगे. यह बहुत बड़ी संख्या है. इससे अंदाजा लगता है कि हमारे जीवन में तकनीक का हस्तक्षेप कितना बढ़ गया है. हमें तत्काल नयी परिस्थितियों के विषय में गंभीरता से विचार करना होगा.

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