मोबाईल स्क्रीन का प्रभाव शिशुओं से लेकर किशोरों तक की नींद, एकाग्रता और विकास पर पड़ता है : डॉ. मित्तल

उदयपुर, । रोटरी क्लब ऑफ उदयपुर मीरा की ओर से आयोजित तीन दिवसीय सुकून हेल्थ मेले के दूसरे दिन रविवार को प्रोजेक्ट सुकून के अंतर्गत एक पैनल चर्चा रखी गई, जिसमें कई विषयों पर चर्चा की गई, चर्चा का मुख्य विषय था जुड़ाव या बिखराव? - डिजिटल युग में संतुलन की खोज । सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम का मन, शरीर और समाज पर प्रभाव", जिसका उद्देश्य डिजिटल जीवन शैली के बढ़ते प्रभाव के बीच मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक संतुलन बनाए रखने के उपायों पर चर्चा करना था।
रोटरी क्लब उदयपुर मीरा की अध्यक्षा डॉ. रेखा सोनी ने बताया कि रोटरी क्लब मीरा द्वारा आयोजित "संपूर्णता सुकून हेल्थ मेला" शहर में स्वास्थ्य, सेवा और समर्पण का उत्सव बनकर रहा है। मेले में सेवा आयामों और भारतीय चिकित्सा परंपराओं जिसमें आयुर्वेद, होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, और आधुनिक एलोपैथी को एक मंच पर लाकर जनकल्याण को समर्पित किया गया। अध्यक्ष सोनी ने बताया कि "बचपन से युवावस्था तक मन और दिल की सुरक्षा"विषय पर कहा "डिजिटल युग में बच्चों और युवाओं के लिए मोबाइल स्क्रीन से जुड़ाव जितना सहज हुआ है, उतना ही उनका वास्तविक जीवन से बिखराव भी हुआ है। हमारे लिए जरूरी है कि हम तकनीक को समझदारी से प्रयोग करें - उसे समाधान बनाएं, समस्या नहीं।" उन्होंने इस संवाद को एक सार्थक और उपचारात्मक पहल बताया। पैनल में शहर के प्रसिद्ध विशेषज्ञों के विचार रखे ।
सचिव कविता बल्दवा ने बताया कि बाल स्वास्थ्य व न्यूरो विभाग के डॉ. अशोक मित्तल (सीनियर पीडियाट्रिशियन, फोर्टिस कोलकाता) ने बताया कि मोबाइल स्क्रीन का प्रभाव शिशुओं से लेकर किशोरों तक की नींद, एकाग्रता और सामाजिक विकास पर पड़ता है। हृदय स्वास्थ्य और तनाव का संबंध में डॉ. संजय गांधी (कार्डियक सर्जन, गीतांजलि हॉस्पिटल) ने युवाओं में हृदय रोग और तनाव की बढ़ती समस्या को निरंतर स्क्रीन एक्सपोजऱ से जोड़ा।
रोटरी मीरा की विजयलक्ष्मी गलूंडिया ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार के बारे में अर्चना शक्तावत (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट) ने बताया कि बच्चों में तुलना, बेचैनी और ध्यान भटकाव की संस्कृति सोशल मीडिया के कारण उत्पन्न हो रही है, जिसे रोकने के लिए अभिभावकों की सक्रिय भूमिका ज़रूरी है। डॉ. गार्गी (होम्योपैथी विशेषज्ञ) ने नींद की कमी, चिड़चिड़ापन और माइग्रेन जैसी समस्याओं के लिए साइड इफेक्ट रहित प्राकृतिक उपाय बताएं ।
व्यवहारिक समाधान के बारे में डॉ. हर्षा कुमावत (मॉडरेटर) ने कहा "स्क्रीन को ग्रे करें" रंगीन स्क्रीन ध्यान भटकाती है, जबकि ग्रे टोन एकाग्रता बनाए रखती है। "खाने के समय मोबाइल नहीं" — बच्चों को भोजन के दौरान स्क्रीन दिखाना गलत आदतें विकसित करता है। संतुलन की राह, कार्यक्रम के अंत में सभी को एक विशेष "सुकून टूलकीट" दी गई, जिसमें डिजिटल डिटॉक्स, पारिवारिक समय की योजना, और भावनात्मक संतुलन के लिए व्यावहारिक सुझाव शामिल थे। सचिव कविता बल्दवा ने सभी विशेषज्ञों, अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और कहा, आज की चर्चा ने हमें न केवल जानकारी दी, बल्कि तकनीक के साथ संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा भी दी है। जिस तरह दवा हमें रोज खानी होती हैं वैसे ही योग,ध्यान भी रोज करना ही होगा । इस अवसर पर अध्यक्ष डॉ. रेखा सोनी, सचिव कविता बल्दवा, विजयलक्ष्मी गलूंडिया, पुष्पा कोठारी, सीमा सिंह, रतन पामेचा, कमला भारद्वाज, कुसुम मेहता, कविता श्रीवास्तव, प्रियंका कोठारी, महाश्वेरी भटनागर, हर्षा कुमावत, श्रद्धा गट्टानी, स्नेहा. के. शर्मा, उर्मिला जैन, वंदना मुथा, मोनिका सिंघटवाडिय़ा, मंजुला गेलड़ा, संगीता देथा, ज्योति कुमावत, अमृता सिन्हा राय, बलदीप कौर, सुषमा कुमावत, वंदना नलवाया, शीतल, मोनिका, ज्योति टांक, अर्चना व्यास, कुकु लिखारी, मंजू सिंह, वीना सनाढ्य, डॉ. सोनू जैन सहित कई सदस्याएं मौजूद रही।