भीलवाड़ा जिले में मिले कई प्राचीन अवशेष

भीलवाड़ा जिले में मिले कई प्राचीन  अवशेष
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भीलवाड़ा। पुर प्राचीन वैभव महोत्सव 2024

द्वितीय दिवस पुरा स्थल कुम्हारिया- पातलियास में महोत्सव मनाया

जलधारा विकास संस्थान के द्वारा साहित्य संस्थान जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड यूनिवर्सिटी) उदयपुर के तत्वाधान में माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय भीलवाड़ा व शिक्षा विभाग भीलवाड़ा के सहभागिता से श्री नाकोड़ा इंफ्रा स्टील प्राइवेट लिमिटेड की प्रयोजन व आरसीएम समूह के सहयोग से पुरातात्विक विशेषताओं के ग्राम कुम्हारिया में प्राचीन सभ्यता स्थल का निरीक्षण करने के लिए उदयपुर से बड़ी संख्या में रिसर्च स्टूडेंट वहां के निदेशक डॉ जीवन सिंह खड़कवाल के नेतृत्व में पहुंचे । जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश नवहाल ने बताया कि पुरा विशेषज्ञों के दल ने इस पुरास्थल का बारीकी से अध्ययन व निरीक्षण किया। पुरा साइट के चारों ओर घूम घूम कर प्राचीन सभ्यता के निशानों व अवशेषों को देखा। आज यहां अवशेषों में मृदभांड के टुकड़े ,ठीकरी, सेल बेन्गल, पत्थर के औजार और पुरा सामग्रियां मिली। डा. खरकवाल ने इन पुरा सामग्रियों को एक साथ जमा कर सभी स्टूडेंट को एक-एक वस्तु के बारे में बताया। इस स्थल पर बूंदी के प्रसिद्ध पुरा तात्विक खोजकर्ता ओम प्रकाश कुकी ने छात्रों को साइट की विशेषताओं की जानकारी दी। इस साइट पर 5000 से अधिक वर्ष 3000 से अधिक वर्ष और 1500 से अधिक वर्ष की तीन बसावट के चिन्ह पाये गए। जिसमें आहड़ सभ्यता, प्रारम्भिक और मध्यकाल पाषाण काल , ताम्र काल व मोर्यकाल व कुशान काल की सभ्यता का जिक्र श्री कुुकी ने किया ।श्री कुकी ने यह भी बताया कि यह साइट बनास नदी के किनारे और एक ऊंचे स्थल पर सभ्यता के रूप में स्थापित थी। यहां का निवासी आसपास की कई बसावटों के संपर्क में था। सेल बेन्गल चूड़ी के टुकड़े यहां पाये गए । शैैल बैन्गल की चूड़ियां यहां नहीं होती यह समुद्र के किनारे होने वाली वस्तु है पर यहां उसकी चूड़ियां मिली, इससे प्रमाण यह होता है कि यहां के निवासी व्यापारिक रूप से समुद्र के किनारे के लोगों से जुड़े थे । वहां के उत्पाद यहां पर आते थे । यह विभिन्न व्यावसायिक मार्गो से भी यह स्थान कई जगह से जुड़ा था। इस साइट के निरीक्षण अवलोकन के पश्चात छात्र व पुरा विशेषज्ञ निकटवर्ती पतलियास ग्राम पहुंचे। जहां पर गौरव गान एवं संरक्षण कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यशाला की अध्यक्षता डॉक्टर रामेश्वर जीनगर एवं प्रधानाचार्य ने की । इस कार्यशाला में सुप्रसिद्ध पुरातत्विता ओमप्रकाश कुकी एवं साहित्य संस्थान की फैकल्टी नारायण पालीवाल एवं दो चितवन चिंतन ठाकुर ने इस स्थान को संरक्षित करने के लिए छात्रों को प्राचीन सभ्यता की जानकारी दी उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थान यहां आस-पास रहने वाले लोग बचा सकते हैं । यह सभ्यता के रूप में स्थापित स्थल सुरक्षित रह सके यहां के लोग तीन बार बेस उजड़े और उनके अवशेष आज भी यहां पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं और कई बार बेसन उजाड़ने के बाद आज भी कुमारिया गांव बसा हुआ है इससे यह सिद्ध होता है यह जीवंत गांव है। पुरा स्थल पर आज वर्तमान में मंदिर धर्मशाला आदि का निर्माण हो भी रहा है और आगे भी चल रहा है इससे इस क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ेगी। छात्रों से आव्हान यह भी किया कि इस साल की कोई खुदाई ना करें इसलिए सबको इस तैयार रहना होगा कि कोई इसकी खुदाई ना कर सके।इससे इस स्थान के पुरातात्विक अवशेषों से छेड़छाड़ नहीं होगी। इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए इतिहास संकलन समिति उदयपुर के चैनसुख दशोरा ने यह बताया कि हमारी प्राचीन चीजों को हमें संजोना होगा जिससे इतिहास की सही जानकारी हम आगे की पीढ़ी तक पहुंचा सके ।

