65 हजार वर्ग फीट में हुई फसल, दो माह में ही उग आई स्ट्रॉबेरी, एक फसल से 8 लाख के लाभ का अनुमान

65 हजार वर्ग फीट में हुई फसल, दो माह में ही उग आई स्ट्रॉबेरी, एक फसल से 8 लाख के लाभ का अनुमान
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राजसमंद‌ (राव दिलीप सिंह परिहार)जिले के घोड़च ग्राम पंचायत के गांव कुंडा में डॉ. महेश दवे और नारायण सिंह ने एक ऐसा काम कर दिखाया है जो कभी असंभव माना जाता था। इन्होंने मेवाड़ की धरा पर स्ट्रॉबेरी की खेती करके न केवल अपना सपना पूरा किया है, बल्कि मेवाड़ के किसानों के लिए एक प्रेरणा भी बन गए हैं।

बैंकिंग क्षेत्र में काम करने वाले नारायण सिंह ने खेती के नए आयाम तलाशने का निर्णय लिया। उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती का विचार किया और इसके लिए गहन रिसर्च शुरू की। उन्हें पता चला कि स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 15-20 डिग्री सेल्सियस तापमान और खास वातावरण चाहिए। उन्होंने महाबलेश्वर, हिमाचल और अन्य जगहों का दौरा किया और समझा कि यह एक संवेदनशील फसल है, लेकिन मेहनत से इसे सफल बनाया जा सकता है।

अपने शोध के दौरान, नारायण सिंह की मुलाकात आरएनटी मेडिकल कॉलेज, उदयपुर में प्रोफेसर मेडिसिन डॉ. महेश दवे से हुई। डॉ. दवे की भी खेती में गहरी रुचि थी। जिले के कुंडा गांव में उनके पास खाली जमीन और फार्महाउस था। उन्होंने साथ मिलकर वहां 65 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने का निर्णय लिया।

नारायण सिंह ने डॉ महेश दवे के सहयोग से स्ट्रॉबेरी की बुवाई अक्टूबर में की। इसके लिए ऑर्गेनिक खाद, नीम की खली, और छाया के लिए मल्च का उपयोग किया गया। मधुमक्खियों की मदद से पौधों का परागण (पोलिनेशन) कराया गया, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि हुई। दो महीने बाद दिसंबर में ही खेतों में भरपूर स्ट्रॉबेरी तैयार हो गई। अब फसल की इतनी मांग है कि ऑर्डर पूरे करना मुश्किल हो रहा है। बड़े सुपरमार्केट, वरिष्ठ अधिकारी और उद्योगपति इनकी स्ट्रॉबेरी खरीदने के लिए पहुंच रहे हैं। मंडी में भी एक दिन छोड़ कर एक दिन उत्पादन भेज रहे हैं।

अब तक इस परियोजना में ₹8 लाख की लागत आई और 2 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है। फसल पूरी होने तक अनुमान है कि कुल 16 लाख रुपए की कमाई होगी, जिससे एक ही फसल में 8 लाख रुपए का शुद्ध लाभ होगा। आज, डॉ. महेश दवे और नारायण सिंह न केवल खुद सफल हो रहे हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी नई फसलें उगाने और अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा साबित करती है कि अगर ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं।

यह कहानी संघर्ष, मेहनत और समर्पण का प्रतीक है, जो यह सिखाती है कि सही दिशा में प्रयास करने से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। नारायण सिंह मूलतः मावली के आसलियों की मादड़ी के निवासी है जो यहां से 45 किमी दूर है। जुनून ऐसा है कि वे लगभग हर रोज इतना सफर तय कर यहां खेत पर पहुंचते है। वे कहते हैं कि अब यही उनकी नई दुनिया है।

24 घंटे मेहनत और केयर मांगती है स्ट्रॉबेरी की फसल:

