जैन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को भावी तीर्थकर माना : साध्वी जयदर्शिता

जैन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को भावी तीर्थकर माना : साध्वी जयदर्शिता
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उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि सोमवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। नाहर ने बताया कि बाहर से दर्शनार्थियों के आने का क्रम निरन्तर बना हुआ है, वहीं त्याग-तपस्याओं की लड़ी जारी है।

आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सोमवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने प्रवचन में बताया कि श्री कृष्ण को जैन धर्म में त्रेसठ श्लोका पुरुषों में भी स्थान दिया गया है। हिन्दु कथा साहित्य और जैन कथा साहित्य में रामायण और महाभारत का बहुत ही सम्माननीय स्थान है। श्री कृष्ण बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। श्री कृष्ण के पिता वासुदेव तथा नेमिनाथ के पिता समुद्र विजय परस्पर भाई माने गए हैं। जैन धर्म में भगवान श्री कृष्ण को भावी तीर्थकर बारहवें अमम नाथ जी के नाम से माना गया है। नेमिनाथ वैराग्य प्रकृति के थे। श्री कृष्ण के प्रयास से ही नेमिनाथ का विवाह का आयोजन बनाया गया था। बलराम श्री कृष्ण के बड़े भाई थे। श्री कृष्ण को क्षायिक समकित है मोक्षगामी आत्मा है।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

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