भद्रा का शुभ अशुभ योग

किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष महत्व है, क्योंकि भद्रा काल में मांगलिक-उत्सव शुभ कार्यों का शुभारंभ समापन, समाप्ति शुभ अशुभ मानी जाती है । अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी धार्मिक आस्थावान व्यक्ति शुभ मांगलिक कार्य नहीं करता।
मनु ज्योतिष एव वास्तु शोध सस्थान टोक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि पुराणो के अनुसार भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहिन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में कुछ समय अवधि के लिए स्थान दिया। भद्रा की स्थिति में शुभ मांगलिक कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया है किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सफलता देने वाले योग शुभ माने गए हैं ।
शुभ मागलिक कार्यो में भद्रा का शुभ अशुभ महत्व इस प्रकार है,
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण, इनमें करण पंचांग का महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ "कल्याण करने वाली"है लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं।
बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों ।
घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका नाश करने वाली मृत्यु दायक मानी गई है । जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है उस अवधि में भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है एवं इस का मुख सामने होता है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। क्योंकि उस के अनिष्ट फल मिलते हैं, इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है। चन्द्रमा जब मेष वृष मिथुन वृश्चिक राशि में विचरण करता है तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है उस का मुख ऊपर की और होता है, चन्द्रमा का विचरण कन्या तुला धनु मकर राशि में होता है तो उस का मुख निचे की ओर होता है अर्थात पाताल की ओर होता है, तो पुंछ ऊपर की और होगी, भद्रा जिस लोक में रहती है उसी का फ़ल देती है,
बाबूलाल शास्त्री टोक, राजस्थान