तीज,: घेवर और लहरिए वाला त्योहार है निकलती है तीज माता की सवारी

तीज त्योहारां बावड़ी, ले डूब गणगौर। इसका मतलब ये है कि तीज जब भी आती है त्योहारों की भरमार साथ लेकर आती है और गणगौर जब आती है तो त्यौहारों के आने का क्रम कुछ समय के लिए थम जाता है। वैसे तो दो प्रमुख तीज साल भर में पूरे देश में मनाई जाती हैं, जिनमें सावन के महीने में आने वाली ये हरियाली तीज अपना अलग ही महत्व रखती है।
राजस्थान, जिसे कि रंग रंगीलों राजस्थान कहा जाता है, वहां हर त्योहार को अलग ही ढंग से मनाया जाता है। तीज भी उन्हीं में से एक है। राजस्थान के मुख्यत दो शहरों में तीज की सवारी भी निकाली जाती है। एक राजधानी जयपुर और दूसरी बूंदी जिले में। हांलाकि बूंदी में हरियाली तीज के दिन नहीं, बल्कि काजल तीज के दिन सवारी निकलती है और जयपुर में परकोटे में तीज के दिन तीज माता की सवारी निकाली जाती है।
तीज माता की सवारी
सवारी से अर्थ यहां तीज के मेले के दौरान झांकी निकाले जाने से है। ये परंपरा जयपुर की बसावट से ही है। इस बार कोराना का असर जरूर तीज के मेले पर देखने को मिल रहा है। यहां लोक गीतों के साथ तीज का स्वागत होता है। तीज की सवारी पिया जणी लागे प्यारी जैसे गीत महिलाएं घरों में गुनगुनाती हैं। सावन के झूलों का तीज के दिन आनंद लिया जाता है।
तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा पर्व
तीज से एक दिन पहले सिंजारा पर्व मनाया जाता है। इस दिन सुहागनें विशेष पूजन करती हैं। हाथों में मेहंदी लगाकर तीज के लिए तैयार होती हैं। तीज के दिन विशेष मिठाई घेवर बनवाए जाते हैं। नवविवाहिताएं तीज माता की विशेष पूजा करती हैं। सुहागनें उनका साथ देती हैं। प्राय: तीज के समय अपने पीहर में आकर नवविवाहिताएं पूजन में शामिल होती हैं।
अच्छे वर प्राप्ति के लिए तीज माता की पूजा
मान्यता कि कंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए तीज माता की पूजा करती हैं। इस दिन विशेष वस्त्र पहने जाते हैं, जिन्हें लहरिया कहते हैं। लहरियों सूट, चुन्नी, कुर्ते, साफे, घाघरे, लहंगे सब में उपलब्ध होते है। इस बार राजस्थान में तीज के उपलक्ष्य में मास्क भी लहरिये में बनाए गए हैं और बिके भी हैं। लहरिया एक तरीके से कई रंगों के बारीक-बारीक लाइनों वाले परिधान को कहते हैं। तीज के दिन लहरिया पहनने का अलग ही क्रेज होता है।
