नाथद्वारा में कृष्ण जन्माष्टमी पर 352 साल पुरानी परंपरा के तहत दी गई 21 तोपों की सलामी, सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल

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राजसमंद (नाथद्वारा)। कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर देशभर के कृष्ण भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र, वल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ और विश्वप्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर एक बार फिर ऐतिहासिक परंपरा का साक्षी बना। जन्माष्टमी की मध्यरात्रि को प्रभु श्रीनाथजी के जन्म के उपलक्ष्य में नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी मंदिर परिसर के निकट रसाला चौक में 21 तोपों की गगनभेदी सलामी दी गई। वर्षा की बौछारों के बावजूद भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई, और बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए श्रद्धालु इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए नाथद्वारा पहुंचे।

352 वर्षों से चली आ रही परंपरा

नाथद्वारा में जन्माष्टमी के मौके पर श्रीनाथजी को दी जाने वाली यह 21 तोपों की सलामी करीब 352 साल पुरानी परंपरा है। बताया जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत उस समय हुई थी जब मेवाड़ राज्य के शासकों और स्थानीय राजपूत वीरों ने श्रीनाथजी की सेवा को अपनी जिम्मेदारी माना और उनके जन्मदिवस को राजकीय सम्मान के साथ मनाने का निर्णय लिया। तभी से नाथद्वारा में आधी रात को जब श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीकात्मक समय होता है, तब तोपों की सलामी दी जाती है।

इस साल भी यह परंपरा पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई गई। रात 12 बजते ही श्रीनाथजी मंदिर में जन्मोत्सव की विशेष आरती और दर्शन हुए, और उसके बाद रसाला चौक पर स्थानीय प्रशासन, मंदिर मंडल और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में श्रीनाथ गार्ड ने “नर और मादा तोपों” से 21 बार सलामी दी। इससे संपूर्ण नाथद्वारा नगरी “जय श्रीकृष्ण” के उद्घोष और तोपों की गूंज से गूंज उठी।

भारी बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह

हालांकि इस बार जन्माष्टमी के दिन बारिश ने खलल डालने की कोशिश की, लेकिन भक्तों की आस्था के आगे मौसम भी हार गया। श्रद्धालुओं ने भीगते हुए भी मध्यरात्रि तक डटे रहकर तोपों की सलामी का नज़ारा किया। बच्चों, युवाओं, महिलाओं और वृद्धजनों ने पूरे आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग लिया। मंदिर परिसर और रसाला चौक के आसपास विशेष सजावट और प्रकाश व्यवस्था की गई थी, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।

सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी चूक, चार ड्रोन उड़ते पाए गए

जहां एक ओर यह आयोजन आस्था और परंपरा की मिसाल बना, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर प्रशासन की लापरवाही भी सामने आई। कार्यक्रम के दौरान आसमान में चार ड्रोन उड़ते देखे गए, जिनकी अनुमति प्रशासन से नहीं ली गई थी। यह एक गंभीर सुरक्षा चूक मानी जा रही है, विशेषकर तब जब बड़ी संख्या में भीड़ एकत्र थी और कार्यक्रम में प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस बल और मंदिर समिति के सदस्य भी मौजूद थे।

जब मीडिया प्रतिनिधियों ने इस संबंध में स्थानीय प्रशासन से जानकारी मांगी तो अधिकारियों ने मामले की जांच करने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। यह संकेत देता है कि ड्रोन उड़ाने की कोई पूर्व अनुमति नहीं दी गई थी, जिससे आयोजन के दौरान सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता था।

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