अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण की प्रतिमूर्ति थी मीरा मैया

अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण की प्रतिमूर्ति थी मीरा मैया
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राजसमन्द (राव दिलीप सिंह) केलवा-आमेट रोड़ पर सियाणा स्थित धेनू गोपाल गौशाला प्रांगण में आयोजित चार दिवसीय गौ मीरां मैया कथा महोत्सव शुक्रवार को अयोध्या एवं वृन्दावन धाम सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए संतों के सान्निध्य तथा विशिष्टजनों एवं बड़ी संख्या में गौ भक्तों की उपस्थिति में हर्षोल्लास व भक्तिपूर्ण माहौल में शुरू हुआ।

सुबह वैदिक रीति अनुसार गौशाला में पुष्टि यज्ञ किया गया वहीं कथावाचक हरे कृष्णा राकेश पुरोहित के सान्निध्य में गौ-पूजन एवं इसके बाद कथा पांडाल में तुलसी पूजन हुआ जिसमें कई श्रद्धालुओं ने शामिल होकर धर्मलाभ लिया। कथा के प्रारम्भ में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ व्यासपीठ का पूजन हुआ वहीं महोत्सव आयोजक श्री धेनू गोपाल गौशाला सेवा समिति के सदस्यों ने कथा प्रवक्ता प्रशासनिक संत हरे कृष्णा प्रभुजी राकेश पुरोहित का तिलक व पुष्पमाला पहनाकर आत्मीय स्वागत किया। शुरूआत में ने संत ने गोविन्द मेरो है गोपाल मेरो है...संकीर्तन कराते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं को भक्तिभाव से जोड़ा। इसके बाद उन्होंने गुरू महिमा का वर्णन किया तथा कहा कि गुरू को गोविन्द से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। उन्होंने बताया कि मीरा मैया संत रैदास को अपना गुरु मानकर भक्ति में लीन हो गई। मीरा के जीवन की खास बात यह भी थी कि वे कृष्ण व राम दोनों की भी भक्त थी। मीरां के भक्तिमय जीवन पर विवेचन करते हुए उन्होंने मीरां की पूर्व जन्म के कथा वृतांत का वर्णन किया वहीं मीरां का जीवन परिचय व उनके पृथ्वी पर आगमन के बारे में चर्चा की। बताया कि ऐसी मान्यता है कि मीरां द्वापर युग में वृन्दावन की एक गोपी थी जिसका नाम माधवी था। जब भगवान कृष्ण पृथ्वीलोक पर लीलाएं कर रहे थे तब वह राधा की सखी थीं। वे मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं और गोप से विवाह होने के बाद भी उनका लगाव श्रीकृष्ण के प्रति कम नहीं हुआ और कृष्ण से मिलने की तड़प में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए। बाद में उसी गोपी ने मीरा के रूप में जन्म लिया।

मीरां के जीवन प्रसंग पर उन्होंने कहा कि मीरा बाई भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त मानी जाती है। मीरा मैया ने जीवनभरकृष्ण भक्ति की और कहा जाता है कि उनका देहावसान भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुआ था। मीरा बाई की जयंती के बारे में कोई ऐतिहासिक तथ्य तो नहीं हैं लेकिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा का दिन मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मीरा बाई के जीवन से जुड़े कई तथ्य आज भी रहस्य है। साथ ही इतिहास में कुछ जगह उल्लेख है कि मीराबाई ने गोस्वामी तुलसीदास को गुरू बनाकर रामभक्ति भी की। कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे। मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। उनके बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण की प्रतिमूर्ति थी।

कथा प्रसंगों के दौरान संत ने मीरा मैया की कृष्ण भक्ति पर आधारित पधारो मेरे गिरधर पधारो..., मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय...एवं जय-जय राधा रमण हरिबोल...जैसे भक्ति संगीत की मधुर प्रस्तुतियां देकर श्रद्धाुलुओं को भक्ति भाव से सराबोर कर दिया। इस दौरान मीरां के जीवन से जुड़े मार्मिक प्रसंगों पर श्रद्धालु भाव-विभोर भी हो गए। कार्यक्रम में अयोध्या से समागत संत गोपाल बाबा, वृन्दावन धाम से संत प्रमोद दास महाराज सहित क्षेत्र से आए कई साधु-संतों ने सान्निध्य प्रदान किया वहीं कुम्भलगढ़ विधायक सुरेन्द्रसिंह राठौड़ एवं अन्य जनप्रतिनिधियों व प्रबुद्धजनों ने शिरकत की। कथा श्रवण करने के लिए स्थानीय एवं आसपस के गांवों के अलावा आमेट, केलवा, सरदारगढ़, राजसमन्द एवं चित्तौड़गढ़ आदि स्थानों से भी बड़ी संख्या में गोभक्त पहुंचे। कथा का समय प्रतिदिन सुबह 11 बजे से शाम चार बजे तक रहेगा।

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