मनुष्य अपने दुःखो से नही दुसरो के सुख से दुःखी-जिनेन्द्रमुनि मसा

मनुष्य अपने दुःखो से नही दुसरो के सुख से दुःखी-जिनेन्द्रमुनि मसा
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गोगुन्दा BHN .मनुष्य संसार मे अपने दुःख से इतना दुःखी नही है,जितना दूसरे के सुखमय जीवन को देखकर दुःखी है।अज्ञानी मनुष्य दुसरो का अनिष्ट और अहित सोचकर अपना अनमोल समय नष्ट करता है और कर्मबन्धन में स्वयं को झकडे रहता है ।उपरोक्त विचार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में उमरणा के स्थानक भवन मेंजिनेन्द्रमुनि मसा ने व्यक्त किया ।उन्होंने कहा कि अज्ञानी मनुष्य इस संसार मे रहकर रोड की गन्दगी अपने घर मे भरने जैसा हास्यास्पद कार्य कर रहा है।मुनि ने कहा कि जो समय मनुष्य को स्वनिर्माण में लगाना चाहिए, वह उस समय को ईर्ष्या की ज्वाला में जलकर अपना अनिष्ट कर रहा है।उसे सोचना चाहिए कि क्या बिल्ली के छींकने से छींका टूटता है क्या? मुनि ने स्पष्ट कहा कि हर आत्मा का अपना अपना अलग अलग भाग्य होता है।उसे कोई नही छीन सकता है।अपनी भावना मलिन करने से स्वयं का भविष्य उज्ज्वल नही हो सकता।बिना कुछ दिये अगर हम किसी का भला नही देख सकते तो भला पैसे देकर भला करने की कल्पना करना व्यर्थ है,और करता भी है तो वह उसके पतन का कारण बनेगा।संत ने कहा दुश्मन के घर भी मंगलबाजे बजे ऐसी पावन भावना जिस दिन हमारे दिल मे पैदा हो जाएगी, उस दिन हमारी आत्मा के कल्याण को कोई नही रोक सकता।मुनि ने कहा कि जो ऊपर से मैत्री का भाव दिखाता है परंतु अंदर से ईर्ष्या के कीटाणु पालता है,वह नराधम मानवता पर कलंक है।जैन संत ने कहा कि ईर्ष्या को प्रकृति वाले को यदि वरदान भी मिल जाए तो वह अभिशाप के रूप ने परिवर्तन हो जाएगा।आवश्यकता है इस पर नियंत्रण करने का।लक्ष्य साधना को बनाये।इसी में जीवन की सार्थकता है।प्रवीण मुनि ने कहा कि ईर्ष्या की आग सबसे भयंकर है।यहबाहर प्रकट तो नही होती,परन्तु भड़कने पर पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लेती है।इससे किसी दूसरे का नुकसान हो न हो परन्तु स्वयं का जीवन अंधकार में डूब जाता है।रितेश मुनि ने कहा कि ईर्ष्या जैसा खतरनाक शत्रु मनुष्य का कोई नही है मानसिक अशांति तनाव को मनुष्य स्वयं पैदा कर रहा है।प्रभातमुनि ने जोर देकर कहा कि ईर्ष्या को त्यागे बिना स्थायी शांति संभव नही है।इस विषय पर विचार करते हुए मुनि ने कहा कि ईर्ष्या से स्व और पर का हमेशा बुरा ही होता है।

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