सर्वाधिक पुण्य का बंध नमस्कार से होता है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

सर्वाधिक पुण्य का बंध नमस्कार से होता है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
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उदयपुर । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि बुधवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर की निश्रा में नमस्कार महामंत्र की महिमा विषय पर प्रवचन श्रृंखला में बुधवार को धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि आगम शास्त्र में पुण्य बंध करने के मुख्य नौ उपाय बताए है। इनमें प्रारंभिक पांच उपाय दान देने से होते है। 1) अन्नदान, 2) जलदान, (3) वस्त्र दान, (4) आसन दान और (5) शयनदान । गुणवान व्यक्ति के इन पांच वस्तुओं को दान करने से पुण्य का बंध होता है। शेष चार पुण्य है -(6)मन पुण्य, (7) वचन पुण्य (8) काया पुण्य और (9) नमस्कार पुण्य । मन में शुभभाव करने से जो पुण्य का बंध होता है वह मन पुण्य है। अपने वचनों से किसी को सच्ची सलाह देना, असत्य का त्याग कर सत्य वचनों के प्रयोग करना वह वचन पुण्य है। एवं काया को परोपकार में प्रवृत्त करना, वह काया पुण्य है। इन आठ प्रकारों से भी सबसे बडा पुण्य है- नमस्कार पुण्य । जो सर्वगुण संपन्न है, अथवा जो सर्वगुण संपन्न बनने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है ऐसे अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को जो नमस्कार करता है वह सर्वाधिक पुण्य का बंध और पूर्वोपार्जित पाप कर्मों का क्षय करता है।

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