जीवन में राम कृपा, ज्ञान, संत दर्शन पर विश्वास से ही ईश्वर के प्रति अनुराग संभव – दीदी मंदाकिनी

जीवन में राम कृपा, ज्ञान, संत दर्शन पर विश्वास से ही ईश्वर के प्रति अनुराग संभव – दीदी मंदाकिनी
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निंबाहेड़ा BHNअयोध्या की राम कथा मर्मज्ञ दीदी मंदाकिनी रामकिंकर ने कहा कि भक्ति का आधार ही विश्वास हैं और जीवन में राम कृपा ज्ञान, संत दर्शन और विश्वास उत्पन्न होने से ही ईश्वर के प्रति अनुराग संभव हैं। दीदी मंदाकिनी शुक्रवार को 20 वें कल्याण महाकुंभ के तृतीय दिवस राम कथा मंडप में व्यासपीठ से राम कथा का रसामृतपान करा रही थी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म कदापि अंध विश्वास को बढावा नहीं देता हैं और मानस का विश्वास त्रिनेत्र हैं, जो जीवन में जरूरी हैं। उन्होंने मानस के बाल काण्ड में समुद्र मंथन का वर्णन करते हुए कहा कि दैत्य और दानवों द्वारा समुद्र मंथन से निकले हुए चौदह रत्नों में सर्व प्रथम हलाहल निकला, जिसे भगवान विष्णु ने भगवान शिव के पास भेज दिया, तो शिव ने भी यह जानकर कि ये प्रसाद पात्र भगवान विष्णु का भेजा हुआ हैं, तो उसका पान कर लिया, तब गुरूदेव ने पूछा कि इतना गहरा जहर आपने कैसे पचा लिया, तो भगवान शंकर ने कहा कि उनके मुख में राम नाम का जाप चल रहा था, उसी दौरान विष का पान करने से वह विश्राम बन गया, जबकि भगवान विष्णु ने मणि और लक्ष्मी को स्वीकार कर लिया। दीदी मंदाकिनी ने कहा कि शंकर और पार्वती की कृपा से ही ईश्वर के दर्शन संभव हैं। उन्होंने अजन्मे भगवान शंकर के साथ दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि वे अभिमान से परिपूर्ण थी, इसलिए उन्होंने राम कथा का श्रवण नहीं किया। इसी कारण सती को बिना पिता के आमंत्रण के यज्ञ में जाने पर घोर अपमान सहकर यज्ञ कुण्ड में प्रवेश करना पड़ा। सती का दूसरा जन्म राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ। जिनका विवाह भी भगवान शंकर से किया गया। शिव पार्वती हमेशा एक दूसरे के पूरक व कृपा पात्र रहे हैं। उन्होंने कहा कि गो स्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस की रचना में अपने आराध्य राम सीता के बजाय भगवान शंकर को अपना गुरू स्वीकार कर सर्वप्रथम शिव चरित्र का वर्णन किया। उन्होंने भारद्वाज मुनि एवं याज्ञवल्क्य का संदर्भ बताते हुए कहा कि हमारे ज्ञान चक्षु से ही ईश्वर के दर्शन संभव हैं। इस दौरान भजन गायकों द्वारा मनभावन पावन नाम मनवा भजले सीता राम सुनाकर समूचे वातावरण को राममय बना दिया। दीदी मंदाकिनी ने कहा कि गुरू तत्व की महिमा को समझकर शिक्षा एवं दीक्षा प्राप्त कर जीवन को धन्य करें। उन्होंने कहा कि मानस समर्थ व पूर्ण सदगुरू और वैद्य हैं, जिसके माध्यम से भव रोग से मुक्ति संभव हैं। इससे पूर्व उन्होंने हनुमान जी को गुरू और शिष्य दोनों रूप में निरूपित करते हुए कहा कि हनुमान जी ने रावण को गुरू रूप में ज्ञान दिया। वहीं सूर्यदेव को गुरू बनाकर स्वयं ने ज्ञानार्जन किया। हमें हनुमान जी के जीवन चरित्र से अहंकार को त्याग कर ज्ञान प्राप्ति के साथ ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह की झांकी एवं ब्रह्मा, विष्णु सहित शिव जी की बारात की जीवंत झांकी के साथ व्यासपीठ से उसका वर्णन दर्शकों एवं श्रोताओं के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा। दीदी मंदाकिनी ने वेदपीठ पर विराजित ठाकुर श्री कल्लाजी की अनुपम झांकी के दर्शन करते हुए कहा कि महाकुंभ के दौरान ठाकुरजी मनभावन श्रृंगार में खूब रिझा रहे हैं। मंच पर पहुंचते ही उन्होंने मुख्य आचार्य एवं मुख्य यजमान के रूप में ठाकुर श्री कल्लाजी की पूजा अर्चना की। वहीं वेदपीठ के न्यासियों एवं पदाधिकारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ व्यासपीठ का पूजन कर आशीर्वाद लिया।

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