इस कार्यशाला के उपरांत द्वितीय कार्यशाला स्थानीय माणिक्य लाल वर्मा राजकीय उच्च राजकीय महाविद्यालय में आयोजित की गई। इसी कार्यशाला में साहित्य संस्थान डिम्ड यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ जीवन सिंह खरकवाल ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से भीलवाड़ा जिले की ऐतिहासिक सम्पदा को बताया। भूवैज्ञानिक डा. कमलकांत शर्मा ने इसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया ।डॉक्टर खड़कवाल ने कहा कि हमारा भीलवाड़ा पुर प्राचीन वैभव महोत्सव 2024

द्वितीय दिवस

पुरा स्थल कुम्हारिया- पातलियास में महोत्सव मनाया

जलधारा विकास संस्थान के द्वारा साहित्य संस्थान जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड यूनिवर्सिटी) उदयपुर के तत्वाधान में माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय भीलवाड़ा व शिक्षा विभाग भीलवाड़ा के सहभागिता से श्री नाकोड़ा इंफ्रा स्टील प्राइवेट लिमिटेड की प्रयोजन व आरसीएम समूह के सहयोग से पुरातात्विक विशेषताओं के ग्राम कुम्हारिया में प्राचीन सभ्यता स्थल का निरीक्षण करने के लिए उदयपुर से बड़ी संख्या में रिसर्च स्टूडेंट वहां के निदेशक डॉ जीवन सिंह खड़कवाल के नेतृत्व में पहुंचे । जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश नवहाल ने बताया कि पुरा विशेषज्ञों के दल ने इस पुरास्थल का बारीकी से अध्ययन व निरीक्षण किया। पुरा साइट के चारों ओर घूम घूम कर प्राचीन सभ्यता के निशानों व अवशेषों को देखा। आज यहां अवशेषों में मृदभांड के टुकड़े ,ठीकरी, सेल बेन्गल, पत्थर के औजार और पुरा सामग्रियां मिली। डा. खरकवाल ने इन पुरा सामग्रियों को एक साथ जमा कर सभी स्टूडेंट को एक-एक वस्तु के बारे में बताया। इस स्थल पर बूंदी के प्रसिद्ध पुरा तात्विक खोजकर्ता ओम प्रकाश कुकी ने छात्रों को साइट की विशेषताओं की जानकारी दी। इस साइट पर 5000 से अधिक वर्ष 3000 से अधिक वर्ष और 1500 से अधिक वर्ष की तीन बसावट के चिन्ह पाये गए। जिसमें आहड़ सभ्यता, प्रारम्भिक और मध्यकाल पाषाण काल , ताम्र काल व मोर्यकाल व कुशान काल की सभ्यता का जिक्र श्री कुुकी ने किया ।श्री कुकी ने यह भी बताया कि यह साइट बनास नदी के किनारे और एक ऊंचे स्थल पर सभ्यता के रूप में स्थापित थी। यहां का निवासी आसपास की कई बसावटों के संपर्क में था। सेल बेन्गल चूड़ी के टुकड़े यहां पाये गए । शैैल बैन्गल की चूड़ियां यहां नहीं होती यह समुद्र के किनारे होने वाली वस्तु है पर यहां उसकी चूड़ियां मिली, इससे प्रमाण यह होता है कि यहां के निवासी व्यापारिक रूप से समुद्र के किनारे के लोगों से जुड़े थे । वहां के उत्पाद यहां पर आते थे । यह विभिन्न व्यावसायिक मार्गो से भी यह स्थान कई जगह से जुड़ा था। इस साइट के निरीक्षण अवलोकन के पश्चात छात्र व पुरा विशेषज्ञ निकटवर्ती पतलियास ग्राम पहुंचे। जहां पर गौरव गान एवं संरक्षण कार्यशाला का आयोजन हुआ। इस कार्यशाला की अध्यक्षता डॉक्टर रामेश्वर जीनगर एवं प्रधानाचार्य ने की । इस कार्यशाला में सुप्रसिद्ध पुरातत्विता ओमप्रकाश कुकी एवं साहित्य संस्थान की फैकल्टी नारायण पालीवाल एवं दो चितवन चिंतन ठाकुर ने इस स्थान को संरक्षित करने के लिए छात्रों को प्राचीन सभ्यता की जानकारी दी उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थान यहां आस-पास रहने वाले लोग बचा सकते हैं । यह सभ्यता के रूप में स्थापित स्थल सुरक्षित रह सके यहां के लोग तीन बार बेस उजड़े और उनके अवशेष आज भी यहां पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं और कई बार बेसन उजाड़ने के बाद आज भी कुमारिया गांव बसा हुआ है इससे यह सिद्ध होता है यह जीवंत गांव है। पुरा स्थल पर आज वर्तमान में मंदिर धर्मशाला आदि का निर्माण हो भी रहा है और आगे भी चल रहा है इससे इस क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ेगी। छात्रों से आव्हान यह भी किया कि इस साल की कोई खुदाई ना करें इसलिए सबको इस तैयार रहना होगा कि कोई इसकी खुदाई ना कर सके।इससे इस स्थान के पुरातात्विक अवशेषों से छेड़छाड़ नहीं होगी। इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए इतिहास संकलन समिति उदयपुर के चैनसुख दशोरा ने यह बताया कि हमारी प्राचीन चीजों को हमें संजोना होगा जिससे इतिहास की सही जानकारी हम आगे की पीढ़ी तक पहुंचा सके ।

