चुनाव परिणाम से पहले और चुनाव परिणाम के बाद.....कारोबार

अपने यहां तो चुनावी मौसम समाप्त हो चुकाहै लेकिन अपना नाम आने वाले हैं ऐसे समय मेंहार जीत के दावे प्रति दावे किए जा रहे लेकिन परिणाम आने के बाद की भी हम चर्चा कर ले तो आइए जानते हे

चुनाव में कई कारोबार चल निकलते हैं। टैंट वाले का, लाउडस्पीकर वाले का, दरी वाले का, माइक वाले का, अब उन लोगों का कारोबार चमकेगा, जो हारने वालों को कंसल्टेंसी देंगे। हारने के बाद कैंडिडेट तरह-तरह की कंसल्टेंसी खोजता है। यह अलग बात है कि हारने वाले को कंसल्टेंसी देना जोखिम का काम है। जो कैंडिडेट हार जाता है, उसे कई तरह के बंदे खोजते हैं, भुगतान वसूलने के लिए। तो पहली कंसल्टेंसी चुनावी कंसल्टेंसी देने वालों के लिए यह है कि सावधानी से कंसल्टेंसी दीजिये। डूबे हुए कैंडिडेट के साथ रकम भी डूबने का खतरा है। हारने के बाद ये बहाने दिये जा सकते हैं :-

गर्मी बहुत थी चुनाव के दिन। चुनाव अगर ठंड में हों तो तर्क यह दिया जा सकता है कि ठंड बहुत थी। इसमें सीधा-सीधा जिम्मा मौसम पर है।

एक बहाना यह भी दिया जा सकता है कि नैतिक जीत मेरी हुई है। नैतिक जीत इन दिनों फैशनेबल हो गयी है। हालांकि नैतिक तौर पर जीते हुए को सब बेवकूफ ही मानते हैं, क्योंकि नैतिकता के लिए कोई चुनाव न लड़ता। चुनाव सब जीतने के लिए ही लड़ते हैं। हार हाथ आ जाती है, तो कहते हैं कि नैतिक जीत हो गयी है। नैतिक जीत हार की पैकिंग में आती है। नैतिक जीत मिल जाती है। नैतिक जीत का मतलब होता है कि धक्का खाकर गिरें, तो बतायें कि यह तो हमारी स्टाइल है।

एक और बहाना –ईवीएम, जो जीत जाता है, वह जीतकर घर जाता है, जो हार जाता है, वह ईवीएम की जान को रोता है। ईवीएम की आफत है कि कोई न कोई तो उसे कोसता ही है। ईवीएम का हाल घर की उस प्रताड़ित बहू की तरह का है, जो चाय जल्दी बनाकर सास को दे दे, सास कोसती है-इतनी सुबह चाय बनाकर दे दी, बहू चाहती ही नहीं कि मैं ढंग से नींद ले सकूं। नींद पूरी न होगी, तो हार्ट अटैक आ सकता है। ये बहू मुझे मार के ही मानेगी। बहू चाय थोड़ी देर से बनाकर दे, तो फिर सास कोसे-बताओ दोपहर होने को आयी, अब तो खाने का वक्त हो गया और यह बहूरानी चाय पिला रही है। ईवीएम और प्रताड़ित बहू में एक फर्क यह है कि प्रताड़ित बहू का वक्त बदलता भी है। बहू बदले हुए वक्त में इतनी पावरफुल हो जाती है कि फिर वह सास को प्रताड़ित करने की ताकत में आ जाती है।

एक और बहाना यह भी दिया जा सकता है कि पार्टी तो जीत ही गयी थी, बस कैंडिडेट खराब आ गया।

हारने के बाद वैसे कैंडिडेट को यह करना चाहिए कि बहाने देने के लिए भी रुकना नहीं चाहिए, उसे निकल लेना चाहिए कहीं भी। हारा हुआ नेता और बुझा हुआ दीपक-किसी काम के नहीं होते

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