जैव विविधता संतुलन एवं पर्यावरण प्रदूषण की इंडिकेटर/मैसेंजर/दूत है "गौरैया"....

राजसमंद (राव दिलीप सिंह परिहार) कदकाठी, भूरे पंख और चंचल स्वभाव वाली गौरैया (पेसर डोमेस्टिकस) मानव बस्तियों के निकट पाए जाने वाला नन्हा पक्षी है, जो पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता और पर्यावरण प्रदूषण के सूचक या दूत की भूमिका में रहता है! अल सुबह से ही गोरिया की चहचाहट का सुनाई देना, एक स्वस्थ और समृद्ध जैव विविधता का द्योतक है! लेकिन अफसोस की बात है कि वर्तमान समय में इनके प्राकृतिक निवास के क्षरण, शहरीकरण, कृषि पद्धति में बदलाव, हानिकारक कीटनाशकों का प्रयोग, मोबाइल टावरों की रेडिएशन और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण ने गौरैया की चहचहाट को बंद प्रायः कर दिया है! अब हमारे घरआंगन में फूदकते देखे जाने की तस्वीर, खिड़की पर बैठकर हमें टुकुर-टुकुर देखने का दृश्य अदृश्य हो गये हैं और इस सुंदर पक्षी की आबादी धीरे-धीरे कम हो रही है! परिणामस्वरुप वातावरण में कीट पतंगों में वृद्धि और जैव विविधता के लिए खतरे उत्पन्न हो गए हैं! गोरैया के संरक्षण के लिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, ताकि इस नन्ही चिड़िया की घटती संख्या के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई जा सके! प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्षरत शिक्षक कैलाश सामोता का मानना है कि हमें छोटे-छोटे प्रयास करके गोरैया को संरक्षित किया जाना चाहिए, जिनमें उनके घोसलों के लिए सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना, दाने-पानी की व्यवस्था करना, कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना, अधिकाधिक पेड़ पौधे लगाना, पक्षी घर बनाना, प्राकृतिक आवास उपलब्ध करवाना, आदि शामिल है! ताकि प्रकृति के इन नन्हे दूतों को बचाकर, इन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके! ग्रामीण परिवेश में गौरैया को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, जिसे बचाने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए! गोरैया बीजों का उपयोग कर और उत्सर्जन कर पौधों के बीजों को फैलाने तथा वनस्पति को बढ़ावा देने में मदद करते हैं!