मजदूर दिवस पर हो, पुरे विश्व में राष्ट्रीय अवकाश

चित्तौडगढ । हर वर्ष 1 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रमिकों को मिले सम्मान हक, अधिकार, महनत मिले पुरा पुरा महनताना, घटना क्रम होने पर मिले वास्तविक मुआवजा, हो सभी के लिए अनिवार्य साप्ताहिक अवकाश ,काम के घंटे हो तय , श्रमिकों के योगदान को भूला नही जाऐ, कहीं भी ,कभी भी। हम सभी श्रमिकों के जीवन को बहतर बनाने मे बनें सहभागी। यह दिन श्रमिक वर्ग के संघर्ष, त्याग और उनके अमूल्य योगदान के प्रति समर्पित है। आधुनिक युग में मजदूर दिवस केवल एक औपचारिक दिवस न रहकर सामाजिक चेतना और सर्वहारा वर्ग के प्रति न्याय का प्रतीक बना रहे।
भारत मे इसकी शुरुआत 1 मई 1930 को मद्रास से हूई। अमेरीका के सिकागों में मारे गये मजदूरों की याद में हर एक मई को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। साथ ही जरूरी है कि हम सभी श्रमिकों के जीवन को बहतर बनाने में, तथा उनके हक अधिकारों को पारदर्शिता से दिलाने में सहभागी बने। देश के सभी कामगारों मजदूरो को हम समय समय पर पुरा सम्मान करें।
मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर से हुई, जब हजारों मजदूरों ने 8 घंटे कार्य दिवस की माँग को लेकर हड़ताल की। यह आंदोलन श्हेमार्केट नरसंहारश् के रूप में जाना गया, जिसमें कई श्रमिकों की जान गई। इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मान्यता दी गई।
अमरिका के मजदूरों के साथ सबसे पहले खराब हालात के मध्य वहां संघर्ष की शुरुआत हूई, संघर्ष के दोरान बहूत मजदूरों पर गोलियां तक चला दी गई, बम ब्लास्ट तक हूऐ,आगे चल कर मजदूर सॅगठनों की शुरुआत हूई ।भारत में पहली बार यह दिवस 1 मई 1923 को चेन्नई (तब मद्रास) में मनाया गया, जहाँ श्कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडियाश् के नेता सिंगारवेलु चेत्तियार ने इसकी शुरुआत की। मजदूर दिवस के प्रभाव से श्रमिकों को 8 घंटे कार्य दिवस, न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य, सुविधाएँ, साप्ताहिक अवकाश जैसे अधिकार प्राप्त हुए। बाद में मजदूरों के हितलाभ के लिऐ सरकारों ने बोर्ड बनाकर मजदूरों को छात्रवृति, प्रसूति, शुभ शक्ति, दुर्घटना व मृत्यु होने पर सहायता, टूल कीट सहायता , बीमा, नैशनल पेंशन स्कीम, ई श्रम पंजीयन आदि अनेकों प्रकार के लाभ दिया जाने लगा ,राजस्थान सरकार, श्रम विभाग भी श्रमिको का पंजीयन करके हर वर्ष करोडों रूपये का विभिन्न योजनाओ के तरह लाभ दे रहे है, ओधोगिक विवाद अधिनियम, के तहत मजदूरों को काम करने पर
काम से नही हटाने, हक दिलाने, मजदूरी कराकर मजदूरी का भुगतान नही करने पर, वेतन भुगतान अधिनियम के तहत कार्यवाही होने, काम करते हूऐ मजदूर की मृत्यु हो जाने पर कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत मुआवजा पाने, काम करते हूए किसी संस्थान द्वारा सेवा से प्रथक करने पर नियमानुसार पुन काम पर रखवाने व उचित राहत दिलाने, आदि के लाभ श्रमिकों के हित में सरकार हर वर्ष अनकों लाभ दिलाते है। साथ ही लाभ व हक के लिऐ यूनियनों और ट्रेड यूनियनों का निर्माण हुआ, जो आज श्रमिक हितों की रक्षा करते हैं। हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है। यह नारा बुलंद हुआ। समाज में श्रमिकों के प्रति सम्मान और उनके अधिकारों को लेकर जनचेतना बढ़ी।