हरी चुनर में लिपटी धरती और हरे बिंदी में सजी नारी – यही है हरियाली तीज

हरी चुनर में लिपटी धरती और हरे बिंदी में सजी नारी – यही है हरियाली तीज
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सावन की पहली बौछार पड़ते ही धरती जैसे सजीव हो उठती है — वह हरी चुनर ओढ़ती है, नदियां गीत गाती हैं, और पेड़ झूम-झूम कर हरियाली की आरती उतारते हैं। उसी हरियाली का उत्सव है – हरियाली तीज।

यह त्योहार केवल परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति, नारी और आध्यात्म के गहरे संगम का पर्व है।

🌿 सावन: जब प्रकृति करती है श्रृंगार

सावन का महीना आते ही ग्रीष्म की तपती रेत पर हरियाली की चादर बिछ जाती है। बादलों की गरज, बिजली की कौंध और बूँदों की ठिठोली — सब मिलकर जैसे धरती को नवजीवन देते हैं। और इसी समय देवाधिदेव शिव भी कैलाश से उतरकर अपनी धरती पर समय बिताते हैं।


यह सिर्फ मौसम नहीं, एक भाव है — ईश्वर का अपनी सृष्टि से साक्षात्कार।

📅 हरियाली तीज कब है?

श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि इस बार 26 जुलाई 2025 रात 10:41 बजे से शुरू होकर 27 जुलाई 2025 रात 10:41 बजे तक रहेगी।

उदयातिथि के अनुसार व्रत और उत्सव 27 जुलाई, रविवार को मनाया जाएगा।

👰 हरियाली तीज: नारी, श्रृंगार और शक्ति का उत्सव

इस दिन महिलाएं हरे वस्त्र पहनती हैं, हरी चूड़ियां, बिंदी और मेहंदी से खुद को सजाती हैं। यह रंग न केवल सावन की हरियाली का प्रतीक है, बल्कि स्त्री की ऊर्जा, प्रजनन शक्ति और सौंदर्य का भी प्रतीक है।

यह पर्व स्त्रीत्व के सौंदर्य और गरिमा का उत्सव है — जीवनदायिनी प्रकृति और नारी दोनों का समान रूप से वंदन।

🕉️ पौराणिक कथा: तप, रंग और सौंदर्य

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार शिवजी ने मां काली के रंग को लेकर विनोद किया। इस पर पार्वतीजी रूठ गईं और कठोर तप में लीन हो गईं। तप के प्रभाव से उनका रंग गौरवर्ण हो गया, और वे "गौरी" कहलाईं।

यह कथा इस बात को दर्शाती है कि प्राकृतिक जीवनशैली (नेचुरोपैथी) से आंतरिक और बाह्य सौंदर्य दोनों ही निखरते हैं।

📖 लोककथा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

‘व्रतराज’ ग्रंथ के अनुसार, सावन की तृतीया पर देवी पार्वती ने एक राजा को रक्षा-सूत्र बांधा था, जिससे एक मुरझाया वृक्ष फिर से हरा हो गया। तभी से इस पर्व को "हरियाली तीज" कहा जाने लगा।

यह पर्व केवल पूजा का नहीं, बल्कि वृक्षारोपण, पर्यावरण-संरक्षण और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुका है।

🌱 स्वास्थ्य, प्रकृति और स्त्री का जुड़ाव

हरियाली तीज पर हरे वस्त्र पहनने की परंपरा सिर्फ सजने-संवरने तक सीमित नहीं। यह रंग शांति, उर्वरता और चक्रों की संतुलन ऊर्जा से जुड़ा है।

पीपल, वटवृक्ष, तुलसी जैसे पौधे नारी स्वास्थ्य में लाभकारी माने जाते हैं — और यही पेड़ इस मौसम में पूजा का हिस्सा भी बनते हैं।

🔚 हरियाली तीज: सिर्फ पर्व नहीं, प्रकृति के प्रति आभार

हरियाली तीज केवल शिव-पार्वती की कथा नहीं है, यह धरती की देह पर चढ़ाया गया श्रृंगार है, जो हमें याद दिलाता है —

“जब तक धरती हरी है, तब तक जीवन संभव है।”

स्त्री और प्रकृति — दोनों सृजन की वाहक हैं, और हरियाली तीज उन्हें समर्पित एक सुंदरतम उत्सव है।

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