शरीर नश्वर है, आत्मा शाश्वत है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर

शरीर नश्वर है, आत्मा शाश्वत है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर
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उदयपुर । जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज ने श्री धर्मनाथ स्वामी जैन संघ जंबुद्विप टावर-भुवाणा-उदयपुर में आयोजित धर्मसभा को प्रवचन देते हुए कहा कि जगत् में रहे सभी जीवों के मन में किसी न किसी के प्रति प्रेम अवश्य रहा हुआ है।

जंगल का राजा सिंह जब किसी प्राणी का शिकार करता है तब अपने तीखे दांतों और नाखूनों से उसके प्राण ले लेता है, परंतु अपनी संतान के प्रति उसके मन में भी प्रेम रहा हुआ है। हाथ के अभाव में जब सिंह अपनी संतान को मुह से उठता है तब उसे एक भी दांत लगने नहीं देता है। प्रत्येक मनुष्य के मन में भी प्रेम के पात्र अनेक है। व्यक्ति को भोजन पर प्रेम है, परंतु धन के लिए व्यक्ति मनपसंद भोजन भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। धन के प्रति जो प्रेम है उससे भी अधिक प्रेम पुत्र के प्रति है। पुत्र के पालन पोषण, रोगों की चिकित्सा ,पढाई एवं चिकित्सा में लाखों रुपये भी हंसते-हंसते चुका देता है। पुत्र से भी अधिक प्रेम पत्नी पर है। प्रसूति के समय यदि डॉक्टर कह दे कि दो में से मात्र एक बच सकता है, तब व्यक्ति किसे बचाता है पत्नी को। पत्नी से भी अधिक प्रेम स्वयं पर है। घर में आग लग जाय तो हर कोई अपने आप को बचाता है, अन्य का विचार भी नहीं करता है। प्रत्येक जीव को सर्वाधिक प्रेम अपने शरीर पर है। परंतु शरीर कब तक का साथी है।

शरीर और आत्मा के बीच शरीर तो नश्वर है, आत्मा शाश्वत है। आत्मा के होने पर ही शरीर की कीमत है। शरीर में से आत्मा निकल जाने के बाद इस शरीर को जलाकर राख कर दिया जाता है।. आत्मा अकेली ही परलोक में जाती है। सब कुछ यही छोडकर जाना पडता है। साथ चलते है मात्र अपने-अपने पुण्य और पाप। देवों को भी दुर्लभ ऐसे मनुष्य जन्म की सार्थकता धर्माराधना के द्वारा पुण्य की कमाई करने से है। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, डॉ. शैलेन्द्र हिरण , महावीर रांका , जसवंतसिंह सुराणा, रवि मोर्डिया , मनोज सिंघवी , भूपेन्द्र मेहता , अनिल मेहता , संजय खाब्या, मयंक मेहता , सुनिल सेठ आदि की इस प्रसंग पर उपस्थिति रही।

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