धर्माराधना को बेचना नहीं चाहिए : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

धर्माराधना को बेचना नहीं चाहिए : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
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उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि मालदास स्ट्रीट आराधना भवन में बुधवार को मरुधररत्न आचार्य रत्नसेनसूरी महाराज ने कहा कि धर्म की आराधना साधना के बल पर साधक को भावांतर में मोक्ष सुख की प्राप्ति तो होती ही है परंतु धर्म के प्रभाव से जब तक वह मोक्ष प्राप्त न करे तब तक संसार के सर्वोच्च सुख भी प्राप्त होते ही है। धर्म हमारी सच्ची माता के समान है जिसके द्वारा बिना मांगे ही सभी सुख के साधन प्रदान करता है। परंतु धर्म के बदले में कुछ भौतिक सुख की प्राप्ति हेतु मांग करना वह धर्म की आराधना को बेचने जैसा है। धर्म के बदले में कुछ मांगने पर उतना ही मिलता है परंतु बिना मांगे सर्वोच्च सुख और परंपरा से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। धर्म के बदले में मांगा हुआ सुख तीखी तलवार पर लगे हुए शहद को चाटने जैसा है। जैसे शहद को चाटने से मीठा स्वाद, मिलता है परंतु तलवार के घाव से जीभ कट जाती है। वैसे ही धर्म के बदले में मांगे गए भौतिक सुख से एक बार तो वह भौतिक सुख प्राप्त हो जाता है परंतु वह सुख उस व्यक्ति को इतना अधिक आसक्त बना देता है जो आगे चलकर नरकादि दुर्गति के घोरातिघोर दु:ख को ही देना है। धर्माराधना का स्वभाव सुख देना ही है परंतु इसलोक या परलोक के भौतिक सुखों की मांग करना दूध में जहर की दो बुंद के समान प्राणघातक है।

कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि 28 सितंबर को प्रात:9.15 बजे चातुर्मासिक विदाई समारोह होगा। 29 सितंबर को प्रात: 5.45 बजे चैत्य परिपाटी सह गुरु भगवंतों का विहार महावीर विद्यालय-चित्रकूट नगर हेतु होगा तथा 2 अक्टूबर से सामूहिक उपधान तप प्रारंभ होगा।

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