आज भारत जैसे विकासशील देश में करोड़ों लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। उनके पास स्थाई रोजगार, स्वास्थ्य सुरक्षा, पेंशन जैसी सुविधाओं का आज भी अभाव है। डिजिटल युग में जहाँ कार्य का स्वरूप बदल रहा है, वहीं श्गिग वर्कर्स और श्फ्रीलांस श्रमिकोंश् के लिए भी नए कानूनों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। ए आई का प्रभाव और तकनीकी सशक्तिकरण आने वाले समय में बढ़ेगा। तकनीकी दक्षता और पुनः प्रशिक्षण की व्यवस्था कर श्रमिकों को रोजगार के नए अवसर दिए जा सकेंगे। सरकार को चाहिए कि मजदूरों के हितों को केंद्र में रखकर नीतियाँ बनाए ताकि वे आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनें।
स्वतंत्र लेखक तथा सामाजिक सुधारवादी लेखक ( प्रशासनिक अधिकारी) मदन सालवी ओजस्वी लिखते है कि आज भी दूखद यह कि श्रमिक आज भी शिक्षित व प्रशिक्षण लिऐ तथा जागरूक नही होने से हर कोई शोषण-दमन कर रहे है, जो लोग पैसे वाले धनाढ्य होकर भी मजदूरों से खून पशीने की महनत करा कर मजदूरी का भुगतनान तक नही देते है , महनत की मजदूरी मांगने पर डरा धमका देते है, जुल्म अन्याय करते है, मजदूरों को जान से मार देते हे।मजदूरों को आज भी गुलामी जेसे हालातों से गुजरना पड रहा है। सरकारों को चाहिए कि जिला स्तर पर हर माह मजदूरों के हक अधिकारो, शिकायतों पर हर माह समीक्षा हो, मजदूरों के हक अधिकार से मजदूर वंकित नही रहे। नरेगा मजदूरों की मजदूरी बहूत कम हे, उचित रेट बढाई जाऐ, मजदूरों का व्यापक असर समाज के विकास में है। समय समय पर श्रमिकों को जागरूक करने के लिऐ
विशेष अभियान कैम्प शिविर भी लगा कर श्रमिकों को जागरूक करने का अभियान चलाने की अधिक जरूरत है, इसके बिना श्रमिकों का शोषण-दमन रूकेगा नही। श्रमिक अपने बच्चो को खूब पढाऐ लिखाऐ ताकि मजदूर का बेटा मजदूर ही ना रहे, पढ लिखकर उधोगपति, व बडे पदों पर जा सके।
एक समतामूलक समाज का निर्माण तभी संभव है जब श्रमिकों को उनका संपूर्ण अधिकार, सम्मान और सुरक्षा मिले। मजदूर दिवस न केवल अतीत के संघर्षों की याद है, बल्कि भविष्य की दिशा भी है। यह दिवस हमें प्रेरणा देता है कि हम श्रमिकों के योगदान को न भूलें और उनके जीवन को बेहतर बनाने में सहभागी बनें। जब तक समाज में हर हाथ को काम और हर श्रमिक को सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक सच्चे विकास की कल्पना अधूरी है।
हर्ष वर्ष कितने श्रमिकों का जीवन बहतर हो सका, कितने श्रमिको को जागरूक किया गया। कितने पात्र श्रमिकों को विभिन्न योजनाओ के तरह लाभ मिला ,यही सब श्रमिकों के हित में बडी उपलब्धि होगा।
सरकारों को चाहिए कि श्रमिकों के हक में श्रमिक दिवस पर एक मई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करें, ताकि सभी श्रमिक मिलकर एक साथ सामुहिक रूप से हर्षाेल्लास से इस दिवस को श्रमिक जागरूकता दिवस के रूप मे मना सकें।