बोराखेड़ी में दुर्गा अष्टमी पर मेनारिया वोरा परिवारों ने निभाई सात सौ वर्ष पुरानी परंपरा

बोराखेड़ी में दुर्गा अष्टमी पर मेनारिया वोरा परिवारों ने निभाई सात सौ वर्ष पुरानी परंपरा
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निम्बाहेड़ा BHN.निम्बाहेड़ा उपखण्ड के गांव बोराखेड़ी के मेनारिया वोरा परिवार ने दुर्गा अष्टमी के पावन अवसर पर सामूहिक हवन और भव्य पूजा-अर्चना कर अपनी सात सौ वर्ष पुरानी परंपरा को जिंदा रखा। यह आयोजन स्थानीय क्षत्रिय परंपरा के अनुरूप, मेवाड़ के उदयपुर दरबार से मिली वोरा पदवी तथा रीति-रिवाज के अनुसार आयोजित किया गया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के साथ संचारित होता आया है।

सुबह के प्रारम्भ होते ही घर-घर से पारंपरिक थालियाँ, नैवेद्य एवं पूजा-सामग्री लेकर मेनारिया वोरा परिवार के सदस्य ढोल-नगाड़ों की थाप पर सामूहिक स्थल पर एकत्रित हुए। परिवार के एकत्रित हवन मंडप में पुरोहित के नेतृत्व में वैदिक अनुष्ठान संपन्न हुए। यज्ञ कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर पारंपरिक मंत्रोच्चारण के साथ देवी दुर्गा का स्तोत्र और आराधना की गई। पूजा के दौरान ढोलक, नगाड़े और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ भक्तिमय नारे व जयकारों से पूरा मैदान गुंजायमान रहा।

बोराखेड़ी में मेनारिया वोरा परिवार द्वारा मनाई जाने वाली यह दुर्गा अष्टमी पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि स्थानीय इतिहास, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक पहचान का जीता-जागता प्रतीक भी है, एक ऐसा संस्कार जो सात सदियों से अटल रूप से ग्रामीण जीवन का हिस्सा बना हुआ है।

बुजुर्गों के अनुसार यह परंपरा लगभग 700 वर्षों से जारी है और इसका संबंध मेवाड़ के उदयपुर दरबार की क्षत्रिय रीतियों से है। “वोरा” पदवी एवं “मेनारिया” कुल के रीति-रिवाज समय के साथ संजोए गए हैं, सामूहिक हवन, देवी की आराधना और गांव समुदाय के समक्ष एकता का प्रदर्शन इस परंपरा के मुख्य स्तंभ रहे हैं। कहा जाता है कि इस अनुष्ठान की शुरुआत उस दौर में हुई थी जब मेवाड़ के दरबारिक संस्कार इस क्षेत्र तक फैले थे और स्थानीय परिवारों ने उन्हें अपनाकर नियमित रूप से पालन करना शुरू किया।

समारोह की रूपरेखा में पारम्परिक हवन, स्तोत्र-भजन, सामूहिक प्रसाद वितरण और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ शामिल थीं। हवन के पश्चात परिवारजनों ने मिलकर प्रसाद बाँटा और बुजुर्गों ने युवाओं को परंपरा के महत्व की बातें सुनाईं। आयोजकों ने बताया कि इस अवसर पर पारिवारिक मिलन, सामाजिक सौहार्द और धार्मिक आस्था पर विशेष जोर दिया जाता है। साथ ही, ग्रामीणों की भारी सहभागिता ने इस आयोजन को स्थानीय त्योहारों की श्रेणी में एक प्रमुख कार्यक्रम बना दिया है।

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