धनखड़ का इस्तीफा : राजस्थान में बीजेपी के सामने जाटों में बिगड़े पर्सेप्शन को सुधारने की चुनौती

जयपुर: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजस्थान में बीजेपी को अब जाटों को साधने के लिए नए सिरे से सियासी प्रयास करने होंगे. जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद जाटों में बने नैरेटिव और डैमेज कंट्रोल का आकलन किया जा रहा है. जगदीप धनखड़ हाल के वर्षों में कोई चुनाव भले न जीते हों, लेकिन जाट सियासत के पर्सेप्शन बनाने में अब भी सक्षम हैं.
जगदीप धनखड़ ने जाट आरक्षण आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई थी. जाटों को ओबीसी में आरक्षण देने के खिलाफ लगी याचिकाओं में धनखड़ ने लंबे समय तक वकील के तौर पर पैरवी की थी. आरक्षण आंदोलन के दौर में वे प्रमुख पैरोकार में थे. ऐसे में माना जा रहा है कि अब जाट नाराजगी साफ दिखाई देने वाली है.
जाट समाज में आंतरिक नाराजगी : जगदीप धनखड़ भले ही चुनावी राजनीति में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन वे राजस्थान से बराबर संपर्क में रहे. उपराष्ट्रपति बनने के बाद जाट समाज को एक बड़े ओहदे के लिहाज से भी देखा जा रहा था. हालांकि, ये अलग बात है कि धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने से लोकसभा चुनाव में राजस्थान से कोई बड़ा लाभ नहीं मिला था, लेकिन अब धनखड़ के अचानक हुए इस्तीफे से जाट समाज में आंतरिक नाराजगी दिखने लगी है और अपमान का मुद्दा बनता दिख रहा है.
राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश जैमनी का मानना है कि जाटों में इस घटनाक्रम के बाद यह पर्सेप्शन बना है कि उनके वरिष्ठ नेता के साथ अच्छा नहीं किया गया. संवैधानिक पद पर होने के बावजूद षड्यंत्र करके हटाने का नैरेटिव चलाया जा रहा है. सोशल मीडिया पर इसे जाटों को नीचा दिखाने और जाट सियासत को कमजोर करने के तौर पर भी प्रसारित किया जा रहा है. यह नैरेटिव जोर पकड़ा तो बीजेपी को प्रदेश में होने वाले आगामी पंचायत और निकाय चुनाव में नुकसान हो सकता है. इस डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा प्रदेश में मंत्रिमंडल में जाट समाज के प्रतिनिधित्व को बढ़ा सकती है. इसके साथ राजनीतिक नियुक्तियों में महत्व दिया जा सकता है. जमीनी तौर पर भाजपा में जाट लीडरशिप का अभाव है. ऐसे में इसे पूरा करने के लिए भी नई रणनीति बनानी पड़ेगी.
नैरेटिव और डैमेज कंट्रोल का आकलन : धनखड़ ने झुंझुनू से लोकदल से लोकसभा चुनाव जीता था. लोकदल के बाद किशनगढ़ से कांग्रेस के विधायक रहे. 1989 में उन्होंने जनता दल की सदस्यता ली और उसी वर्ष झुंझुनू से सांसद चुने गए. 1990 में केंद्र की देवी लाल सरकार में जगदीप धनखड़ को संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाया गया. यह उनकी प्रशासनिक समझ और योग्यता को पहली राष्ट्रीय पहचान मिली. साल 1991 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन अजमेर लोकसभा सीट से चुनाव हार गए. साल 1993 से 1998 तक वे राजस्थान विधानसभा में किशनगढ़ से विधायक रहे और राज्य की राजनीति में गहरी पकड़ बनाई. 90 के दशक के बाद फिर चुनावी राजनीति से दूर हो गए.
धनखड़ भैरों सिंह शेखावत के भी नजदीकी रहे. कांग्रेस से जल्द ही धनखड़ का मोहभंग हो गया और वे 1995 के बाद आरएसएस के नजदीक आने लगे. वे धीरे-धीरे संघ और मोदी-शाह की पसंद बन गए. 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और अगस्त 2022 में 14वें उपराष्ट्रपति बने. ऐसा नहीं है कि केंद्रीय नेतृत्व को जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद बनने वाले नैरेटिव माहौल का आकलन नहीं हो. बीजेपी को अब जाटों को साधने के लिए नए सिरे से सियासी प्रयास करने की कोशिश होगी. आने वाले समय में प्रदेश बीजेपी से किसी जाट नेता को बड़े ओहदे पर नियुक्त करके डैमेज कंट्रोल की प्लानिंग जरूर कर रही होगी.
धनखड़ का विकल्प कौन ? :
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हरियाणा प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया का कद बढ़ाया जा सकता है.
पश्चिमी राजस्थान से पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को मौका मिल सकता है.
अजमेर से सांसद और केंद्रीय कृषि राज्य भागीरथ चौधरी को आगे किया जा सकता है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, पूर्व सांसद सीआर चौधरी की खुल सकती है लॉटरी.
शेखावाटी मजबूत करने के लिए उपचुनाव में झुंझुनू से जीत दर्ज करने वाले राजेंद्र भामू को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है.
पूर्वी राजस्थान से शैलेश दिगंबर सिंह को मंत्री मंडल में मौका मिल सकता है.
