भीलवाड़ा से 101 पदयात्रियों का दल पहुंचा: भक्ति में डूबा गढ़बोर का जलझूलनी एकादशी मेला

भीलवाड़ा से 101 पदयात्रियों का दल पहुंचा: भक्ति में डूबा गढ़बोर का जलझूलनी एकादशी मेला
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राजसमंद — आस्था और भक्ति की लहरों पर सवार होकर मेवाड़ का प्रसिद्ध जलझूलनी एकादशी मेला शुरू हो चुका है। राजसमंद जिले के आमेट कस्बे में स्थित श्री चारभुजा गढ़बोर मंदिर के इस पावन मेले में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है। इसी आस्था के सैलाब का हिस्सा बनने के लिए भीलवाड़ा से 101 पदयात्रियों का एक विशाल दल मंगलवार को आमेट पहुंचा। इस दल में 20 से अधिक महिलाएं भी शामिल हैं, जो बताती हैं कि प्रभु की भक्ति में कोई भेद नहीं होता।

भक्ति और सेवा का अनुपम संगम

श्री चारभुजा मित्र मंडल आमेट ने इन पदयात्रियों की सेवा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की हैं। मंडल के अनिल शर्मा ने बताया कि यात्रियों के ठहरने के लिए बड़ा शामियाना लगाया गया है। पिछले 18 वर्षों से यह मंडल बिना रुके, बिना थके 24 घंटे अल्पाहार की सेवा दे रहा है। यहां भक्तों को ससम्मान बैठाकर भोजन कराया जाता है, जो सेवा भाव का एक अनुपम उदाहरण है।

समाज की विभिन्न संस्थाएं भी इस पुनीत कार्य में पीछे नहीं हैं। जगह-जगह यात्रियों की सुविधा के लिए स्टॉल लगाए गए हैं। मंडल के कार्यकर्ता और महिलाएं लगातार सेवा में जुटे हुए हैं, जिससे यह पूरा क्षेत्र भक्ति और सेवा के रंगों से सराबोर हो गया है।

प्रभु की जलयात्रा और लाल गुलाल का उल्लास

भीलवाड़ा से आया यह दल बुधवार को दशमी के दिन चारभुजा मंदिर पहुंचेगा और ग्यारस की शोभायात्रा में शामिल होगा। चारभुजानाथ मंदिर में लगने वाला यह मेला केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि कई राज्यों से भक्तों को अपनी ओर खींचता है।

परंपरा के अनुसार, जलझूलनी एकादशी के दिन पुजारी ठाकुरजी की मूर्ति को केवड़े के पत्तों में लपेटकर अपने माथे पर रखेंगे। इसके बाद ठाकुरजी की मूर्ति को दूध तलाई की परिक्रमा करवाई जाएगी। इस दौरान, भक्त पूरे क्षेत्र को लाल गुलाल से पाट देंगे, जो उत्सव और उल्लास का प्रतीक है।

यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और सामुदायिक सेवा का एक जीता-जागता प्रमाण है। यह बताता है कि आज भी भक्ति की डोर कितनी मजबूत है, जो लोगों को हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने आराध्य के दर्शन के लिए खींच लाती है।

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