दीपावली से ठीक पहले देवी लक्ष्मी के संदेशवाहक उलूक की अनोखी सेवा

उदयपुर, । जैव विविधता से समृद्ध लेकसिटी में पशुपक्षियों को अभयदान देने की प्राचीन परंपरा का निर्वहन यहां के निवासियों और पशु-पक्षी प्रेमियों द्वारा किया जा रहा है। इसका साक्षात उदाहरण दीपावली से ठीक पहले शहर में वन्यजीवों के रेस्क्यूअर विक्रम सालवी ने पेश किया है जिन्होंने दुर्लभ प्रजाति के बार्न आउल के 4 बच्चों को जीवनदान दिया है।

प्रकरणानुसार शहर के पंचवटी क्षेत्र में स्थित आरएसएमएम कार्यालय के पीछे छज्जे पर एक माह पूर्व दुर्लभ प्रजाति के बार्न आउल ने एक कोटर में चार अंडे दिए थे। कालांतर में अंडों से बच्चे निकले तो आउल ने बच्चों को फिडिंग कराना भी शुरू किया। प्रतिदिन बच्चों की फिडिंग के लिए आउल चूहों का शिकार करके लाता और बच्चों को खिला रहा था। मरे हुए चूहों के अवशेषों के कारण परिसर में बदबू आने लगी तो कार्यालय के स्टाफ ने खोज की तो आउल के बच्चों और यहां पसरी हुई गंदगी को देखा। इस स्थिति की जानकारी मिलने पर कार्यालय के दयाशंकर कुमावत ने शहर में वन्यजीवों के रेस्क्यूअर और वाइल्ड एनीमल एंड नेचर रेस्क्यू सोसायटी के विक्रम सालवी को सूचना दी। सालवी ने यहां पहुंच कर देखा तो आउल के छोटे-छोटे बच्चों को देखकर कार्यालय के स्टाफ से समझाईश की और इन्हें नहीं हटाने का सुझाव दिया। इस पर स्टाफ ने कहा कि कार्यालय परिसर में आ रही बदबू का समाधान कर दिया जाए तो उन्हें पक्षियों के बच्चों से कोई आपत्ति नहीं है।

इस तरह मिला जीवनदान :

सालवी ने स्टाफ की समस्या और बच्चों की स्थिति को देखते हुए इन बच्चों को जीवनदान देने का निर्णय लिया। सालवी के सामने अजीब स्थितियां थी। यदि वह बच्चों को यहां से हटाकर बायोलोजिकल पार्क में शिफ्ट करें तो इनके मां-बाप द्वारा फिडिंग के अभाव में बच्चों की मौत भी हो सकती थी ऐसे में छज्जे के आसपास ही शिफ्ट कराने की जरूरत थी। दूसरी तरफ यदि आसपास ही बच्चों को शिफ्ट किया जाता है तो मां-बाप के न आने की स्थिति में उनको फिडिंग करवाने की भी जरूरत रहेगी। इन समस्त स्थितियों को जानकर सालवी ने इन्हें एक गत्ते के बॉक्स में रखकर छज्जे के आसपास ही रखने का निर्णय लिया ताकि बच्चें मां-बाप की नजरों में ही रहे। हाथों-हाथ सालवी ने अपनी टीम के साथी निर्भय सिंह चौहान के साथ बच्चों को कोटर से सुरक्षित उतारा और गत्ते के एक बॉक्स में रखकर छज्जे के पास ही रख दिया। खुशी की बात रही कि उसी रात में बच्चों के मां-बाप ने इस गत्ते के घौंसले तक पहुंच कर बच्चों को भोजन कराना शुरू करा दिया। अब समस्या इस बात की आ रही थी कि भोजन के अवशेष से दुर्गंध आ रही थी। इस समस्या को दूर करने के लिए विक्रम सालवी और निर्भय सिंह चौहान प्रतिदिन यहां पहुंचकर गत्ते में भोजन के अवशेषों और अन्य गंदगी की सफाई करना प्रारंभ कर दिया। यह सिलसिला पिछले 20 दिनों से लगातार जारी है। प्रतिदिन भोजन और सेवाचर्य से बच्चें बड़े हा रहे हैं और गत दिनों इन चार बच्चों में से दो बच्चे उड़ भी गए हैं। बच्चों को बड़ा होता और उड़ता देखकर जहां एक तरफ विक्रम सालवी और निर्भय सिंह चौहान खुश है वहीं आरएसएमएम का स्टाफ भी खुश है कि उनकी समस्या का समाधान भी हो गया और चार छोटे जीवों को जीवनदान भी मिल गया। उन्होंने विक्रम सालवी और निर्भय सिंह चौहान को उनके द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की है।

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