भारत को विश्व गुरू बनाने के लिए एक बार फिर राम राज्य की स्थापना के प्रयास करने होंगे – दीदी मंदाकिनी

निंबाहेड़ा मानस मर्मज्ञ एवं आचार्य राम किंकर महाराज की आध्यात्मिक शिष्या दीदी मंदाकिनी ने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में भारत को फिर से विश्व गुरू बनाने की दृष्टि से राम राज्य की स्थापना से समन्वित प्रयास करने होंगे। दीदी मंदाकिनी बुधवार को श्रीराम कथा मंडप में व्यासपीठ से अयोध्या कांड की विस्तार से व्याख्या श्रवण करा रही थी। उन्होंने दशमुख एवं दशरथ के राज्य की तुलना करते हुए कहा कि दोनों के राज्य में अपार धन दौलत और संपत्ति थी, लेकिन रावण के राज्य में शांति नहीं थी। रावण वध के बाद ही प्रभु राम ने त्रेतायुग में राम राज्य की स्थापना की। इसलिए श्रीराम को सुखधाम और जानकीजी को शांति का प्रतीक माना जाता हैं। उन्होंने कहा कि राम राज्य एक क्रांति हैं, जिसमें समाज के सभी वर्गों के समर्पित सहयोग से परिवर्तन संभव हैं। उन्होंने भरत चरित्र का विस्तार करते हुए कहा कि पिता दशरथ की आज्ञा से राम तो वन चले गए लेकिन भरत को राज्य पद देने के लिए माताओं सहित गुरू वशिष्ठ ने भी समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन भरत ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि उन्हें राज्य सौंपने की आज्ञा माता पिता और गुरू की ना होकर कुटिर मंथरा की आज्ञा हैं जिसे वे स्वीकार नहीं करेंगे, तब कुमार भरत के साथ संपूर्ण अयोध्यावासी प्रभु श्रीराम से मिलने चित्रकूट के लिए प्रस्थान कर गए इस बीच भजन गायकों ने भरत चले चित्रकूट को रामा राम को मनाने सुनाकर भरत की भावना को प्रकट किया। चित्रकूट में राम भरत का दिव्य मिलन हुआ। जहां सिंहासन की चर्चा के बाद प्रभु श्रीराम ने कहा कि दुनिया तो धन संपत्ति का बंटवारा करती, लेकिन आज हम विपत्ति का बंटवारा करले, तब भरत के आग्रह पर श्रीराम ने अपनी चरण पादूकाएं भरत जी को सौंप दी। जिसे उन्होंने सिर पर धारण कर ऐसा अनुभव किया मानो, सीता राम स्वयं उनके साथ अयोध्या चल रहे हो। उन्होंने कहा कि भरत ने तो आधार मांगा था, लेकिन प्रभु राम तो उनको भार दे दिया। पादूका का मतलब अयोध्या का राज्य प्रत्यक्ष रूप से राम ने स्वीकार कर समाधान कर दिया, तब अयोध्या के राज्य सिंहासन पर पादूका स्थापित कर भरत वल्कल वस्त्र पहने गुरू वशिष्ठ के पास गए, तब गुरू वशिष्ठ ने भी कहा कि भरत तुमने धर्म का सारपथ समझ लिया हैं। दीदी मंदाकिनी ने कहा कि त्रेतायुग में तो राम राज्य की स्थापना हुई, क्योंकि राम स्वयं आदर्श थे, उन्हें भक्तों और सहयोगियों का पूरा सहयोग मिला, लेकिन द्वापर में कृष्ण राजा तो बने पर लेकिन कृष्ण राज्य स्थापित नहीं कर पाए, क्योंकि राम राज्य की स्थापना के लिए सभी के समर्पित सहयोग की आवश्यकता होती हैं। तथापि कृष्ण राज्य में ऐसा नहीं हुआ। कृष्ण पूर्वाद्ध की लीलाएं आनंद लाई थी, लेकिन उनका उत्तरार्द्ध दुखांत रहा दीदी मंदाकिनी ने रावण वध के साथ प्रभु श्रीराम के पुन अयोध्या लौटने पर श्रीराम के राज्याभिषेक का मार्मिक वर्णन करते हुए सभी को राम भक्ति से सराबोर कर दिया। इससे पूर्व दीदी मंदाकिनी ने वेदपीठ पर विराजित ठाकुरजी का बद्रीनारायण स्वरूप का दर्शन करते हुए कहा कि ये लोक देवता नहीं वरण वास्तव में शेषावतार हैं, जो भक्तों की भावना के अनुरूप नानाविध रूप में दर्शन देकर भक्तों को धन्य कर रहे हैं। दीदी मंदाकिनी ने मुख्य आचार्य एवं मुख्य यजमान के रूप में ठाकुरजी की पूजा अर्चना की तथा वेदपीठ के पदाधिकारियों एवं न्यासियों के साथ पत्रकारों एवं विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों ने व्यासपीठ की महाआरती में भागीदारी निभाई। अष्ठम दिवसीय संध्या वेला में श्रीराम के राज्याभिषेक की जीवंत झांकी भक्तों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही।

Tags

Next Story