स्ट्रॉबेरी की खेती कोई आसान काम नहीं है, बल्कि यह निरंतर ध्यान और मेहनत की मांग करती है। इसका छोटे बच्चे की भांति ध्यान रखना पड़ता है। नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे बताते हैं कि इस फसल के रखरखाव के लिए चार व्यक्तियों की एक टीम हर समय तैनात रहती है। सुबह 4 बजे से ही सिंचाई और पौधों की देखभाल शुरू हो जाती है। स्ट्रॉबेरी की संवेदनशील प्रकृति के कारण पौधों की नमी, पोषण और तापमान पर निरंतर ध्यान देना पड़ता है। इसके अलावा, फसल की गुणवत्तापूर्ण पैदावार सुनिश्चित करने के लिए जैविक खाद, छाया जाल, और मधुमक्खियों द्वारा पोलिनेशन जैसे विशेष उपाय किए जाते हैं। कुल चार व्यक्तियों की टीम रोज यहां काम करती है।

स्ट्रॉबेरी की उच्च कीमत और संवेदनशीलता इसे विशेष ध्यान देने योग्य बनाती है। शाम को खरीदारों की आमद के बाद भी, रात भर फसल की रखवाली करनी पड़ती है। यह काम जानवरों और पक्षियों से फसल की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। किसानों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है ताकि फसल को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो। नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे की यह मेहनत और समर्पण इस बात का प्रतीक है कि नई और चुनौतीपूर्ण फसलें उगाने के लिए प्रतिबद्धता और टीमवर्क कितने आवश्यक हैं।

स्ट्रॉबेरी उत्पादन के लिए ये हैं आवश्यकताएं:

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कुछ न्यूनतम आवश्यकताएं होती हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 15°C से 20°C के बीच होता है। अत्यधिक गर्मी और ठंड दोनों ही स्ट्रॉबेरी के लिए हानिकारक हैं। दिन में अच्छी धूप और रात में ठंडक का होना लाभदायक होता है। मिट्टी की बात करें तो बलुई दोमट मिट्टी (सैंडी लोम) इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है, जिसका pH स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में अच्छी जल निकासी और उपजाऊपन जरूरी है। सिंचाई के लिए नियमित पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन जलभराव से बचाव जरूरी है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग बेहतर परिणाम देता है और पौधों की नमी बनाए रखना आवश्यक है।

खेती के लिए समतल या थोड़ी ढलान वाली जमीन उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन तेज हवा वाले क्षेत्रों से बचना चाहिए। प्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग भी खेती में मददगार होता है। उच्च गुणवत्ता वाले और रोगमुक्त पौधों का चयन करना जरूरी है। भारत में "चैंडलर", "कैमारोसा", और "साबरगम" जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय हैं। उर्वरकों में जैविक खाद जैसे नीम की खली और कम्पोस्ट का उपयोग करना चाहिए, साथ ही नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात बनाए रखना चाहिए।

अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए छाया जाल का उपयोग किया जा सकता है, और ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस में खेती करना भी फायदेमंद होता है। बेहतर परागण (पॉलीनेशन) के लिए मधुमक्खियों का उपयोग किया जा सकता है। बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है। फसल की देखभाल के लिए नियमित निराई-गुड़ाई और कीट/रोग प्रबंधन करना जरूरी है। फसल बुवाई के 60-80 दिनों बाद तैयार होती है, और एक एकड़ में 6-10 टन तक स्ट्रॉबेरी का उत्पादन संभव है।

इन न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ, स्ट्रॉबेरी की खेती को सफलतापूर्वक शुरू किया जा सकता है।

कृषि और उद्यानिकी विभाग कर रहा निगरानी :

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक संतोष दुरिया और उद्यान विभाग के उप निदेशक हरिओम सिंह राणा ने बताया कि राज्य सरकार से इन्हें मलचिंग शीट, लो टनल और ड्रिप सिस्टम पर सब्सिडी दी गई है। साथ ही समय समय पर तकनीकी मदद उपलब्ध कराई जाकर सहयोग किया जा रहा है। विभाग द्वारा यहां निरंतर दौरा एवं निगरानी भी की जा रही है।

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