बस्सी की ‘कावड़ कला’ को मिलेगा जीआई टैग

बस्सी की ‘कावड़ कला’ को मिलेगा जीआई टैग
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चित्तौड़गढ़, । राजस्थान की लोक-सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। चित्तौड़गढ़ जिले के बस्सी गांव की विश्वविख्यात और दुर्लभ लोककला ‘कावड़ कला’ को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिलाने के लिए राष्ट्रीय स्वदेशी महोत्सव 2025 के दौरान औपचारिक रूप से आवेदन किया गया है। यह पहल न केवल एक कला को संरक्षण देने का प्रयास है, बल्कि सदियों से इसे जीवित रखने वाले कारीगरों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा भी है।

यह महत्वपूर्ण कार्य नाबार्ड (NABARD) के वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग से किया जा रहा है। इसका प्रमुख उद्देश्य बस्सी गांव के पारंपरिक सुथार समुदाय की बौद्धिक संपदा की रक्षा करना है, जो लगभग 400 वर्षों से अधिक समय से इस अद्वितीय कथा-वाचन परंपरा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोए हुए हैं।

‘चलता-फिरता मंदिर’ है कावड़

मेवाड़ अंचल में कावड़ को स्नेहपूर्वक ‘चलता-फिरता मंदिर’ कहा जाता है। लकड़ी से निर्मित यह कलात्मक संरचना अनेक तहों और द्वारों (पैनलों) से युक्त होती है। जैसे-जैसे ये द्वार खोले जाते हैं, वैसे-वैसे रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाएं रंगीन चित्रों के माध्यम से जीवंत हो उठती हैं। परंपरागत रूप से कावड़िया भाट गांव-गांव घूमकर इन कथाओं का वाचन करते थे, जिससे यह कला लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई। विशेष बात यह है कि प्रामाणिक कावड़ कला आज भी केवल बस्सी गांव में ही निर्मित होती है, जो इसे विशिष्ट और अनूठा बनाती है।

कारीगरों के लिए नई संभावनाएं

जीआई टैग मिलने से कावड़ कला की मौलिक पहचान सुरक्षित होगी और नकली या व्यावसायिक नकल पर रोक लगेगी। इसके साथ ही इससे जुड़े कारीगरों को बेहतर बाजार, उचित मूल्य और आर्थिक सशक्तिकरण का अवसर मिलेगा। यह पहल युवाओं को इस पारंपरिक कला से जोड़ने और इसे आजीविका का स्थायी साधन बनाने में भी सहायक सिद्ध होगी।

स्वदेशी से संस्कृति तक राष्ट्रीय स्वदेशी महोत्सव 2025 के मंच से उठी यह पहल प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के संकल्प को साकार करती है। कावड़ कला को जीआई टैग दिलाने का प्रयास न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर सशक्त करेगा।

निस्संदेह, बस्सी की कावड़ कला के लिए यह क्षण इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने वाला है—जहां परंपरा, संरक्षण और भविष्य एक साथ कदम बढ़ा रहे हैं।

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