धन तेरस का पर्व जीवन मे परहित एवं परोपकार की प्रेरणा देता है-जिनेन्द्रमुनि

धन तेरस का पर्व जीवन मे परहित एवं परोपकार की प्रेरणा देता है-जिनेन्द्रमुनि
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गोगुन्दा BHN.श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ महावीर जैन गोशाला उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि धन तेरस के पीछे आयुर्वेद के प्राण प्रतिष्ठात्मक धन्वंतरि के पादुर्भाव की कथा जुड़ी हुई है।महाभारत और पुराणों के अनुसार यह माना जाता है कि देव दानवो ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया तो उसमें चौदह रत्न प्राप्त हुए।उसी समुद्र मंथन में धन्वंतरि हाथ मे अमृत कलश लिए प्रकट हुए।धन्वन्तरि चिकित्सा विज्ञान के आदि पुरुष माने जाते है ।सुश्रुत संहिता के अनुसार आयुर्वेद के आठो अंगो के निपुण वैध धन्वंतरि कहा जाता है।महाभारत आदि पुराणों के अनुसार कार्तिक वदी 13 के अनुसार यानी धन तेरस धन्वंतरि के रूप में मनाई जाती है।धन्वंतरि के हाथ मे अमृत कलश यह सूचित करता है कि संसार मे रोग के विषाणुओं का नाश करने के लिए उसने ओषधि रुप अमृत प्रदान किया।समस्त संसार को आधी व्याधि,रोग आदि से मुक्त करके मानव को सुखी और स्वस्थ बनाना ही धन्वंतरि का लक्ष्य है।संत ने कहा रामायण में प्रसंग है कि जब रण भूमि में लक्ष्मण शक्ति प्रहार से मूर्छित हो जाते है तब हनुमान सुषेण वैध को लंका से उठाकर लाते है और उसे प्रार्थना करते है ।है!वैधराज,लक्ष्मण की पीड़ा को दूर करो,सुषेण वैध कहता है-तुमने मुझ पर विश्वास कैसे किया?मैं शत्रु पक्ष का वैध हूँ।मैं तुम्हारे रोगी का अहित भी कर सकता हूँ।तब राम कहते है।वैध का कोई शत्रु मित्र नही होता,वैध का सिर्फ एक ही रिश्ता है-विश्वास का!विश्वास के भरोसे रोगी वैधराज के हाथ मे अपनी जीवन की डोर सौंप देता है।आज धन तेरस धन्वतरि का जन्म दिन हमे यह प्रेरणा देता है कि संसार में आये तो प्रेम का,सेवा का अमृत बांटो, दुसरो के दुःख दर्द पीड़ा दूर करो।दुसरो की सेवा करना ही तुम्हारा धर्म है।धन तेरस का अर्थ धन की वर्षा से नही है।लोग आज के दिन चांदी तांबे और स्टील के बर्तन खरीदकर धन तेरस मनाते है ।किंतु असली धन तेरस है,दुखियों के दुःख दर्द दूर करने का संकल्प लेना।दीपवली के पांच पर्व के आदि में पहला धन तेरस का पर्व आपको जीवन मे परहित एवं परोपकार की प्रेरणा देता है ।निस्वार्थ और निष्पक्ष भाव से जितना बन सके दुसरो की सेवा सहायता का संकल्प करना और उसके लिए धन संपत्ति का सदुपयोग करना यह लक्ष्मी के आमंत्रण की पूर्व भूमिका है।रितेश मुनि ने कहा कि वैध प्राणियों के रोगों की चिकित्सा कर उन्हें शांति पहुंचाता है,भगवान प्राणियों के आध्यात्मिक मानसिक रोगों की चिकित्सा करते है,उनके जन्म मरण जरा शोक की व्याधि दूर करने वाले महावैध है।

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