सरस्वती वंदना से भजन संध्या की हुई शुरूआत
राजसमन्द (राव दिलीप सिंह) गृहस्थ मे रहते हुए संत जैसा जीवन जी कर सभी को प्रेरणा दे वह संत से भी महान है, ऐसे संत हुए है भूरी बाई, जिनका काफी समय नाथद्वारा मे व्यतीत हुआ। आज वहाँ आश्रम है जिसे अलख आश्रम के नाम से जानते है। हम एक सद्गुण को 100% अपनाते है तो अन्य सभी सद्गुण व्यक्ति मे अपने आप आ जाते है । तो मैने भी "प्रेम" शब्द को जीवन मे आत्मसात किया है जिसके फलस्वरूप श्रीनाथजी से प्रेम किया तथा चार मई को नाथद्वारा मे श्रीनाथजी का प्राकट्य महोत्सव मनाया जो 352 वर्ष मे पहली बार नाथद्वारा मे मनाया गया । यह विचार सीए. दिनेश सनाढ्य ने संत भूरी बाई स्मृति भजन संध्या कार्यक्रम मे व्यक्त किये।
सांसे पिंजरे में बची बहुत कम सरस्वती वंदना से भजन संध्या कार्यक्रम की शुरुआत हुई। सुषमा राठौड़ ने गुरुजी म्हाने आछा आप रिझाया । अणीरी घट ही मे गम पाया व अपरे कई कणी ऊं लेणो, सब सूं संप राख न रेणो भजन गाये..
मोहनलाल गुर्जर ने जरा देर ठहरों राम तमन्ना यही है...चन्द्र शेखर नारलाई ने गोपियन को दही लुटने चला नंद गांव को ठाकुर । गोप ग्वाल बाल बने बाराती दुल्हा बना है ठाकुर ....रविनंदन चारण ने कर कर वृछा धंध वजारो व चुप साधन, चुप साध्य, चुप मे चुप समायो....वीणा वेष्णव वृंदावन में हुकूम चलें बरसाने वाली का, मेरा श्याम दीवाना है राधा रानी का व इस कलयुग के दौर में कान्हा आजा एक बार भजन प्रस्तुत किया ।