साहित्यकार के पास दृष्टि एवं भाव-बोध होना आवश्यक : डॉ.भारद्वाज

साहित्यकार के पास दृष्टि एवं भाव-बोध होना आवश्यक : डॉ.भारद्वाज
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जयपुर । राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ ,जयपुर की ओर से वरिष्ठ कथाकार रजनी मोरवाल के कहानी संग्रह “हवाओं से आगे” पर साहित्यिक विमर्श का आयोजन किया गया। कवि-लेखक प्रेमचंद गांधी ने संयोजन किया।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि साहित्यकार के पास दृष्टि और भाव-बोध दोनों होना आवश्यक है। आधुनिकता केवल फैशन का माध्यम है, जबकि भाव-बोध लेखक की मानसिकता से गहराता और रचना में ढलकर स्थायी हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि विमर्श और आंदोलनों ने साहित्य को अपेक्षाकृत नुकसान ही पहुँचाया है, क्योंकि हर स्त्री पात्र की कहानी स्त्री विमर्श नहीं होती। रचना का मूल्यांकन उसकी समग्रता में होना चाहिए। डॉ भारद्वाज ने भाषा पर विशेष जोर देते हुए कहा कि भाषा ही लेखक का सबसे बड़ा निकष है। भाषा पर गहरी पकड़ ही रचना को श्रेष्ठता प्रदान करती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जाने माने लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि आलोचकों की टिप्पणियाँ और दृष्टिकोण हमेशा लेखक के लिए उपयोगी होते हैं। कथाकार सामान्य पाठक को ध्यान में रखकर लिखता है, लेकिन जब प्रबुद्ध पाठक इन पर प्रतिक्रिया देते हैं तो लेखक अपने लेखन को और बेहतर बनाने की ओर प्रेरित होता है। उन्होंने कहा कि रजनी मोरवाल की कहानियाँ समय के साथ शिल्प और सरोकार दोनों स्तरों पर बदलती रही हैं। कहानी की सबसे पहली अपेक्षा पठनीयता होती है और यदि कहानी पाठक के मन को पकड़ ले तो वही उसकी सफलता है। रचना पढ़कर पाठक समृद्ध हो तभी लेखक सफल माना जाता है । कहानी यदि पाठक की चेतना को झकझोर सके, तो वह सार्थक होती है। रजनी की कहानियाँ इसी कसौटी पर खरी उतरती हैं।

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने कहा कि रजनी मोरवाल का कथा लेखन 2014 से प्रारंभ हुआ और उनका अनुभव संसार अत्यंत विस्तृत है। देश के विभिन्न हिस्सों में रहकर उन्होंने जीवन को नजदीक से देखाऔर उनकी कहानियों के अधिकांश प्लॉट प्रत्यक्ष अनुभव से गढ़े गए हैं। भारद्वाज ने कहा कि संवेदनशील लेखक का यही गुण है कि वह घूमते-फिरते भी वहाँ के लोगों, उनके जीवन, चरित्र और संघर्ष से गहराई से जुड़ता है। उन्होंने माना कि इस संग्रह की कहानियाँ स्त्री संघर्ष पर केंद्रित हैं। ये नायिका प्रधान कथाएँ हैं जिनमें स्त्री का संघर्ष मुखरता से प्रकट हुआ है।इनके लेखन में परिवेश का चित्रण, वातावरण की प्रस्तुति और चरित्रों का मनोविज्ञान गहराई से उभरकर सामने आता है। इनकी लताओं में स्त्री कमजोर नहीं पड़ती बल्कि संघर्ष करती है और स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है।

इससे पूर्व मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. राजाराम भादू ने कहा कि हिंदी का सृजन परिदृश्य समृद्ध और विविधतापूर्ण है। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में महत्वपूर्ण लेखन हो रहा है और पिछले दो दशकों में कई उल्लेखनीय कृतियाँ सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि अराजकता और शोषण के इस दौर में जीवन के सभी हल्क़ों से उठती आवाजें एक सुखद बदलाव का संकेत हैं। भादू ने कहा कि कभी साहित्य में स्त्रियों की उपस्थिति कम थी, किंतु पिछले दो दशकों में वे पुरुषों के बराबर आ गई है। यह केवल संख्या की दृष्टि से ही नहीं बल्कि रचनात्मक गुणवत्ता के स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उन्होंने रजनी मोरवाल को आधुनिक बोध की कथाकार बताते हुए कहा कि आधुनिकता और आधुनिक बोध अलग-अलग धाराएँ हैं। आधुनिकता फैशन है, जबकि आधुनिक बोध आधुनिकता की आलोचना है। आधुनिक समाज, नई जीवन शैली, रहन-सहन, खानपान और पहनावे की झलक उनकी कहानियों में मौजूद है। इनकी रचनाओं में पात्र एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सहभागी और सहानुभूति की भावना से भरे होते हैं। कथानक की बुनावट में उनकी सरलता और स्त्री दृष्टि का संतुलन उन्हें एक विशिष्ट कथाकार बनाता है।

इस अवसर पर कथाकार उपन्यासकर रजनी मोरवाल ने अपने सृजन की चर्चा करते हुए कहा कि वे कहानियाँ इसलिए लिखती हैं क्योंकि जीने का और कोई बेहतर और सार्थक तरीका उन्हें नहीं आता। उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा रहती है कि कहानियों में स्त्री विमर्श और सामाजिक चेतना का संदेश अवश्य हो।

इस अवसर पर कवि-लेखक डॉ सुंदरम् शांडिल्य ने कहा कि ये कहानियाँ जाग्रत नागरिक बोध की कहानियाँ हैं, जिनका केंद्रीय तत्व प्रेम है। हिंसा, युद्ध, अमानवीयता और भ्रष्टाचार के इस दौर में प्रेम की सर्वाधिक आवश्यकता है।

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