सम्मान समारोह और जयकारों के साथ हुई भागवत कथा की पूर्णाहुति

उदयपुर। शहर के मंशापूर्ण गजानंद मंदिर परिसर, महाराणा प्रताप कॉलोनी, गवरी चौक, सेक्टर 13 में पुष्कर दास महाराज के द्वारा चल रही संगीतमय भागवत कथा के सातवें दिन पूर्णाहुति में कहा हम कोई भी सत्कर्म, पूजा, पाठ करते हे परन्तु जब तक सत्संग में नहीं बैठेंगे तब तक सत्कर्म की विधि का ज्ञान नहीं हो सकता। जहां भक्ति होगी ईश्वर पीछे पीछे आता है, भगवान कृष्ण ने जो कहा और राम ने जो किया वो हमे पालन करना चाहिए। राम, कृष्ण दोनों को अपने जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ा। आगे महाराज ने कहा जिसकी आत्मा हर दम हरी चित्त में लगी रहे वही गोपी है ।
कथा में रास लीला का वर्णन किया तथा भगवान द्वारकाधीश रुक्मणी जी का हरण करके ब्याह रचाते है और कथा में रुक्मणी विवाह के प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया गया । सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कृष्ण और सुदामा में प्रेम था तभी जगत का मालिक द्वारकाधीश मिलने के लिए दौड़े चले आये। हम भगवान के दर्शन करने जाते है और सुदामा मिलने जाते है । सुदामा ने द्वारका नगर में जाकर पूछा द्वारा कहा है इसलिए उस नगर का नाम द्वारका पड़ा । सुदामा के जीवन में इतनी गरीबी होने के बाद भी अहसास नहीं होने दिया, पत्नी का नाम सुशीला था जैसा नाम था वैसा गुण भी था । सुदामा चावल की पोट लेकर द्वारका जाते है और द्वारकाधीश ने मित्र सुदामा का खूब स्वागत सम्मान किया और स्वयं भगवान ने रुक्मणी जी के साथ सुदामा के चरण प्रक्षालन किए । भगवान ने सुदामा की गरीबी दूर करी।
अंतिम दिन पूरा परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया। सभी भक्तों ने खूब आनंद प्राप्त किया तथा कथा पूर्णाहुति के अवसर पर महाराणा प्रताप विकास समिति के सभी सदस्यों की ओर से व्यासपीठ पर महाराज का सम्मान किया गया। सभी भक्तों द्वारा पूर्णाहुति के दिन महाआरती की गई और सभी ने भगवान द्वारकाधीश के जयकारे लगाए और पूरा प्रांगण जयकारों से गूंज उठा। पूर्णाहुति के उपलक्ष्य में महाराणा प्रताप विकास समिति के किशन सिंह राठौड़, टीकम सिंह राव, पुजारी चंपालाल चतुर्वेदी, मनोहर सिंह,हिम्मत सिंह, शंकर सिंह,नरपत सिंह, मदन सिंह, ओंकार कुमावत, शिवदान सिंह आदि उपस्थित रहे।