बीजेपी पार्टी के जाट विधायक : राजस्थान विधानसभा चुनाव में जाट समाज से कांग्रेस ने 36 और बीजेपी ने 31 लोगों को टिकट दिए थे. इनमें कांग्रेस के 16 और बीजेपी के 13 जाट प्रत्याशी चुनाव जीतकर आए हैं. जाट समाज कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. मौजूदा स्थिति में देखें तो बीजेपी से मालपुरा-कन्हैयालाल चौधरी, श्रीमाधोपुर- झाबर सिंह खर्रा, विराटनगर- कुलदीप धनकड़, डीग कुम्हेर- शैलेश दिगम्बर सिंह, डेगाना- अजय सिंह किलक, नावा- विजय सिंह चौधरी, ओसियां- भैराराम सियोल, भादरा- संजीव कुमार बेनीवाल, लूणकरणसर- सुमित गोदारा, चूरू- हरलाल सहारण, नदबई- जगत सिंह, नसीराबाद- रामस्वरूप लांबा और खंडेला से सुभाष मील विधायक हैं.
इनमें से मालपुरा विधानसभा सीट से आने वाले कन्हैयालाल चौधरी और लूणकरणसर विधानसभा सुमित गोदारा कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि श्रीमाधोपुर विधानसभा झाबर सिंह खर्रा और नावां विधानसभा से आने वाले विजय सिंह चौधरी को राज्य मंत्री का दर्जा दिया हुआ है. राजनीतिक विश्लेषक विवेकानंद शर्मा बताते हैं कि खुले तौर पर तो जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटाने का जाट समाज विरोध नहीं कर रहा, लेकिन अंदरुनि और सोशल मीडिया पर इसका विरोध दिखाई दे रहा है. जाट समाज में उबाल ले रहे इस विरोध को डैमेज कंट्रोल करने के लिए बीजेपी आगामी दिनों में संगठन और सरकार में कुछ जाट नेताओं का कद बढ़ा सकती है.
विपक्ष बना रहा मुद्दा : बता दें कि जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति से इस्तीफा देने के बाद दिल्ली से लेकर राजस्थान तक सवाल उठ रहे हैं. धनखड़ ने भले ही इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया हो, लेकिन विपक्ष ने इसे बड़ा मुदा बना कर राजनीतिक फायदा उठाना शुरू कर दिया है. पूर्व सीएम अशोक गहलोत और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने बीजेपी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर कटाक्ष किया है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस्तीफे घटना ने पूरे देश को चौंका दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं है. आजादी के बाद में उपराष्ट्रपति के पद से कभी कोई इस्तीफा नहीं हुआ है. पहली बार इस्तीफा हुआ है. स्वास्थ्य कारणों का हवाला देने की बात कही जा रही है, लेकिन आम लोगों को और किसी को भी इसमें सच्चाई नहीं लग रही है. यह घटना ऐसे वक्त पर हुई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे पर जा रहे हैं और अचानक उपराष्ट्रपति का इस्तीफा होता है. इससे देश और दुनिया में चर्चा तो बनती ही है. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जगदीप धनखड़ राजस्थान के रहने वाले थे. राजस्थान को इससे बड़ा धक्का लगा है. वह किसानों की बात करते थे. चाहे वो संसद के अंदर हों, चाहे वो बाहर, जब किसान आंदोलन हुआ था, तब भी उन्होंने लगातार उनके पक्ष में आवाज उठाई थी और अभी हाल ही में कृषि मंत्री को भी उन्होंने खरी-खरी सुनाई थी.
डोटासरा ने कहा कि धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन अभी इसकी कलई खुलेगी. उन्होंने इस्तीफा देने से पहले पूरे दिनभर राज्यसभा का संचालन किया. इससे पहले राजस्थान में टूर किया. डोटासरा ने कहा कि धनखड़ साहब अपनी बात मीडिया के सामने बोल रहे थे और बीजेपी यह नहीं चाहती थी. पीसीसी चीफ ने आरोप लगाया कि बीजेपी किसान के बेटे और किसानों के प्रति कोई संवेदनशील नहीं है. बीजेपी के नेताओं की सोच 'हम दो हमारे दो' की अभी धीरे-धीरे कलाई खुलेगी.
राठौड़ बोले- भाजपा की जातिवादी राजनीति नहीं : उधर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि हम स्पष्ट किया कि भारतीय जनता पार्टी जातिवादी राजनीति नहीं करती है. हम सर्व समाज का विकास करना चाहते हैं. सर्व समाज को साथ लेकर काम करना चाहते हैं. जो भी मेहनत करता है, जो अच्छा सेवक है उसे सेवा करने का मौका मिलना चाहिए. उसी दिशा काम करते हैं. कहीं पर भी किसी का जाति के हिसाब से चयन नहीं होता है.
जातिगत राजनीति भारतीय जनता पार्टी नहीं करती है. सर्व समाज को महत्व देकर ही भारतीय जनता पार्टी काम करती है. किसी के साथ भेदभाव पार्टी में नहीं होता है और यही आदर्श अन्य राजनीतिक दलों को भी निभाना चाहिए. कोई भी राजनीतिक दल जातिगत मतभेद पैदा नहीं करे. क्षेत्रवाद पैदा नहीं करे. जहां तक उपराष्ट्रपति के पद की बात है तो उन्हें हटाया नहीं गया है. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है. इसको किसी भी जाति के हिसाब से नहीं बांटना चाहिए.