जगन्नाथ स्वरूप में ठाकुरजी के दर्शन ने वेदपीठ को पूरी निरूपित किया

जगन्नाथ स्वरूप में ठाकुरजी के दर्शन ने वेदपीठ को पूरी निरूपित किया
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निंबाहेड़ा | कल्याण महाकुंभ के षष्टम दिवस सोमवार को कल्याण नगरी के राजाधिराज ठाकुर श्री कल्लाजी को वेदपीठ के आचार्यों एवं बटुकों द्वारा प्रभु जगन्नाथ का अनुपम स्वरूप धारण कराने से ऐसा लगा मानो उड़ीसा का पूरी धाम कल्याण नगरी में स्वत: ही प्रकट हो गया हो। ठाकुरजी के जगन्नाथ स्वरूप में दर्शन से इन्द्रद्युम्न नामक महाराज द्वारा जगन्नाथ मंदिर के निर्माण की कृति कृति के रूप में ऐसा शोभायमान हो रहा था, मानो हर कोई भक्त अपने आराध्य के कलयुग के प्रमुख देव भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर स्वयं को धन्य कर रहे हो। इस बीच समूचे वेदपीठ परिसर को मोगरे के फूलों से सुसज्जित करने के कारण पूरा वातावरण सुगंधमय होकर महकते हुए श्रद्धालुओं को बरबस ही आकर्षित कर रहा था। ठाकुर जी के मनभावन श्रृंगार से पूर्व मंगला आरती के साथ ही सप्त समुद्रों एवं पवित्र नदियों के जल से ठाकुर जी का महारूद्राभिषेक वैदिक विधान के साथ किया गया।

छप्पनभोग की झांकी ने मनमोहा

कल्याण महाकुंभ के षष्ठम दिवस जगन्नाथ रूप धारण किए ठाकुर श्री कल्लाजी को भगवान जगन्नाथ को धराया जाने वाला जब छप्पनभोग न्यौछावर किया तो उसकी छवि देखते ही बनती थी। पारंपरिक रूप में महाप्रसाद को मिट्‌टी के पात्रों में अर्पित कर सजाई गई झांकी ने जगन्नाथ धाम गए भक्तों की स्मृतियों को ताजा कर दिया। इससे पूर्व जगन्नाथ पूरी से आए। पाक शास्त्रियों ने कल्याणलोक में महाप्रसाद का निर्माण किया, जिसे बारह बैल व उंट गाड़ियों में शोभायात्रा के साथ बैंड, मालवी ढोल की थाप और लगातार जयकारों के साथ लगभग छ: किलोमीटर की यात्रा कर वेदपीठ पहुंचाया गया तो छप्पनभोग की यह यात्रा भी बड़ी संख्या में दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रही। इस यात्रा में बड़ी संख्या में कल्याण भक्त, वीर वीरांगनाएं, बटुक, आचार्य अपने आराध्य का जयघोष करते हुए चल रहे थे। यह विहंगम दृश्य नगरवासियों के लिए भी विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा।

चार सौ से अधिक यजमानों ने दी श्री राम महायज्ञ में आहूतियां

श्रीराम महायज्ञ के चतुर्थ दिवस सोमवार को 51 कुण्डीय महायज्ञ में चार सौ यजमान युगलों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ गौ घृत एवं शाकल्य की आहूतियां देते हुए मन वांछित फल प्राप्ति के साथ ही सर्वत्र खुशहाली एवं अच्छी वर्षा की कामना की। वेदपीठ की परंपरा अनुसार यज्ञ के पौराणिक महत्व को जीवंत करते हुए महाकुंभ के दौरान यज्ञ का वैज्ञानिक परीक्षण भी किया जा रहा हैं। जिसके फलस्वरूप पिछले दो दशक में कल्याण नगरी का पर्यावरण अपेक्षा अनुरूप शुद्ध रहा हैं। यज्ञ में प्रवेश से पूर्व पुरूष यजमानों का सामूहिक हेमाद्री स्नान कराया गया।

श्याम बाबा एवं ठाकुरजी के भजनों ने रशिक श्रोताओं को किया आनंदित

कल्याण महाकुंभ के पंचम दिवस रविवार रात्रि को रतलाम से आए जीतू धोरा ने कल्लाजी सरकार को दरबार प्यारो लागे, शिव तांडव स्त्रोतराम, तीन बान के धारी भजनों की मन भावन प्रस्तुतियां देकर भक्तों को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। एक ओर श्याम बाबा स्वरूप में ठाकुरजी के मनभावन दर्शन और दूसरी ओर श्याम बाबा के भजनों की प्रस्तुतियों ने वातावरण को खाटू नगरी निरूपित करने में कोई कोर कसर नहीं रखी। जावद से आये कलाकारा बाल विदुषी हिमांशी ने चित्तोड़ री धरती सु आवे कल्ला राठौर और कल्याण नगरी के अखिलेश ठाकुर ने राधे राधे बोल श्याम आएंगे, महाराणा प्रताप कठे आदि भजनों की प्रस्तुति दी।

दुरूषारूपी ताड़का ही जीवन में अशांति का का मुख्य कारण – दीदी मंदाकिनी

राम कथा मर्मज्ञ अयोध्या से आई दीदी मंदाकिनी ने कहा कि ताड़का रूपी दुरूषा ही जीवन में अशांति का मुख्य कारण हैं। उन्होंने कहा कि आशा मिटती नहीं हैं। ऐसी स्थिति में अधिक आशा निराशा का कारण बन जाती हैं। दीदी मंदाकिनी श्रीराम कथा मंडप में महाकुंभ के षष्ठम दिवस व्यासपीठ से संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि दुरूषा दो पुत्रों दुख और दोष को उत्पन्न करती हैं। आशा ऐसी दुर्लभ देवी हैं, जो हमेशा दुख का कारण बनती हैं और जीवन में निराशा लाती हैं। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र द्वारा यज्ञ की रक्षा के लिए राम लक्ष्मण को अपने आश्रम में ले जाने के बाद ताड़का वध का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि प्रभु श्रीराम ने एक ही बाण में ताड़का का वध कर अपने में समाहित कर लिया। वहीं उसके पुत्र सुबाहू को भस्म करते हुए मारीच को एक ही बाण में 100 योजन दूर फैंक दिया। उन्होंने कहा कि मानस में सांकेतिक वर्णन किया गया हैं, जो यह प्रेरणा देता हैं कि ताड़का के उद्धार के अनुरूप राम नाम रूपी बाण से हम भी अपना जीवन धन्य कर सकते हैं। दीदी मंदाकिनी ने बताया कि मानस में तीन यज्ञों का वर्णन हैं। जिसमें से सर्वप्रथम राजा दशरथ द्वारा किया गया पुत्रेष्ठी यज्ञ विश्वामित्र द्वारा किया गया निष्काम भाग्य का यज्ञ तथा राजा जनक द्वारा किया गया। धनुष यज्ञ का विस्तार से वर्णन किया गया हैं। तृतीय यज्ञ के रूप में धनुष यज्ञ के आयोजन से ही माता वैदही ने प्रभु श्रीराम का वरण कर उनकी जीवन संगिनी बनी। कथा के दौरान धनुष यज्ञ में श्रीराम द्वारा धनुष भंग करने और श्रीराम के विवाह का वर्णन करने के दौरान सजीव झांकी ने संपूर्ण वातावरण को जनकपूरी निरूपित करने में कोई कोर कसर नहीं रखी। प्रारंभ में दीदी मंदाकिनी ने वेदपीठ पहुंचकर प्रभु जगन्नाथ स्वरूप में ठाकुर जी के दर्शन करते हुए कहा कि संभवत संपूर्ण देश प्रदेश में यह पहला तीर्थ हैं, जहां भक्तों की भावना अनुरूप ठाकुर जी मन भावन दर्शन देते हैं। उन्होंने जगन्नाथ स्वामी के छप्पनभोग की झांकी देखकर कहा कि ऐसा लगता हैं मानों कल्याण नगरीवासी जगन्नाथ पूरी पहुंच गए हो। इसके साथ ही उन्होंने व्यासपीठ पर विराजित मुख्य आचार्य एवं मुख्य श्रोता के रूप में ठाकुर जी की पूजा अर्चना की। वहीं वेदपीठ के न्यासियों एवं पदाधिकारियों ने व्यासपीठ का पूजन कर कथा अमृतपान का शोभाग्य प्राप्त किया। श्रीराम कथा एवं श्रीराम महायज्ञ के दौरान कल्याण नगरी में इन्द्रदेव ने पदार्पण करते हुए हल्की फूहारों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर ऐसी अनुभूति कराई हो मानों वे भी राम रसिक बनकर यहां विराजमान हो गए हो।

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