“ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” के बीच सरकारी स्कूलों में मोदी के नाम की किताबों की खरीदगड़बड़ियां पर उठे सवाल

“ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” के बीच सरकारी स्कूलों में मोदी के नाम की किताबों की खरीदगड़बड़ियां पर उठे सवाल
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प्रदेश के सरकारी स्कूलों में हाल ही में वितरित की गई “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरक विचार” नामक पुस्तक ने नए विवाद को जन्म दे दिया है। शिक्षा विभाग द्वारा इन पुस्तकों की सप्लाई की गई, लेकिन अब इनके दाम और गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।जब प्रधानमंत्री स्वयं कहते हैं “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा”, तो फिर उनके नाम की किताब सरकारी स्कूलों में खरीद में इस तरह की गड़बड़ियां क्यों हो रही हैं—यही सवाल अब प्रदेशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है।

जानकारी के अनुसार सीकर के सरकारी स्कूलों में स्पोर्ट्स किट घोटाले के बाद, राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद ने मई-जून में सरकारी स्कूलों में पुस्तकालय हेतु ये किताबें भेजीं। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेरक विचार नामक पुस्तक पर 300 रुपए अंकित मूल्य है, जबकि यही किताब ऑनलाइन मात्र 117 रुपए में उपलब्ध है। इसी प्रकार, जानिए संघ को नामक पुस्तक का मूल्य 200 रुपए है, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सिर्फ 117 रुपए में मिल रही है। यानी सरकार ने जिन दामों पर किताबें खरीदीं, वही किताबें आम जनता को आधी कीमत पर मिल रही हैं।

मामला यहीं तक सीमित नहीं है। कई अन्य पुस्तकों की कीमत और सामग्री में भी भारी असमानता सामने आई है। जैसे कि गाथा पन्नाधाय की नामक डबल कलर पुस्तक में केवल 24 पृष्ठ हैं, जिनमें आधे पृष्ठ चित्रों से भरे हुए हैं, लेकिन इसकी कीमत 150 रुपए अंकित है। इसी तरह, स्वामी रामतीर्थ पुस्तक मात्र 16 पृष्ठ की है और इसका मूल्य 75 रुपए तय किया गया है।

वहीं, निजी प्रेस संचालकों का दावा है कि वे ऐसी ही किताबें आधी कीमत में छापकर देने को तैयार हैं। ऐसे में यह स्पष्ट हो रहा है कि पुस्तक खरीद में पारदर्शिता की कमी रही है।

स्पोर्ट्स किट घोटाले के बाद शिक्षा विभाग से जुड़ा यह एक और मामला सामने आने पर विपक्ष और जनप्रतिनिधि सरकार से जवाब मांग रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि जब प्रधानमंत्री का नारा ही भ्रष्टाचार मुक्त भारत का है, तो फिर सरकारी तंत्र में ऐसे खेल कैसे संभव हो रहे हैं।


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