पंचायत निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर संकट, आयोग का कार्यकाल खत्म होने की कगार पर

पंचायत निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर संकट, आयोग का कार्यकाल खत्म होने की कगार पर
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राजस्थान में पंचायत और शहरी निकाय चुनावों से पहले ओबीसी आरक्षण के निर्धारण को लेकर स्थिति अब गंभीर होती नजर आ रही है। इस काम के लिए गठित आयोग का कार्यकाल समाप्त होने में सिर्फ चार दिन शेष हैं, जबकि ओबीसी आरक्षण से जुड़ी प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हो पाई है। यदि आयोग का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया, तो आगामी पंचायत और निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।

वर्तमान में आयोग प्रदेश के विभिन्न जिलों में जनसंवाद कार्यक्रम चला रहा है। यह कार्यक्रम अगले सप्ताह के अंत तक ही पूरे हो पाएंगे। जनसंवाद के दौरान आम लोगों और सामाजिक संगठनों से मिले सुझावों के आधार पर आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करेगा। इसी रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार पंचायत और शहरी निकायों में ओबीसी सीटों का निर्धारण करेगी।आयोग ने जिला स्तर पर जनसंवाद का कार्यक्रम 3 जनवरी तक जारी कर रखा है। अंतिम चरण में 3 जनवरी को बारां और बूंदी जिलों में जनसंवाद प्रस्तावित है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने अब तक आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर के बाद बढ़ाने का कोई निर्णय नहीं लिया है। इस स्थिति में आयोग का काम अधूरा रह जाने की आशंका बढ़ गई है।उधर, ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत और निकाय चुनाव कराना कानूनी रूप से संभव नहीं माना जा रहा है। करीब चार महीने पहले हाईकोर्ट की एकलपीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग को पंचायत और शहरी निकाय चुनाव तुरंत कराने के निर्देश दिए थे। उस समय राज्य सरकार ने अदालत में यह दलील दी थी कि ओबीसी सीटों का निर्धारण पूरा नहीं होने के कारण चुनाव कराना संभव नहीं है।अब आयोग का कार्यकाल खत्म होने की स्थिति में वही समस्या फिर से खड़ी होती दिखाई दे रही है। यदि समय रहते कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया और रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई, तो पंचायत और निकाय चुनावों की प्रक्रिया एक बार फिर अटक सकती है। इससे राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर भी नई उलझनें पैदा होने की संभावना है।

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