मौन मनुष्य की सर्वप्रियता का अचूक साधन- जिनेन्द्र मुनि
गोगुन्दा। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर गौशाला उमरणा में जैन संत जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि भारतीय मनुष्यों ने हमारी वाणी को वाक शक्ति बताया है। कहा जाता है जब कोई बोलता है तो वह मनुष्य और जब मौन हो जाता है तो देवता है, ज्ञानी है। यानी वाणी मनुष्य की भाषा है और मौन ज्ञानियों की भाषा है। वाणी में असीम शक्ति है परंतु मौन में उससे भी प्रचंड शक्ति है। मनुष्य अपने अंतःकरण की शक्ति प्राणों की शक्ति को बोलकर बिखेर देता है। किंतु साधक मौन रहकर उस शक्ति को संवर्धन में उपयोग करता है।
महाश्रमण ने कहा मौन एक रक्षा कवच है ज्ञानियों का भी और मूर्खों का भी, ज्ञानी मौन रहता है तो उसका वह गुण है ,भूषण है। और सत्य व्रत की रक्षा कर सकता है। लोकप्रियता को बनाए रख सकता है लोग उसे समझदार समझते हैं। मूर्खता का ढक्कन है मौन। मौन कभी भी दूसरों को हानि नहीं पहुंचाता है, जबकि मनुष्य बोलकर कलह, विग्रह,विद्वेष,फुट और हिंसा को भड़काता है।
प्रवीण मुनि ने कहा दान में उत्तम दान आहार दान है। भूखे को भोजन कराना कठिन भी नही है। यह महादान की श्रेणी में आता है। रितेश मुनि ने कहा लोक में जो तृष्णरहित है उसके लिए कुछ कठिन नही है। कठिनाइया तो उसके सामने आती रहती है। प्रभातमुनि ने कहा आशा और विश्वास पर अपनी सारी उम्र निकाल देते है। आज दुखी है उन्हें कल सूरज पर विश्वास है। स्थानक भवन में गुरु दर्शन के लिए नासिक और जयपुर से प्रतिनिधि मंडल का आगमन हुआ।