आरिहन्त पद का ध्यान हमें आत्मकेन्द्रित बनाता है : साध्वी जयदर्शिता

उदयपुर। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि सोमवार को साध्वियों के सानिध्य में नवपद ओली के तहत विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। चातुर्मास में एकासन, उपवास, बेले, तेले, पचोले आदि के प्रत्याख्यान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन ले रहे हैं और तपस्याओं की लड़ी लगी हुई है।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि सोमवार को आयड़ तीर्थ पर धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने नवपद की महिमा को बताते हुए कहा कि नवपद ओली का यह प्रथम दिवस नवपद के प्रति हमें नम्र बनने का संदेश देता है। क्योंकि जीवन की सार्थकता विनम्रता से है। आप सभी नवपद यानि नवकार महामंत्र की महिमा जानते हैं। यह मन्यों में सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे महामन्त्र या मन्त्राधिराज कहते है। नवपद अर्थात् नम्रता एवं विवेकपूर्वक नवपद हमें पापक्रमों के दमन का सन्देश देता है। प्रथम दिन अरिहंत की आराधना से समाधि का जागरण होता है। समाधि-जागरण यानि आधि-व्याधि टेंशन का छुटकारा, ध्यान की एकाग्रता, विषमता का त्याग, समता की प्राप्ति। अरिहन्त पद का ध्यान करने से दो गुण उत्पन्न होते हैं- अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन। इन दो गुणों के भेद प्रभेद जानकर राग-द्वेष का छेदन कर आत्मा अरिहंत पर को प्राप्त कर सकता है। अरिहंत चार घाती कर्मों के विनाशक है तथा सिह आठ रूम के महापंच नवकार में फिर भी अरिहंत पद को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है क्योंकि ने तीर्थकर हैं, तीर्थस्थापना के माध्यम से संसार के महान उपकारी है।क्योंकि जीवन की सार्थकता बिनम्रता से है। आप सभी नवपद यानि नवकार महामंत्र की महिमा जानते हैं। यह मन्यों में सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे महामन्त्र या मन्त्राधिराज कहते है। नवपद अर्थात् नम्रता एवं विवेकपूर्वक नवपद हमें पापक्रमों के दमन का सन्देश देता है। प्रथम दिन अरिहंत की आराधना से समाधि का जागरण होता है। अपेक्षा से पर्युषण से ज्यादा महत्व नवपद की ओली का है। क्योकि पर्युषण की आराधना शाश्वतकालीन है। इसी के साथ अरिहंत पद की विवेचना भी की गई। कहां कि करंसी नोट आप के जेब में है या पॉकेट में तिजोरी में है या बैंक के लोकर में मगर आखीर वो आई कहां से रिर्जवर बैंक से उसी तरह तीन लोग में देवता सुखी हो या नरकी, मानवी सुखी हो या जानकवर मगन सुख आया कहां से। अरिहंत भगवत की कृपा के कारण से सर्वोध करूणा के धनी अरिहंत प्रभु है। वहां हमारे ह्दय में बिजराजमान होने चाहिए।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, संजय खाब्या, भोपाल सिंह परमार, सतीश कच्छारा, चतर सिंह पामेचा, राजेन्द्र जवेरिया, अंकुर मुर्डिया, पिन्टू चौधरी, हर्ष खाब्या, गजेन्द्र खाब्या, नरेन्द्र सिरोया, राजू पंजाबी, रमेश मारू, सुनील पारख, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, गोवर्धन सिंह बोल्या, दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।