इस कार्यशाला के उपरांत द्वितीय कार्यशाला स्थानीय माणिक्य लाल वर्मा राजकीय उच्च राजकीय महाविद्यालय में आयोजित की गई। इसी कार्यशाला में साहित्य संस्थान डिम्ड यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ जीवन सिंह खरकवाल ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन से भीलवाड़ा जिले की ऐतिहासिक सम्पदा को बताया। भूवैज्ञानिक डा. कमलकांत शर्मा ने इसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया ।डॉक्टर खड़कवाल ने कहा कि हमारा बिजोलिया से लेकर बागोर तक और नान्दशा तक का पूरा क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर का स्थान है। नान्दशा यूप का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्तंभ को 1800 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं ।जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है ऐसा स्तम्भ उत्तर भारत में कहीं नहीं है। बागोर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बागोर की सभ्यता के शोध पत्र को पूरे विश्व में अत्यंत सम्मान के साथ पढ़ा जाता है। बागोर ने ही विश्व को खेती करना सिखाया है। खेती के प्रमाण इस साइट के पहले कहीं नहीं मिले हैं ।इस साइट पर मिले प्रमाण भारत में किसी भी साइट पर मिले प्रमाणों से ज्यादा है ।यहां के निवासी जानवर पालना आरंभ हो गए थे। जिसमें कुत्ते पालने का भी यहां पर चिन्ह मिला है। इस साइट के अलावा भी आहड़ सभ्यता के लगभग 200 स्थान माने जाते है उनमें भीलवाड़ा लगभग 60 स्थान का गवाक्ष है ।

आज के गौरवगान कार्यशाला में भगवान गुजर, उदयलाल गूजर, राघव सोमाणी, दिनेश वैष्णव, कैलाश जाट सहित कई ग्रामजन उपस्थित थे ।

बालकृष्ण शर्मा

सचिव

जलधारा विकास संस्थान

भीलवाडाऔर नान्दशा तक का पूरा क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर का स्थान है। नान्दशा यूप का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्तंभ को 1800 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं ।जो अपने आप में बहुत बड़ी बात है ऐसा स्तम्भ उत्तर भारत में कहीं नहीं है। बागोर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बागोर की सभ्यता के शोध पत्र को पूरे विश्व में अत्यंत सम्मान के साथ पढ़ा जाता है। बागोर ने ही विश्व को खेती करना सिखाया है। खेती के प्रमाण इस साइट के पहले कहीं नहीं मिले हैं ।इस साइट पर मिले प्रमाण भारत में किसी भी साइट पर मिले प्रमाणों से ज्यादा है ।यहां के निवासी जानवर पालना आरंभ हो गए थे। जिसमें कुत्ते पालने का भी यहां पर चिन्ह मिला है। इस साइट के अलावा भी आहड़ सभ्यता के लगभग 200 स्थान माने जाते है उनमें भीलवाड़ा लगभग 60 स्थान का गवाक्ष है ।

आज के गौरवगान कार्यशाला में भगवान गुजर, उदयलाल गूजर, राघव सोमाणी, दिनेश वैष्णव, कैलाश जाट सहित कई ग्रामजन उपस्थित थे ।

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