भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर सूचना केंद्र में लगी जनजाति महानायकों पर आधारित प्रदर्शनी

राजसमंद। भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती (जनजाति गौरव वर्ष) के तहत सूचना केंद्र में भव्य प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिले में यह पहली बार था जब एक साथ देशभर के जनजाति नायकों के योगदान, बलिदान और गाथाओं को प्रदर्शित किया गया हो।
इस अभिनव प्रदर्शनी का उद्घाटन जिला कलक्टर अरुण कुमार हसीजा, जिला प्रमुख रतनी देवी जाट, जिलाध्यक्ष जगदीश पालीवाल ने किया। प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कलक्टर ने अनायास ही कहा- 'ये जनजाति नायक हमारे प्रेरणा के स्रोत हैं।' इस मौके पर जिला परिषद सीईओ बृजमोहन बैरवा, एडीएम नरेश बुनकर, एसीईओ डॉ सुमन अजमेरा, समाजसेवी माधव जाट, जवाहर जाट आदि मौजूद रहे।
प्रदर्शनी में भारत के प्रमुख जनजाति नायकों में भगवान बिरसा मुंडा, गोविंद गुरु, राणा पूंजा भील, टंट्या मामा (टंट्या भील), रानी दुर्गावती, सिदो–कानो मुर्मू, फूलो–झानो, तिलका मांझी, वीर नारायण सिंह, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, गुंडाधुर, बुधु भगत, भागा टुडू, रानी गाइदिन्लू, दुर्जन सिंह (चुआड़ विद्रोह), भीमा नायक, झाड़ा पहाड़िया, लक्ष्मण नायक, गंगा नारायण सिंह (कूर्मियों का विद्रोह), नीलांबर-पीतांबर, जयपाल सिंह मुंडा आदि के योगदान एवं बलिदान को को बखूबी प्रदर्शित किया गया। साथ ही केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जनजाति कल्याण के क्षेत्र में किए गए कार्यों को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी का समापन शनिवार सायं होगा।
प्रेजेंटेशन देते हुए जिला परिषद सीईओ बैरवा ने बताया कि "जनजाति गौरव दिवस" हमारे आत्मगौरव, विरासत और अस्मिता का पर्व है। भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती इस परंपरा का प्रतीक है, जिसने हमें साहस, एकता और आत्मसम्मान की अदम्य शक्ति प्रदान की। इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही पहलें केवल योजनाएँ नहीं, बल्कि हमारे भविष्य में नए विश्वास, अवसर और उन्नति की उजली किरण हैं।
भूरेटिया, नई मानूँ रे नई मानूँ...:
प्रदर्शनी में मानगढ़ आंदोलन से प्रेरित भीली गीत....1883-1913 (अंग्रेज, तेरी बात नहीं मानूँ...नहीं मानूँ...) भी प्रदर्शित किया। एडीएम नरेश बुनकर ने अपने जनजाति क्षेत्र के कार्यकाल का संदर्भ देते हुए जनजाति इलाकों में इस गीत की महिमा के बारे में सभी को जानकारी दी।
धरती आबा से जुड़े पहलुओं को बताया:
सीईओ ने बताया कि बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के उलिहातु गाँव में एक साधारण मुंडा आदिवासी परिवार में हुआ। उनका बचपन गरीबी, सामाजिक अन्याय और ब्रिटिश शासन के बढ़ते दमन के बीच बीता। पढ़ाई के दौरान उन्होंने महसूस किया कि मिशनरी प्रभाव और अंग्रेजी शासन आदिवासी संस्कृति, आस्था, देश और भूमि के लिए हानिकारक हैं। इसी दौर में उनमें सामाजिक चेतना, जनसेवा और अपने समुदाय के प्रति गहरी जिम्मेदारी की भावना विकसित हुई।
1890 के दशक में उन्होंने ब्रिटिश शोषण और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ व्यापक जागृति अभियान शुरू किया। उन्होंने आदिवासियों को अपनी संस्कृति, धर्म और अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित किया और “उलगुलान” नामक जन विद्रोह का नेतृत्व किया।
उलगुलान केवल अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष नहीं था, बल्कि जल-जंगल-जमीन की रक्षा, सामाजिक सुधार, नशामुक्ति, आपसी सद्भाव और आदिवासी स्वाभिमान के पुनर्जीवन का आंदोलन था। बिरसा के नेतृत्व में मुंडा समुदाय अंग्रेजी नीतियों के विरुद्ध एकजुट हुआ, जिससे औपनिवेशिक शासन भयभीत हो उठा।
अभियानों-योजनाओं की दी जानकारी:
प्रदर्शनी का अवलोकन कराते हुए सीईओ बैरवा ने बताया कि धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान का शुभारम्भ 2 अक्टूबर 2024 को किया गया जिसमें 17 मंत्रालयों की समन्वित भूमिका से 25 गतिविधियों को शामिल किया गया है।
राज्य के 37 जिलों और 208 ब्लॉकों के 6019 ग्राम चयनित कर अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना के माध्यम से अगले पाँच वर्षों में प्रत्येक चिन्हित ग्राम तक बुनियादी सुविधाएँ पहुँचाने तथा उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन सभी हस्तक्षेपों को संतृप्ति स्तर तक लागू करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य के लगभग 55 लाख आदिवासी भाई-बहनों के जीवन स्तर में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक सुधार हो सके।
