आवाज़: क्या 'टैक्स' अब सिर्फ रसूखदारों के लिए एक 'जुर्माना' बन गया है?

भीलवाड़ा में जब डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) की टीम ने बीजेपी नेता के बेटे के घर पर छापा मारा, तो यह सिर्फ एक खबर नहीं थी। यह उन सभी सवालों की प्रतिध्वनि थी, जो हमारे समाज में वर्षों से गूँज रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कानून और नियम-कायदे सिर्फ आम आदमी के लिए हैं? क्या कुछ लोग, जिनकी पहुँच और रुतबा है, देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने के बाद भी सिर्फ एक जुर्माना देकर बच निकलेंगे?

करोड़ों की 'चोरी' बनाम 'वसूली' का गणित

डीजीजीआई की कार्रवाई में 13 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी का खुलासा हुआ, लेकिन वसूले गए 8.30 करोड़ रुपये। इस गणित ने लोगों के मन में एक गहरा अविश्वास पैदा कर दिया है। सोशल मीडिया से लेकर गलियारों तक, हर जगह एक ही सवाल पूछा जा रहा है: "ऐसे तो करोड़ों कमाओ, और पकड़े जाओ तो बस पैसा जमा कराकर जेल मत जाओ?" यह धारणा आम हो रही है कि हमारे यहाँ भ्रष्टाचार अब एक आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि एक 'व्यापारिक जोखिम' बन गया है, जिसकी कीमत पकड़े जाने पर कुछ करोड़ रुपये देकर चुकाई जा सकती है।

यह तस्वीर हमारे देश के उन लाखों ईमानदार करदाताओं के लिए अपमानजनक है, जो अपनी मेहनत की कमाई से पाई-पाई का हिसाब देकर टैक्स भरते हैं। एक आम नौकरीपेशा व्यक्ति की सैलरी से हर महीने टीडीएस कट जाता है। एक छोटा दुकानदार जीएसटी भरने के लिए दिन-रात माथापच्ची करता है। ये लोग 500 रुपये के बिजली के बिल में देरी होने पर परेशान हो जाते हैं, लेकिन कुछ रसूखदार लोग करोड़ों रुपये की टैक्स चोरी को सिर्फ एक पेनल्टी देकर निपटा लेते हैं।

राजनीतिक संरक्षण और काले कारनामे

यह कोई छिपा हुआ रहस्य नहीं है कि अक्सर ऐसे बड़े मामले तब सामने आते हैं जब राजनीतिक संरक्षण ढीला पड़ जाता है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सत्ता और व्यापार का गठजोड़ किस तरह से देश को नुकसान पहुँचा रहा है। भीलवाड़ा के लोग, खासकर वे जो ईमानदारी और मेहनत पर विश्वास करते हैं, इस घटना से आहत हैं। सफेदपोश चेहरों के पीछे छिपी काली करतूतों को देखकर वे निराश हैं।

यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति या एक पार्टी के बारे में नहीं है। यह उस पूरे सिस्टम के बारे में है, जिसमें आम जनता का विश्वास कमजोर हो रहा है। अगर बड़े लोग कानून से बच निकलेंगे, तो समाज में नैतिकता और ईमानदारी का पाठ कौन पढ़ाएगा? क्या हमारे बच्चे यह सीखकर बड़े होंगे कि सफल होने के लिए नियम तोड़ना ज़रूरी है, और पकड़े जाने पर बस 'जुर्माना' भर देना काफी है?

यह भीलवाड़ा के लिए एक मौका है, एक आइना है। यह समय है कि हम इन सवालों को सिर्फ फुसफुसाहटों में न रखें, बल्कि ऊँची आवाज़ में पूछें। असली 'भारत' तब बनेगा जब हर नागरिक के लिए एक ही कानून होगा—गरीब हो या अमीर, आम आदमी हो या राजनेता। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक ये 'जुर्माने' सिर्फ़ न्याय का मज़ाक उड़ाते रहेंगे।

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