ये जो पब्लिक हे सब जानती हैं...: बीमारी, दवा और सावधानी

डॉ. प्रवीण चोपड़ा
देसी दवाइयों के नाम पर भी जो गड़बड़ घोटाला हो रहा है, उसके बारे में खबरें आती तो हैं, लेकिन हम लोगों को व्हाट्सएप से कहां इतनी फुर्सत है कि हम उस पर ज़्यादा सोचें। देसी से मेरा मतलब आयुर्वेदिक नहीं है, वह तो एक अहम भारतीय चिकित्सा पद्धति है। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व देसी के नाम पर ऐसे ही कुछ अजीबोगरीब बेचते रहते हैं जिससे फायदा तो दूर, नुकसान ज़रूर हो जाते हैं। तीस-चालीस साल पहले सुनते थे कि घुटने के दर्द के लिए शर्तिया इलाज की दुहाई देने वालों की पोल तब खुलती जब पता चलता कि स्टीरॉयड नाम की दवा मिला दी जाती थी। यह तो एक मिसाल है, लेकिन ऐसा और क्या-क्या, कहां-कहां हो रहा है, कोई कुछ कह नहीं सकता।
आज मुझे लंबे अरसे के बाद यह स्टीरॉयड वाली बात इसलिए याद आई कि हमारे एक साथी डॉक्टर ने एक अखबार की क्लिपिंग शेयर की, जिसे पढ़कर किसी के भी पैरों तले से ज़मीन खिसक जाए। खबर में बताया गया है कि देसी दवाइयां, जो मधुमेह के लिए बेची जा रही थीं, उनमें मधुमेह की एलोपैथिक दवाइयों की दस गुना मात्रा पाई गई। इस गोलमाल का पर्दाफाश तब हुआ जब कोई वीआईपी ऐसी दवाई ले रहा था। तीन दिन बाद ही उसका ब्लड शुगर स्तर इतना नियंत्रण में आ गया कि उसे इंसुलिन लेने की ज़रूरत ही न पड़ी। उसने आयुर्वेदिक विशेषज्ञों से बात की। वे भी इस चमत्कार पर हैरान हुए। उन्होंने दवाई की टेस्टिंग की सलाह दी। तब मामले का खुलासा हुआ।
सोचने वाली बात तो यह है कि एलोपैथिक डॉक्टर तो इस तरह की दवाइयां लिखते वक्त कई तरह के जमा-घटा करते हैं, मरीज़ की उम्र, वजन, उससे जुड़े अन्य पैरामीटर्स देखकर, जांच कर मधुमेह की दवाई की डोज़ तय करते हैं, लेकिन देखिए किस तरह से दस गुना डोज़ देसी दवाई के नाम पर उन्हें परोसी जा रही थी। यह मामला सामने आ गया, न जाने कितनी जगह ऐसा चल रहा होगा।
आपको क्या लगता है इनकी क्या सज़ा होनी चाहिए? 'रोटी' फिल्म का एक गीत था, जो 1974 में आई थी। उसका गाना 'यह जो पब्लिक है, सब जानती है' रोमांचित करता था। लेकिन आज पचास साल बाद यही लगता है कि पब्लिक कुछ नहीं जानती, बड़ी ताकतें, राजनीतिक, व्यापारिक और धार्मिक सब कुछ जानती हैं कि कैसे जनता का इस्तेमाल करना है। और कुछ नहीं, बस, आराम से गाना सुनिए। सावधान रहिए।
साभार : डॉ. प्रवीन चोपड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम