पितृदोष से मुक्ति के यह 16 दिन के श्राद्ध सबसे अच्छे दिन माने जाते हैं – डॉ शर्मा
निंबाहेड़ा पितृदोष से मुक्ति के यह 16 दिन के श्राद्ध सबसे अच्छे दिन माने जाते हैं। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निंबाहेड़ा ज्योतिष विभाग के सहायक आचार्य डॉ ललित किशोर शर्मा ने बताया कि कुंडली में पितृदोष की पहचान करके आप पितृदोष के उपाय करें और इससे हमेशा के लिए छुटकारा पाकर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का योग बनाएं। आपकी कुंडली में पितृदोष हैं या नहीं हैं उन्होंने इसके उपाय बताए हैं।
पितृदोष के
लक्षण:-
पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही
पितृदोष माना गया हैं। कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता हैं, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। आपको ऐसा लगता हैं कि कोई अदृश्य शक्ति आपको परेशान करती हैं, तो पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। ऐसा माना जाता हैं कि यदि किसी को पितृदोष हैं, तो उसकी तरक्की रुकी रहती हैं। समय पर विवाह नहीं होता हैं। कई कार्यों में रोड़े आते रहते हैं। गृह कलह बढ़ जाती हैं। जीवन एक उत्सव की जगह संघर्ष हो जाता हैं। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिलता हैं। शिक्षा में बाधा आती हैं, क्रोध आता रहता हैं, परिवार में बीमारी लगी रहती हैं, संतान नहीं होती है, आत्मबल में कमी रहती हैं आदि कई कारण या लक्षण बताए जाते हैं।
कुंडली
में पितृदोष:-
कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के
पीड़ित होने से भी होता हैं, क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध
रक्त से होता हैं। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या
युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता हैं। इसी
प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का
निर्माण होता हैं। सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने
परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत
पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार
नहीं मिलते। कुंडली का नौवां घर यह बताता हैं कि व्यक्ति पिछले जन्म के कौन से पुण्य साथ लेकर आया हैं। यदि कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र हैं, तो यह कुंडली पितृदोष की हैं। लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता हैं। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं। लग्न में राहु हैं, तो सूर्य ग्रहण और पितृदोष, चंद्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृदोष होता हैं। पंचम में राहु होने पर भी कुछ ज्योतिष पितृदोष मानते हैं। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती हैं। विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया हैं। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12 वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता हैं, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता हैं। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती हैं।
पितृदोष का निवारण:-
पंचबलि कर्म : श्राद्ध में पंचबलि कर्म किया जाता हैं। अर्थात
पांच जीवों को भोजन दिया जाता हैं। बलि का अर्थ बलि
देना नहीं बल्कि भोजन कराना भी होता हैं। श्राद्ध
में गोबलि, श्वान बलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता हैं। पितृ
पक्ष के दौरान कौओं को प्रतिदिन खाना डालना चाहिए। मान्यता
हैं कि हमारे पूर्वज कौवों के रूप में धरती पर आते हैं। इसके
बाद ही ब्राह्मण भोज कराएं।
पहला उपाय : परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें। मतलब यह कि यदि आप अपनी जेब से 10 का सिक्का ले रहे हैं तो घर के अन्य सभी सदस्यों से भी 10-10 के सिक्के एकत्रित करने उसे मंदिर में दान कर दें। यदि आपके दादाजी हैं तो उनके साथ जाकर दान करें। यह दान गुरुवार को करें।
दूसरा उपाय : 16 दिनों तक लगातार कौए,
चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना
चाहिए। उक्त चारों में से जो भी समय पर मिल जाए उसे रोटी खिलाते रहें।
तीसरा उपाय : 16 दिनों तक लगातार सुबह और
शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर जलाएं और गुड़ में घी मिलाकर उसकी धूप दें।