राजस्थान स्वायत्त शासन विभाग के इस आदेश के बाद निकायों में मची खलबली
जयपुर। आर्थिक तंगी से जूझ रहे नगरीय निकाय (नगर निगम, परिषद, पालिका) अब उधारी पर विकास कार्य नहीं करा सकेंगे। सभी निकायों को किसी काम की स्वीकृति, कार्यादेश जारी करने से पहले सुनिश्चित करना होगा कि तिजोरी में उसके लिए पैसे है या नहीं। खास यह है कि काम के बाद भुगतान नहीं कर पाने, कानूनी पेंच फंसने, ब्याज-जुर्माना आदि की स्थिति में सीधी जिम्मेदारी निकाय के कार्यकारी अधिकारी की होगी।
स्वायत्त शासन विभाग के इस आदेश के बाद निकायों में खलबली मची है। संभवतया पहली बार है जब इस तरह के आदेश जारी किए गए हैं। सरकार की इसके पीछे मंशा है कि निकाय पहले आय के स्रोत तैयार करें और फिर आगे बढ़ें। हालांकि, विभाग ने इस आदेश में निकायों को आय के स्रोत बढ़ाने के लिए राह नहीं सुझाई है। प्रदेश में अभी 213 निकायों में बोर्ड हैं और 90 फीसदी तंगहाली में हैं।
राज्य में ज्यादातर निकाय तंगहाली से जूझ रहे हैं। वाहवाही लूटने के लिए दिखावटी बजट बना रहे, क्योंकि उनके पास आय के संसाधन ही नहीं है। अनुमानित आय के मुकाबले 70 प्रतिशत तक पैसा तिजोरी में नहीं आ रहा। सरकार भी जरूरत से काफी कम सहायता कर रही है। इसका सीधा असर विकास कार्यों पर पड़ रहा है।
तिजोरी में पूरा भुगतान करने के लिए राशि नहीं होती, इसके बावजूद निकाय कार्यादेश जारी करते रहे हैं। इसके पीछे केन्द्र, राज्य सरकार से आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद रहती है। स्वायत्त शासन विभाग के अफसरों ने यह भी साफ कर दिया है कि आगे इस उम्मीद में किसी भी तरह के कार्यादेश जारी नहीं किए जाएं। निकायों को जो भी निर्धारित फंड दिया जा रहा है, उसका सदुपयोग करें। अपनी आय बढ़ाने के नए स्रोत तैयार करें।
शहरीकरण का पैमाना केवल 33 प्रतिशत है। इसे यहां पानी, स्वच्छता, कचरा और सीवरेज, शहरी परिवहन, रोड लाइट, सड़कों के रखरखाव की जरूरत बढ़ती जा रही है। इसके लिए पुख्ता वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता है।
प्रदेश में 213 निकाय ऐसे हैं, जहां बोर्ड गठित है। इनमें 7950 सदस्य (पार्षद) हैं। अफसर-कर्मचारियों के साथ इनकी भी जिम्मेदारी है कि निकाय को आर्थिक सक्षम बनाएं, लेकिन ज्यादातर अपनी राजनीति चमकाने में व्यस्त रहते आए हैं।
निकाय संख्या सदस्य
नगर निगम 10 855
नगर परिषद 34 1905
नगरपालिका 169 5190