बाल विवाह पर प्रशासन सख्त, सरपंच-पंच का भी दायित्व तय
राजसमंद (राव दिलीप सिंह) बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम हेतु बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के अन्तर्गत 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका एवं 21 वर्ष से कम उम्र के बालक का विवाह करना या रचाना एक संज्ञेय अपराध किया गया है। राजस्थान सरकार द्वारा राज्य में बाल विवाह के रोकथाम हेतु राजस्थान बाल विवाह प्रतिषेध नियम, 2007 लागू किए गए है जिसके तहत बाल विवाह रोकथाम हेतु प्रत्येक जिला, उपखंड, तहसील स्तर पर सम्बन्धित विभिन्न प्राधिकारी विभागों के अधिकारियों को बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (सी.एम.पी.ओ.) के रूप में नियुक्त किया गया है एवं उन्हें अधिनियम के तहत शक्तियों एवं कृत्यों के निष्पादन के लिए अधिकृत किया गया है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी हनुमान सिंह राठौड ने बताया कि राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के अंतर्गत बाल विवाह के रोकथाम हेतु जनप्रतिनिधियों वार्ड पंच, सरपंच का भी दायित्व निर्धारित किया गया है। बाल विवाह होने की सूचना मिलने पर पंचायत समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य के द्वारा दोनां के अभिभावकों, रिश्तेदारों, समुदाय से बातचीत कर बाल विवाह को रोकने की समझाइ्र्रश की जाएगी। बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि ग्राम सभा या ग्राम पंचायत के किसी भी सदस्य की ओर से बाल विवाह को प्रोत्साहन न दिया जाए। गांवों में इस अधिनियम एवं बाल विवाह के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य किया जाएगा, ग्राम सभा की बैठकों में नियमित रूप से इस विषय पर चर्चा की जाएगी।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि अबूज सावों के समय विशेषतः महिला ग्राम सभा का आयोजन कर पंचायत को बाल विवाह मुक्त पंचायत बनाने का वातावरण बनाया जाएगा। जिन बच्चों का बाल विवाह सम्पन्न हो चुका है उनकी सूची तैयार कर बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारियों को उपलब्ध करायी जाएगी ताकि बाल विवाह शुन्यकरण की कार्यवाही की जाएगी। उपखण्ड एवं ग्राम पंचायत स्तरीय बाल संरक्षण समिति को सक्रीय करते हुए बाल संरक्षण के मुद्दों, बाल विवाह, बाल तस्करी, बाल उत्पीड़न पर जागरूकता एवं रोकथाम सम्बन्धी कार्य किए जाएंगे। राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 में बाल विवाह को रोकने का दायित्व सरपंच पर है। माननीय न्यायालय ने अंतरिम उपाय के तौर पर यह निर्देश दिए है कि बाल विवाह को रोकने के लिए जांच के सम्बन्ध में रिपोर्ट ली जाएगी।